क्रोध, मान, माया, लोभ मन के विकार : सुमन मुनि
जासं, लुधियाना अग्र नगर स्थित जैन स्थानक में चतुर्मास सभा में उत्तर भारतीय प्रवर्तक सुमन मुनि ने म ...और पढ़ें

जासं, लुधियाना
अग्र नगर स्थित जैन स्थानक में चतुर्मास सभा में उत्तर भारतीय प्रवर्तक सुमन मुनि ने महावीर की वाणी का बखान करते हुए कहा कि जो अविनीत व्यक्ति होता है वह सभी जगह निरादर ही पाता है। हमें भी उनके प्रति विनय का भाव रखना चाहिए। मन, वचन, काया से कर्मों के बांध हैं। जिन क्रियाओं को करने से हमारे जीवन का उत्थान हो वह सबसे श्रेष्ठ क्रिया है। महावीर स्वामी ने चार कषाय बताए न क्रोध, मान, माया, लोभ। ये मन के चार विकार हैं। कषाय का अर्थ है कष +य यानि मलिनता और दूसरा अर्त जन्म-मरण है । जब क्रोध, अंहकार, लालच, माया आते हैं तो जीवन में मलिनता आ जाती है। क्रोध अग्नि का तप है। यह चारों कषाय हमारे कर्मो का बंध करते है। प्रभु ने बताया क्रोध को शांति से, अहंकार को कोमलता, नम्रता से जीता जा सकता है।
माया को निर्मलता से जीता जा सकता है। लोभ को संतोष से जीता जा सकता है।
श्री उत्तराध्यान सूत्र में न क्रोध, मान, माया, लोभ की प्रगति बताई है। क्रोध की प्रकृति उष्ण है। माया के जाल की तरह, अहंकार की प्रकृति कठोर है। लोभ की प्रकृति चिकनी है। इन चारों कषायों को जीवन में नहीं आने देना चाहिए।

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