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    Bhai Dooj 2022: भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक त्योहार ‘भाई दूज’, आज ही मनाना उचित; जानिए शुभ मुहूर्त

    By Krishan Gopal Edited By: Vinay kumar
    Updated: Wed, 26 Oct 2022 08:43 AM (IST)

    Bhai Dooj 2022 in Ludhiana इस साल भाई दूज की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन है। कुछ लोग 26 को तो कुछ लोग 27 अक्तूबर को भाई दूज मनाने की बात कह रहे हैं। भाई दूज दोपहर में मनाया जाने वाला पर्व है तो 26 अक्तूबर को मनाना उचित रहेगा।

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    Bhai Dooj 2022: भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक त्योहार है भाई दूज।

    कृष्ण गोपाल, लुधियाना।  भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद और गोवर्धन पूजा के ठीक अगले दिन मनाया जाता है। इस पर्व के साथ ही पांच दिन के दीपोत्सव का समापन हो जाता है। हालांकि इस साल भाई दूज की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन है। कुछ लोग 26 को तो कुछ लोग 27 अक्तूबर को भाई दूज मनाने की बात कह रहे हैं। वैसे तो दोनों दिन ही निश्चित मुहूर्त समय में इस पर्व को मनाया जा सकता है, लेकिन भाई दूज दोपहर में मनाया जाने वाला पर्व है, तो 26 अक्तूबर को मनाना उचित रहेगा। लेकिन जो लोग उदया तिथि के साथ इस पर्व मनाते हैं। वह 27 अक्टूबर को भी यह पर्व मना सकते हैं।

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    ज्योतिषाचार्या डा. पुनीत गुप्ता ने बताया कि यह पर्व भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का त्योहार का प्रतीक है। हिंदू पंचाग के अनुसार भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। भाई दूज को यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया, भैया दूज, भाई फोंटा, भात्रा द्वितीया, भाऊ बीज, भथरू द्वितीया, भाई टीका और भाई द्वितीया आदि कई अन्य नामों से भी जाना जाता है।

    लंबी आयु व सुख समृद्धि का पर्व है भाई दूज

    वर्मा ने कहा कि प्राचीन काल से यह परंपरा चली आ रही है कि भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि के लिए तिलक लगाती हैं। कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन जो बहन अपने भाई के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती हैं, उनके भाई को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाता है और भोजन करता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती।

    शुभ मुहूर्त

    ज्योतिषाचार्य डा. नीतिश वर्मा के अनुसार 26 अक्टूबर को भाई दूज मनाने का मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 18 मिनट तक 03 बजकर 33 मिनट तक है, जबकि 27 अक्टूबर को भाई दूज मनाने का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 7 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक है।

    गोवर्धन पूजा, अन्नकूट व भाई दूज आज

    दिवाली के बाद वर्ष का अंतिम सूर्य ग्रहण मंगलवार को लगा। लगभग एक घंटा 20 मिनट तक के सूर्य ग्रहण के बाद मंदिरों में साफ-सफाई की गई और कपाट खोल दिए गए। इस दौरान दीप प्रज्वलित किए गए और लोगों ने मंदिरों में पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्ध मांगी। श्री दुर्गा माता मंदिर प्रांगण में पुजारियों ने देवी-देवताओं की आरती कर सभी के लिए सुख-शांति की कामना की। इस अवसर पर पंडित हरिमोहन शर्मा ने कहा कि दीपावली के बीच लगने वाले सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है और जब यह किसी उत्सव के बीच आ जाए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। पुजारी राज शास्त्री ने बताया कि वर्ष के अंतिम ग्रहण के कारण दिवाली के अगले दिन मनाई जाने वाली गोवर्धन पूजा, अन्नकूट पर्व अब भाई दूज के साथ मनाए जाएंगे। यह दिन दीप दान के लिए काफी महत्व रखता है। उल्लेखनीय है कि अन्नकूट व गोवर्धन के अवसर पर महानगर के विभिन्न मंदिरों में आयोजन किए जाऐंगे।

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यमराज व यमुना का होता है पूजन

    सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संताने थीं, यमराज और यमुना। दोनों में बहुत प्रेम था। बहन यमुना हमेशा चाहती थीं कि यमराज उनके घर भोजन करने आया करें। लेकिन यमराज उनकी विनती को टाल देते थे। एक बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर दोपहर में यमराज उनके घर पहुंचे। 

    यमुना अपने घर के दरवाजे पर भाई को देखकर बहुत खुश हुईं। इसके बाद यमुना ने मन से भाई यमराज का बहुत आदर सत्कार करके भोजन करवाया। बहन का स्नेह देखकर यमदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर उन्होंने यमराज से वचन मांगा कि वो हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भोजन करने आएं। साथ ही मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का आदर-सत्कार के साथ टीका करें, उनमें यमराज का भय न हो। तब यमराज ने बहन को यह वरदान देते हुआ कहा कि आगे से ऐसा ही होगा।

    तब से यही परंपरा चली आ रही है। इसलिए भैयादूज वाले दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है और बहनें इसी तरह अपने भाई का आदर सतकार करके तिलक लगाकर उन्हें भोजन कराती हैं। एक दूसरी कहानी के मुताबिक, इस दिन, भगवान कृष्ण राक्षस नरकासुर को हराने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे। सुभद्रा ने फूलों की माला से उनका स्वागत किया, उनके माथे पर टीका लगाया और एक आरती की, जिससे भाई दूज का त्यौहार शुरू हुआ। उसी दिन से इस दिन को भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा।

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