Dharmendra Death: रायकोट की विरासत में अभी भी सांस लेते हैं ‘वीरू’, धर्मेंद्र का पुश्तैनी घर संभाल रहा है अग्रवाल परिवार
लुधियाना के रायकोट में धर्मेंद्र का पुश्तैनी घर आज भी मौजूद है, जहाँ उन्होंने बचपन बिताया। केवल अग्रवाल के परिवार ने 1959 में यह घर धर्मेंद्र के पिता से खरीदा था और इसे धरोहर की तरह संजोए रखा है। धर्मेंद्र इसी घर में पले-बढ़े और पढ़े-लिखे। घर का बिजली मीटर आज भी उनके पिता के नाम पर है। धर्मेंद्र का अपने गांव से गहरा लगाव था, जिसकी यादें आज भी लोगों के दिलों में बसी हैं।

Dharmendra Death: रायकोट की विरासत में अभी भी सांस लेते हैं ‘वीरू', फोटो जागरण
अमित पासी, रायकोट (लुधियाना)। रायकोट के पॉश मोहल्ला सदावर्तीय में स्थित वह पुराना घर आज भी उसी गरिमा से खड़ा है, जहां कभी मासूम सपनों वाले धर्मेंद्र अपने बचपन के दिन बिताया करते थे। इस घर का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही भावुक भी।
22 जुलाई 1959 को रायकोट के प्रसिद्ध व्यापारी केवल अग्रवाल के पिता ने यह मकान धर्मेंद्र के पिता केवल कृष्ण देओल से मात्र 5000 हजार रुपये में खरीदा था। उस समय की 150 रुपये में उर्दू में हुई रजिस्ट्री आज भी अपने अंदर एक दौर की धड़कनें समेटे सुरक्षित है।
केवल अग्रवाल का परिवार वर्षों से इस घर को धरोहर की तरह संजोए हुए है। रायकोट में उनकी बड़ी कोठी है, पर भावनात्मक जुड़ाव उन्हें हमेशा उसी घर की ओर खींच लाता है। घर का हर कोना उन्हें उस परिवार की याद दिलाता है, जहां से एक हीरो का सफर शुरू हुआ। केवल कुमार बताते हैं कि धर्मेंद्र इसी घर में बड़े हुए और पढ़े-लिखे।
इतना ही नहीं, घर का बिजली मीटर भी आज तक धर्मेंद्र के पिता के नाम पर है। केवल कुमार कहते हैं कि हमने कभी इसे बदलवाने के बारे में सोचा भी नहीं। यह हमारे लिए सम्मान की बात है कि मीटर पर आज भी उनके पिता का नाम दर्ज है। धर्मेंद्र के पिता केवल कृष्ण देओल शिक्षक थे और माता सतवंत कौर गृहिणी।
बचपन से सुंदर व्यक्तित्व और सौम्य स्वभाव के कारण लोग उन्हें हीरो कहा करते थे। शायद यही शब्द आगे चलकर उनके करियर की दिशा बन गया। 1958 में ‘टैलेंट हंट’ प्रतियोगिता में सफलता ने उन्हें फिल्मों के दरवाजे तक पहुंचा दिया और 1960 में दिल भी तेरा हम भी तेरे से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ।
शोले के वीरू और 300 से अधिक फिल्मों के नायक धर्मेंद्र ने भारतीय सिनेमा पर अमिट छाप छोड़ी। उनके जन्मस्थान डांगो के पूर्व सरपंच अमृतपाल सिंह बताते हैं कि धर्मेंद्र का गांव से प्रेम अटूट था। बीमारी के दिनों में गांववासियों ने गुरुद्वारे में उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए अरदास भी की थी। इतनी गहरी भावनाएं कम ही सितारों को नसीब होती हैं।
दैनिक जागरण में प्रकाशित पुश्तैनी घर की स्टोरी पढ़ किया था फोन
कुछ वर्ष पहले दैनिक जागरण में प्रकाशित इस घर पर एक स्टोरी धर्मेंद्र तक पहुंची थी। तब भावुक होकर उन्होंने स्वयं केवल कुमार को फोन किया और इस घर को संभालकर रखने के लिए धन्यवाद दिया। आने का वादा भी किया, पर किस्मत को कुछ और मंजूर था।
बीच में एक बार उनकी टीम ने रायकोट आकर घर का निरीक्षण किया था। बताया गया कि धर्मेंद्र अपने जन्मस्थान डांगो की जमीन की रजिस्ट्री के सिलसिले में पंजाब आए हुए हैं और पुराने घर को देखने की इच्छा रखते हैं। अग्रवार परिवार ने स्वागत की तैयारी भी कर ली थी, मगर अचानक किसी कार्यक्रम की वजह से धर्मेंद्र को बिना मिले ही लौटना पड़ा था।

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