नकारात्मक सोच हो हावी तो समझे ब्रेन में सेरोटोनिन केमिकल की कमी
आशा मेहता,लुधियाना पैंतीस वर्षीय विजय (काल्पनिक नाम) अपनी खुशमिजाजी और जिंदादिली के लिए दोस्तों व ...और पढ़ें

आशा मेहता,लुधियाना
पैंतीस वर्षीय विजय (काल्पनिक नाम) अपनी खुशमिजाजी और जिंदादिली के लिए दोस्तों व रिश्तेदारों में जाने जाते थे। जहा वे खड़े हो जाते, वहा हंसी के ठहाके गूंज उठते। नकारात्मक सोच तो उनके आसपास भी नजर नहीं आती और हमेशा जिंदगी को जिंदादिली से जीने का सबक बांटते। अचानक ही उनका व्यवहार बदलने लगा। उनके चेहरे पर हंसी की बजाय गुस्सा व तनाव, हिम्मत-धैर्य की जगह जिंदगी से शिकवा शिकायत से भरी निराशा भरी सोच नजर आने लगी। परिवार रमेश के इस बदले व्यवहार को लेकर काफी हैरान और चिंतित था। उन्होंने इन लक्षणों को अंधविश्वास से जोड़कर तरह-तरह के टोटके व उपाय किए, लेकिन तब भी रमेश की मनोदशा में कोई सुधार नहीं आया। तभी किसी की ने रमेश को मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी। जब रमेश मनोचिकित्सक के पास पहुंच,तो मालूम चला कि उनके बदले व्यवहार की वजह ब्रेन में सेरेटोनिन केमिकल की कमी है। मनोचिकित्सक के अनुसार ब्रेन में सेरोटोनिन केमिकल की कमी नकारात्मक सोच को बढ़ाती है
क्या है सेरोटोनिन केमिकल
फोर्टिस अस्पताल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अजयपाल संधू के अनुसार हमारे ब्रेन में दस हजार करोड़ सेल होते हैं। उन सेल में कई तरह के केमिकल होते हैं, जिसमें से सेरोटोनिन केमिकल प्रमुख है। यह केमिकल व्यक्ति के मिजाज को शांत और प्रसन्न रखता है। सेरोटोनिन केमिकल का काम ब्रेन के सेल के बीच संदेश पहुंचाना है, लेकिन जब सेल के भीतर इस केमिकल की कमी होती है तो ब्रेन सेल तक संदेश ठीक तरह से नहीं पहुंच पाते और व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आना शुरू हो जाता है। कई बार तो इस केमिकल की अधिक कमी के कारण डिप्रेशन की बीमारी भी लग जाती है और स्थिति तब खतरनाक हो जाती है, जब डिप्रेशन बढ़ने पर व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है।
इलाज से पूरी की जा सकती है सेरोटोनिन केमिकल की कमी
डॉ. अजयपाल संधू के अनुसार विचार व व्यवहार में नकारात्मकता के कारक सेरोटोनिन केमिकल की कमी को पूरा करने के लिए इलाज के दौरान कुछ सुरक्षित और सस्ती दवाएं दी जाती हैं। इनका कोई खास साइडइफेक्ट नहीं होता। कुछ महीने तक दवा,काउंसलिंग के साथ-साथ मेडिटेशन और योग की मदद से व्यक्ति के अंदर की नकारात्मक सोच धीरे-धीरे खत्म होने लगती है और सकारात्मक सोच का फिर से संचार शुरू हो जाता है। डॉ.संधू कहते है कि उनके पास बहुत से ऐसे मरीज आते हैं, जिनके अंदर नकारात्मकता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि वह जिंदगी से मायूस हो चुके होते हैं। उन्हें अपने भी पराए लगते हैं, लेकिन जब वे इलाज करवाते है तो उनकी सोच परिवर्तित हो जाती है।
ये लक्षण नजर आते ही इलाज करवाना जरूरी
माइंड प्लस रिट्रेट सेंटर के प्रमुख डॉ.कुनाल काला के अनुसार मानसिक रोगों का इलाज किया जाना जरूरी है। मानसिक रोगों की श्रेणी में जो लक्षण शामिल हैं,उनमें बीती बातों या घटनाओं को याद करते रहना। स्वयं से घृणा करना। किसी भी प्रकार के मनोरंजन कार्य-कलापों में रूचि न लेना। अचानक अत्यंत उत्तेजक और ¨हसक हो जाना। याददाश्त का बहुत ज्यादा कमजोर हो जाना। समाज व सामाजिक कार्यो से खुद को अलग रखना। नींद ठीक तरह न आना। अकेले बैठे रहना। सिर में लगातार दर्द, घबराहट, बेचैनी व तनाव में रहना। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना,अत्याधिक शराब और सिगरेट पीना। एक जगह पर स्थिर न बैठना, बातें भूल जाना,अचानक रोने लगना,भूख न लगना, खुद को शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाना और बिना वजह डर की अनुभूति होना शामिल है।

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