अश्व संचालना आसन से पाचन में होता है सुधार
अश्व संचालना सूर्य नमस्कार का सबसे महत्वपूर्ण आसन है।
लुधियाना: अश्व संचालना सूर्य नमस्कार का सबसे महत्वपूर्ण आसन है। इसका अभ्यास करने से पेट के अंग उत्तेजित होते हैं, जो पेट को मजबूत बनाते हैं। इसे संतुलन आसनों में शामिल किया गया है जो मसल्स और मेटाबालिज्म को मजबूत बनाता है। यह रीढ़ की हड्डी को लचीला व मजबूत करता है। डिस्क की समस्या व पाचन में सुधार करता है। यह पैरों के घुटनों और टखनों को मजबूत करता है। यह शरीर को नियंत्रण और विकसित करने में मदद करता है। यह पीठ की मांसपेशियों, पैरों और कूल्हों को स्ट्रैच करता है। कब्ज से पीड़ित लोगों के लिए यह उत्तम आसन है। विधि : जमीन पर योग मैट बिछा लें। मैट के आगे खड़े हो जाएं। यहीं से सूर्य नमस्कार करते हुए पादहस्तासन में आ जाएं। इस स्थिति में बाएं पैर को यथासंभव पीछे ले जाएं और दाहिने घुटने को 90 के कोण तक मोड़ें। अब बाएं पैर के घुटने को जमीन पर रख सकते हैं। बाएं पैर से पीछे की ओर एड़ियों को दबाएं। हाथों को जमीन पर अच्छे से लगाकर और सीधा रखें। थोड़ा सा पीछे की ओर झुकें। सिर को थोड़ा पीछे झुकाते हुए आगे देखें। सूर्य नमस्कार के भाग के रूप में किए जाने पर मंत्र का जाप भी किया जा सकता है। इसके लिए 9 वें आसन अश्व संचालन में आकर 'ओम आदित्य नम:' का उच्चारण करें। चौथे आसन के दौरान 'ओम भानवे नम:' का उच्चारण करें। वापिस इसे दाएं पैर से भी करें। सावधानी : हाथों या कलाई में, टांग या जांघ में चोट होने, लो या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या, कार्पल टनल सिड्रोम, एग्जाइटी की समस्या होने पर यह आसन बिल्कुल न करें। गर्दन में दर्द होने पर ऊपर देखने की बजाय सामने या नीचे की तरफ देखें।
-योग गुरु संजीव त्यागी