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    चुंगी खत्म होने से बिगड़ी नगर निगम जालंधर की आर्थिक स्थिति, कर्मचारियों के वेतन के लिए बैंकों से ओवर ड्राफ्ट कर निकालने पड़ रहे पैसे

    By Vinay KumarEdited By:
    Updated: Thu, 28 Jul 2022 07:01 AM (IST)

    जालंधर नगर निगम की वित्तीय स्थिति 16 सालों से लगातार खराब होती जा रही है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते चुंगी खत्म होने के बाद आय के दूसरे स्रोतों को और विकसित करने का काम नगर निगम ने कभी किया ही नहीं है।

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    जालंधर नगर निगम की आर्थिक स्थिति चुंगी खत्म होने से बिगड़ी।

    मनोज त्रिपाठी/जगजीत सुशांत, जालंधर। शहर के विकास की जिम्मेवारी अपने कंधों पर ढोने वाले नगर निगम की वित्तीय स्थिति 16 सालों से लगातार खराब होती जा रही है। चुंगी खत्म होने के बाद से नगर निगम के हालात ऐसे हो गए हैं कि कई बार कर्मचारियों के वेतन के लिए भी बैंकों से ओवर ड्राफ्ट करके धनराशि निकालनी पड़ती है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते चुंगी खत्म होने के बाद आय के दूसरे स्रोतों को और विकसित करने का काम नगर निगम ने कभी किया ही नहीं है। अब वैट व जीएसटी के अलावा सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले फंड पर निगम पूरी तरह से निर्भर हो चुका है।

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    इसके चलते नगर निगम के विभिन्न विभाग भी अपनी तरफ से राजस्व वसूली को लेकर कभी गंभीर नहीं दिखाई देते हैं। प्रापर्टी टैक्स से लेकर सीवरेज व पानी के बिलों के अलावा नागरिकों से वसूले जाने वाले करीब 20 प्रकार के टैक्सों की भी पूरी वसूली नगर निगम नहीं कर पा रहा है। इसका सीधा असर शहर के विकास पर पड़ रहा है और पंजाब के खूबसूरत शहरों में शुमार रहे जालंधर की तस्वीर और पहचान अब कूड़े वाले शहर के रूप में होने लगी है।

    साल 2006 में पंजाब सरकार ने चुंगी को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही नगर निगम की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ती गई। इसके दो प्रमुख कारण हैं एक तो नगर निगम का अपना खुद का आय का स्रोत खत्म हो गया और दूसरा निगम आर्थिक तौर पर पूरी तरह से राज्य सरकार पर निर्भर हो गया। यह निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि उसके बाद आज तक निगम अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया। राज्य सरकार पर निर्भर होने का नुकसान यह रहा कि अब निगम का हर फैसला सरकार की मंजूरी को मोहताज हो गया।

    चुंगी कर के बदले नगर निगम को पहले वैट और अब जीएसटी का हिस्सा तो मिल रहा है, लेकिन निगम की आय कैसे बढ़ानी है और इसे जरूरत के हिसाब से कब कहां खर्च करना है इस पर नियंत्रण नहीं रहा है। राज्य सरकार से जीएसटी के हिस्से का पैसा आता है जो कर्मचारियों के वेतन का खर्च निकल जाता है। नगर निगम की क्रिएटिविटी खत्म हो गई है और जनप्रतिनिधि भी अब आय के नए सोर्स बनाने के बजाय सरकार की तरफ ही देखते रहते हैं। निगम ने पिछले 25 सालों में कोई नया कर नहीं लगाया। यहां तक कि आय के जो अन्य सोर्स हैं उनको भी बढ़ाने की कोशिश नहीं कि गई।

    चुंगी खत्म न होती तो निगम खुद कमाता 500 करोड़ रुपये
    साल 2006 में जब चुंगी कर माफ किया गया था, तब निगम को करीब 58 करोड़ रुपये चुंगी ठेके से मिल रहे थे और यह माना जा रहा था कि अगर निगम इस पर अच्छा काम करेगा तो यह इनकम 90 से 100 करोड़ भी हो सकती है। तब यह आय काफी अधिक मानी जाती थी। अगर इस समय चुंगी होती तो नगर निगम की आय इसी सोर्स से 400 से 500 करोड़ हो सकती थी। कारण, शहर का दायरा बहुत अधिक बढ़ गया है और जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है उस हिसाब से उत्पाद पर चुंगी भी बढ़ती। व्यापार कई गुणा बढ़ा है और कामर्शियल यूनिट्स की गिनती भी कई गुणा बढ़ गई है।
    बिजली पर चुंगी से मिल रहा सिर्फ पांच करोड़ रुपये
    नगर निगम को अब सिर्फ बिजली पर ही चुंगी मिलती है। यह बेहद कम है और इससे निगम के आर्थिक हालात नहीं सुधर सकते। इससे सालाना आय मात्र पांच करोड़ के आसपास ही रहती है। नगर निगम का राजस्व साल 2004-2005 में चुंगी कर बढ़ने से बढ़ा था। तब चुंगी से ही 58 करोड़ रुपये मिले थे। निगम की चुंगी से कमाई साल 2001-02 के पास रोजाना करीब सात से आठ लाख थी, लेकिन जब इसका ठेका दिया जाने लगा तो इसमें सुधार हुआ और तीन साल में ही निगम की आय 20 लाख रुपये रोजाना तक पहुंच गई थी, जबकि इसे 30 लाख ले जाने का लक्ष्य रखा गया था। आज यह आय एक करोड़ रुपये से ज्यादा होती और निगम को साल में सभी 365 दिन कमाई होती। ऐसे में कोई भी नई योजना बनाने के लिए फंड का इंतजार नहीं करना पड़ता।
    जीएसटी में हिस्से ने कमाई और सोच सीमित की
    चुंगी कर हटाने के बाद निगम की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई। आय का यह सबसे बड़ा स्त्रोत था। निगम की आय में करीब 50 करोड़ की गिरावट आई और इसके बाद निगम कभी लाभ में नहीं आ सका। चुंगी के बदले निगम को राज्य सरकार ने वैट में हिस्सा देना शुरू किया। निगम के घाटे की भरपाई तो होने लगी, लेकिन निगम का विजन सीमित हो गया। इसके बाद निगम ने अपने दम पर आर्थिक रूप से मजबूत होने की कोशिश ही नहीं की। न कोई नया कर लगाया गया और न ही निगम को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए किसी रणनीति पर काम किया। निगम ने आय के दूसरे स्रोतों पर भी काम बंद कर दिया। विधायकों, लोकल बाडी मंत्री व अफसरों का दखल बढ़ गया।

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