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    Guru Tegh Bahadur Jayanti 2022 : गुरुद्वारा श्री दुखनिवारण साहिब में स्नान करने से दूर होते हैं रोग, यहीं पड़े थे गुरु तेग बहादुर जी के चरण

    By Vinay KumarEdited By:
    Updated: Thu, 21 Apr 2022 01:41 PM (IST)

    पटियाला में गुरुद्वारा श्री दुख निवारण साहिब रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड से 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। श्री गुरू तेग बहादुर जी ने हुक्म किया कि जो श्रद्धा से यहां स्नान करेगा उसके सभी रोग दूर हो जाएंगे।

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    गुरुद्वारा श्री दुखनिवारण साहिब में स्नान करने पर रोग दूर होते हैं।

    जागरण टीम, पटियाला/अमृतसर: गुरुद्वारा श्री दुख निवारण साहिब पटियाला रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड से 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। गुरुद्वारा साहिब आधुनिक शहर का प्रमुख धार्मिक स्थान है, जहां गुरु तेग बहादुर जी के चरण पड़े। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी भाग राम नाम के व्यक्ति के निवेदन पर गांव लहल में पांच माघ, 1728 को एक पानी के टोबे के किनारे बैठ गए। गांव लहल में उस समय बच्चों में एक खास तरह की बीमारी बहुत ज्यादा फैली हुई थी। श्री गुरू तेग बहादुर जी ने हुक्म किया कि जो श्रद्धा से यहां स्नान करेगा, उसके सभी रोग दूर हो जाएंगे। गुरु जी के हुक्म के बाद बीमार बच्चे ठीक होने शुरू हो गए, जिसके बाद संगत में इस स्थान को लेकर श्रद्धा और ज्यादा बढ़ती चली गई।

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    गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने गांव लहल के लोगों को संबोधित होते हुए जो हुक्मनामा जारी किया था, उसे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने संभाल कर रखा है। यहां आने वाले लोग इस हुक्मनामे के आगे नतमस्तक होना नहीं भूलते। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने हुक्मनामे में कहा है कि जो श्रद्धालु पंचमी वाले दिन श्रद्धा सहित यहां सरोवर में स्नान करेगा, उसके सभी रोग दूर होगे। जो श्रद्धालु श्रद्धा सहित इस हुक्मनामे के दर्शन करेगा, वह मेरे दर्शन करेगा और वह सभी सुख पाएगा। जहां बांधा था घोड़ा, वहां आज मौजूद है गुरुद्वारा श्री मोती बाग पटियाला में स्थित गुरुद्वारा श्री मोती बाग वाले स्थान पर भी गुरु साहिब के चरण पड़े थे। गुरु साहिब सन 1675 में यहां आए थे। इस स्थान एक पेड़ था, जहां गुरु साहिब ने अपने घोड़े को बांधा था। यहां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने गुरुद्वारा साहिब का निर्माण कराया। यहां एक निशान साहिब भी मौजूद है, जो करीब 300 साल पुराना है। यहां भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश किया गया है। श्री निशान साहिब के पास बैठकर श्रद्धालु पाठ करते हैं। जिस स्थान पर आज गुरुद्वारा बहादुरगढ़ पातशाही नौवीं स्थित है, वहां गुरु साहिब सबसे पहले अपने सेवक सैफूदीन से मिले थे।

    गांव वल्ला में 17 दिन रहे थे श्री गुरु तेग बहादुर

    सिख धर्म में सिख गुरुओं ने अपने जीवनकाल के दौरान जिन स्थानों का दौरा किया, उन्हें तीर्थ स्थलों के रूप में विकसित किया गया है। अमृतसर के गांव वल्ला में आज जहां गुरुद्वारा कोठा साहिब मौजूद है, वहां भी श्री गुरु तेग बहादुर जी ने समय बिताया था। गुरु का कोठा का अर्थ है गुरु का घर। बताया जाता है कि जब गुरु गद्दी पर सुशोभित होने क बाद कुछ समय के लिए श्री गुरु तेग बहादुर जी, श्री हरिमंदिर साहिब के दर्शन करने के लिए अमृतसर आए थे तो मसंदों ने उनको श्री हरिमंदिर साहिब में प्रवेश नहीं करने दिया और द्वार बंद कर दिए। उस वक्त गुरु तेग बहादुर साहिब कुछ समय के लिए हरिमंदिर साहिब के बाहर बैठे और यह कहते हुए चले गए कि 'अमृतसर के मसंद महत्वाकांक्षा की आग में जल रहे हैं।' इसके बाद वह वल्ला में आए और एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठे गए। एक धर्मनिष्ठ महिला माई हारो की अगुआई में गांव की संगत, गुरु साहिब के दर्शन करने के लिए आई।

    गुरु साहिब 17 दिनों तक माई हारो जी के कच्चे घर में रहे और जाने के समय आशीर्वाद दिया।जब अमृतसर के लोगों को पता चला कि गुरु तेग बहादुरजी को श्री हरिमंदिर साहिब में प्रवेश करने की अनुमति नहीं गई है, तो वे उन्हें साथ ले जाने के लिए आए। गुरुजी ने जाने से इन्कार कर दिया, लेकिन लोगों को आशीर्वाद दिया कि यदि लोग पूर्णिमा के दिन मेले के दौरान इस गुरुद्वारे में पहुंचेंगे तो उनको गुरु घर की खुशियां मिलती रहेंगी। हर वर्ष फरवरी में पूर्णिमा के दिन यहां आयोजित होने वाले वार्षिक मेले को मनाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस पवित्र स्थान पर आते हैं। गांव वल्ला में गुरु तेग बहादुर का 17 दिन का प्रवास ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हुआ। आज दूर-दूर से संगत यहां मनोकामनाएं पूरी होने पर नतमस्तक होती है।