विश्व क्षमापना दिवस के रूप में मनाए पर्यूषण पर्व: रामकुमार जैन
क्षमापना शब्द जितना कहने-सुनने तथा लिखने में सरल प्रतीत होता है उतना ही क्रियात्मक रुप में कठिन है।
लुधियाना : क्षमापना शब्द जितना कहने-सुनने तथा लिखने में सरल प्रतीत होता है, उतना ही क्रियात्मक रुप में कठिन है। जब जीवन कटुता, वैमनस्य तथा असहिष्णुता से भरा हो तो क्षमा की बात कौन करे। मानव एक सामाजिक प्राणी है। समाज में विचरण करते समय उससे अनेक भूलें हो सकती है और परस्पर कटुता उत्पन्न हो सकती है। परस्पर कटुता को दूर करने के लिए भगवान महावीर ने पर्व पर्यूषण की अवधारणा समाज के समक्ष प्रस्तुत की। आध्यात्मिक दृष्टि से इसका अर्थ है- आत्मा के समीप निवास करना। आत्मा के समीप वहीं निवास करेगा, जो परस्पर वैरा-विरोधन को शांत करेगा। भगवान महावीर की समस्त संसार को सबसे बड़ी देशान यही है कि प्रत्येक प्राणी परस्पर वैर-विरोध शांत करने की चेष्टा करे। उसकी यह अवधारणा व्यक्ति, समाज, राष्ट्र तथा विश्व सभी के लिए उपादेय है। एक आलौकिक पर्व है पर्यूषण पर्व
आषाढ़ चातुर्मास के आरंभ से मास बीस रात्रि व्यतीत होने पर और 70 दिन शेष रहने पर भगवान महावीर ने पर्यूषण पर्व की आराधना की। पर्यूषण पर्व एक आलौकिक पर्व है, जिसकी आठ दिनों तक आराधना की जाती है। श्रावक श्राविकाएं इन दिनों विशेष तप, व्रत तथा अनुष्ठान आदि करते है। इसके समापन पर संवत्सरी पर्व का प्रादुर्भाव होता है। हम एक दूसरे से क्षमा याचना करते है। देखना यह है कि हमारी यह क्षमा याचना औपचारिक है अथवा वास्तविक। जो व्यक्ति ह्दय से क्षमायाचना करता है। वह इस पर्व को मनाने का अधिकारी है। यह पर्व मानव मात्र के लिए है। अत: इसे विश्व क्षमापना दिवस के रुप में मनाना चाहिए। अ
रामकुमार जैन
मार्ग-दर्शक, ऑल इंडिया जैन काफ्रेंस
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