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    दोआबा से कौन बनेगा मंत्री, दावेदारों का इंतजार हुआ लंबा, परगट व गिलजियां को जल्दबाजी पड़ रही भारी

    By Vinay KumarEdited By:
    Updated: Wed, 22 Sep 2021 11:45 AM (IST)

    नवजोत सिंह सिद्धू के पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनने के बाद संगत सिंह गिलजियां को कार्यकारी प्रधान व परगट सिंह को संगठन में महासचिव बनाया गया था। अब यही ओहदे इनके मंत्री बनने में सबसे बड़ा अड़ंगा बने हुए हैं।

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    दोआबा से कौन बनेगा मंत्री इसको लेकर अभी मंथन जारी है।

    जालंधर [मनोज त्रिपाठी]। कैप्टन अमरिंदर सिंह के सीएम पद से हटने के बाद नए मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी के मंत्रीमंडल में दोआबा से किसे जगह दी जाए इसे लेकर अभी तक मंथन जारी है। दोआबा से मंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे कैंट हलके के विधायक परगट सिंह व होशियारपुर के उड़मुड़ हलके के विधायक संगत सिंह गिलजियां पर संगठन में बड़े ओहदे लेने की जल्दबाजी भारी पड़ रही है। नवजोत सिंह सिद्धू के पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनने के बाद गिलजियां को कार्यकारी प्रधान व परगट सिंह को संगठन में महासचिव बनाया गया था। अब यही ओहदे इनके मंत्री बनने में सबसे बड़ा अड़ंगा बने हुए हैं।

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    कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए सिद्धू के साथ-साथ बगावत का झंडा बुलंद करने में परगट सिंह ने भी बराबर का साथ दिया था। संगत सिंह गिलजियां के साथ कैप्टन का 2007 के चुनाव से ही छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है। उस समय कैप्टन के इशारे पर गिलजियां का टिकट काटा गया था। इसेक बाद गिलजियां आजाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे थे। इलाके में अच्छा रसूख रखने व समाज सेवा के चलते गिलजियां चुनाव जीते भी थे। उसके बाद कुछ कांग्रेस नेताओं ने गिलजियां व कैप्टन के साथ मतभेद खत्म करने की भी कवायद की थी। कैप्टन को सरकार बनाने के लिए कुछ विधायकों की जरूरत थी, लेकिन गिलजियां नहीं माने थे। उड़मुड़ स्थित फैक्ट्री से लेकर चंडीगढ़ तक कई बैठकों करने के बाद भी गिलजियां नहीं माने थे। यही वजह थी कि गिलजियां उसके बाद से ही कैप्टन के विरोधी गुट में शामिल रहे। यही वजह है कि सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस की कमान संभालने के  बाद कार्यकारी प्रधान के रूप में गिलजियां का चुनाव किया था। गिलजियां ने भी हामी भर दी थी।

    यही आलम परगट सिंह का भी रहा। जालंधर की सियासत में साढ़े चार सालों तक दबे रहने के बाद परगट सिंह ने भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कैप्टन के विरोध का कोई मौका नहीं छोड़ा था। सिद्धू के साथ ही परगट ने कांग्रेस ज्वाइन की थी। हलके में विकास कार्यों को लेकर मेयर के खिलाफ कैप्टन से लेकर उनके प्रमुख सचिव रहे सुरेश कुमार तक के दरबार में परगट ने कई बार गुहार लगाकर तमाम काम करवाए हैं। सिद्धू के पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनने के बाद परगट को भी कैप्टन के विरोधी गुट का होने के चलते संगठन में महासचिव बनाया दिया था। अब बड़े उलटफेर के बाद गिलजियां व परगट दोनों ही मंत्री बनने की दौड़ में हैं, लेकिन संगठन में बड़े ओहदे होने के चलते उन्हें मंत्री बनाने को लेकर तकनीकी पेंच फंसा हुआ है। परगट की तरफ से मंत्री बनने को लेकर जोरदार लाबिंग की जा रही है। परगट को भी पता है कि इस बार भले ही छह महीने के लिए सही अगर मंत्री नहीं बन पाए तो आगे भी शायद ही नंबर लगे। दोनों नेताओं के करीबियों में इस बात को लेकर भी चर्चा हो रही है अगर पहले जल्दबाजी न की होती तो आज मंत्री बनने का रास्ता साफ होता।

    अंबिका सोनी के चलते अरोड़ा को भी मिल सकता है जीवनदान

    चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिन मंत्रियों की मंत्रिमंडल से छुट्टी तय मानी जा रही है उनमें इंडस्ट्री एवं कामर्स मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा का नाम भी शामिल है। इन्हीं के स्थान पर दोआबा से किसी दूसरे चेहरे को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने पर विचार किया जा रहा है। अरोड़ा के अंबिका सोनी के साथ पुराने सियासी संबंध हैं। अंबिका की सिफारिश पर ही अरोड़ा को कैप्टन के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। इस बार भी चन्नी मंगलवार को दिल्ली गए हैं तो पहला मंथन सोनी के साथ ही किया जा रहा है। अरोड़ा के करीबियों का मानना है कि अंबिका सोनी कभी नहीं चाहेंगी अरोड़ा को हटाया जाए। इसलिए नए मंत्रीमंडल में भी अरोड़ा बरकरार रह सकते हैं। हालांकि सिद्धू ने चन्नी से कोशिश की है कि अरोड़ा के स्थान पर दोआबा से किसी अन्य को मंत्री बनाया जाए।

     

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