Indian Navy: बड़े मिशन पर विशाखापट्टनम शिपयार्ड, 2030 तक नौसेना को बनाएगा आत्मनिर्भर, इतिहास में दर्ज होगी गौरव गाथा
Indian Navy विशाखापट्टनम शिपयार्ड को भारत का गौरव कहें तो कोई गलत नहीं होगा। पूर्वी कमान का यह सबसे बड़ा शिपयार्ड नौसेना को नई तकनीक से लैस करने के साथ ही आत्मनिर्भर बनाने में जुटा है। शिपयार्ड का लक्ष्य 2030 तक नौसेना को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है।

विशाखापट्टनम, [नितिन उपमन्यु]। Indian Navy: विशाखापट्टनम शिपयार्ड गौरव गाथा लिखने में जुटा हुआ है।कोच्चि में आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रांत को नौसेना में शामिल करेंगे, तो दूसरी ओर भारतीय नौसेना की पूर्वी कमान के सबसे बड़े शिपयार्ड (डॉकयार्ड) में भी इतिहास लिखा जाएगा। विशाखापट्टनम शिपयार्ड इन दिनों अपने स्वर्ण जयंती वर्ष पर आइएनएस मैसूर को नया रूप देने में जुटा है, जिससे भारतीय नौसेना की ताकत और बढ़ जाएगी।
स्वर्ण जयंती वर्ष में आइएनएस मैसूर को नया रूप देने में जुटा है विशाखापट्टनम शिपयार्ड
यह गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक है। इसे यहां अत्याधुनिक तकनीक के साथ अपग्रेड किया जा रहा है। यह जल्द ही फिर से नौसेना के बेड़े में शामिल होगा। 29 मार्च को ही शिपयार्ड ने अपनी स्वर्ण जयंती मनाई है। ऐसे में यह वर्ष इसके लिए विशेष उपलब्धि वाला रहेगा।
पूर्वी कमान के सबसे बड़े शिपयार्ड में स्वदेशी तकनीक से लैस हो रही भारतीय नौसेना
डॉकयार्ड के एडमिरल सुपरिंटेंडेंट संजय साधू कहते हैं कि हम इस समय 90 प्रतिशत तक स्वदेशी तकनीक व साजो-सामान का उपयोग कर रहे हैं। 2030 तक हम नौसेना को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने में कामयाब होंगे। यह देश का पहला स्मार्ट शिपयार्ड है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर तेजी से काम हो रहा है।
663 एकड़ क्षेत्र में फैला है यह शिपयार्ड, एक साल में यहां बनाए जाते हैं 60 जहाज
उन्होंने बताया कि 663 एकड़ क्षेत्र में फैले इस शिपयार्ड में एक साल में 60 जहाज बनाए जा रहे हैं और इनकी मरम्मत की जा रही है। पनडुब्बी निर्माण में भी यहां अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। एडमिरल सुपरिंटेंडेंट संजय साधू के अनुसार हम हिंद महासागर में बढ़ रहीं चीन की गतिविधियों को देखते हुए ही तैयारी कर रहे हैं। 5500 से भी ज्यादा डिफेंसकर्मी रात-दिन इस कार्य में लगे हैं। कुछ काम आउटसोर्सिंग पर भी हो रहा है।
क्या होता है शिपयार्ड
शिपयार्ड या डॉकयार्ड वह स्थान है, जहां जहाज व पनडुब्बी बनाए जाते हैं और उनकी मरम्मत होती है। यहां विमानवाहक युद्धपोतों और पनडुब्बियों को समय के साथ-साथ अत्याधुनिक तकनीक से अपग्रेड किया जाता है। आइएनएस मैसूर को नया रूप देने में जुटे कैप्टन पद्मनाभ अगिथा ने बताया कि विशाखापट्टनम ड्राई डाकयार्ड बंगाल की खाड़ी में सबसे बड़ा है। आइएनएस मैसूर को पूरी तरह तैयार होने में अभी दो महीने से भी ज्यादा का समय लगेगा। वहीं, कमांडर केजी मुथन्ना के अनुसार आने वाले समय में हम हर तरह की तकनीक भारत में ही तैयार कर पाएंगे।
पानी के अंदर से होने वाले हमलों को नाकाम करेगा कमाेर्ता
इस शिपयार्ड में तैयार हुआ आइएनएस कमोर्ता ऐसा विमानवाहक युद्धपोत है, जिसका 90 प्रतिशत साजो-सामान स्वदेशी है। इस पोत में पनडुब्बीरोधी राकेट व टारपीडो तैनात किए गए हैं। स्वदेश में विकसित रेवती राडार इस पोत पर लगा है। यह पोत पनडुब्बीरोधी युद्धक से युक्त हेलीकाप्टर को ले जाने में भी सक्षम है।
सोनार तकनीक से लैस यह युद्धपोत पानी के अंदर से होने वाले हमलों को नाकाम करने में पूरी तरह सक्षम है। सोनार ध्वनिक माध्यमों से पानी के नीचे की वस्तुओं की दूरी और दिशा का पता लगाने और निर्धारित करने की तकनीक है। कोमार्ता श्रेणी के आइएनएस कदमट्ट व आइएनएस किलतान भी यहीं तैयार किए गए हैं, जो अब नौसेना में सेवाएं दे रहे हैं।
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