चुंगी खत्म होने से बिगड़ी नगर निगम जालंधर की आर्थिक स्थिति, कर्मचारियों के वेतन के लिए बैंकों से ओवर ड्राफ्ट कर निकालने पड़ रहे पैसे
जालंधर नगर निगम की वित्तीय स्थिति 16 सालों से लगातार खराब होती जा रही है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते चुंगी खत्म होने के बाद आय के दूसरे स्रोतों को और विकसित करने का काम नगर निगम ने कभी किया ही नहीं है।

मनोज त्रिपाठी/जगजीत सुशांत, जालंधर। शहर के विकास की जिम्मेवारी अपने कंधों पर ढोने वाले नगर निगम की वित्तीय स्थिति 16 सालों से लगातार खराब होती जा रही है। चुंगी खत्म होने के बाद से नगर निगम के हालात ऐसे हो गए हैं कि कई बार कर्मचारियों के वेतन के लिए भी बैंकों से ओवर ड्राफ्ट करके धनराशि निकालनी पड़ती है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते चुंगी खत्म होने के बाद आय के दूसरे स्रोतों को और विकसित करने का काम नगर निगम ने कभी किया ही नहीं है। अब वैट व जीएसटी के अलावा सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले फंड पर निगम पूरी तरह से निर्भर हो चुका है।
इसके चलते नगर निगम के विभिन्न विभाग भी अपनी तरफ से राजस्व वसूली को लेकर कभी गंभीर नहीं दिखाई देते हैं। प्रापर्टी टैक्स से लेकर सीवरेज व पानी के बिलों के अलावा नागरिकों से वसूले जाने वाले करीब 20 प्रकार के टैक्सों की भी पूरी वसूली नगर निगम नहीं कर पा रहा है। इसका सीधा असर शहर के विकास पर पड़ रहा है और पंजाब के खूबसूरत शहरों में शुमार रहे जालंधर की तस्वीर और पहचान अब कूड़े वाले शहर के रूप में होने लगी है।
साल 2006 में पंजाब सरकार ने चुंगी को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही नगर निगम की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ती गई। इसके दो प्रमुख कारण हैं एक तो नगर निगम का अपना खुद का आय का स्रोत खत्म हो गया और दूसरा निगम आर्थिक तौर पर पूरी तरह से राज्य सरकार पर निर्भर हो गया। यह निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि उसके बाद आज तक निगम अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया। राज्य सरकार पर निर्भर होने का नुकसान यह रहा कि अब निगम का हर फैसला सरकार की मंजूरी को मोहताज हो गया।
चुंगी कर के बदले नगर निगम को पहले वैट और अब जीएसटी का हिस्सा तो मिल रहा है, लेकिन निगम की आय कैसे बढ़ानी है और इसे जरूरत के हिसाब से कब कहां खर्च करना है इस पर नियंत्रण नहीं रहा है। राज्य सरकार से जीएसटी के हिस्से का पैसा आता है जो कर्मचारियों के वेतन का खर्च निकल जाता है। नगर निगम की क्रिएटिविटी खत्म हो गई है और जनप्रतिनिधि भी अब आय के नए सोर्स बनाने के बजाय सरकार की तरफ ही देखते रहते हैं। निगम ने पिछले 25 सालों में कोई नया कर नहीं लगाया। यहां तक कि आय के जो अन्य सोर्स हैं उनको भी बढ़ाने की कोशिश नहीं कि गई।
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