Frontier Mail थी बिट्रिश काल की सबसे लग्जरी गाड़ी, ठंडा रखने को फ्लोर के नीचे रखी जाती थी बर्फ की सिल्लियां
India Train History फ्रंटियर मेल को 1 सितंबर 1928 को पहली बार रवाना किया गया था। इसे अब गोल्डन टेंपल मेल के नाम से जाना जाता है। मुंबई से पेशावर तक जाने के कारण ही ही फ्रंटियर मेल नाम दिया गया था।
हरीश शर्मा, अमृतसर। फ्रंटियर मेल सुनते ही जहन में ट्रेन का नाम आ जाता है। इसे अब गोल्डन टेंपल मेल के नाम से जाना जाता है। यह अंग्रेजों के जमाने की ट्रेनों में से एक है। यह आज भी अमृतसर से यात्रियों को अपनी मंजिल तक पहुंचा रही हैं। अपने शुरुआती दौर में फ्रंटियर मेल बंबई (अब मुंबई) को पेशावर से जोड़ती थी। यह बंटवारे से पहले भारत के पश्चिमोत्तर सरहदी राज्य में स्थित था। इसी से इसका नाम फ्रंटियर मेल पड़ा था।
1996 में इसका नाम बदलकर सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर के नाम पर कर दिया गया था। यह फ्रंटियर मेल ब्रिटिश काल की सबसे लग्जरी गाड़ियों में से एक थी। इसे पहली एसी ट्रेन भी कहा जाता हैं। हालांकि 1928 में एसी नहीं होते थे, मगर ट्रेन को अंदर ठंडा करने के लिए इसके फ्लोर के नीचे बर्फ की सिल्लियां लगाई जाती थी जिससे डिब्बों का तापमान बहुत कम हो जाता था। इसके अलावा इस गाड़ी में रेडियो की सुविधा भी दी गई थी। रेडियो पर यात्री खबरें सुनते थे और गीतों का आनंद भी उठाते थे।
इस रेलगाड़ी का जिक्र हिंदी फिल्म ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस : द फारगाटन हीरो’ में किया गया है। कहते हैं कि नेताजी 1944 में फ्रंटियर मेल से पेशावर गए थे और वहां से काबुल को चले गए थे। देश के विभाजन के बाद फ्रंटियर मेल मुंबई और अमृतसर के बीच चलाई जाने लगी।
मुंबई से पेशावर के बीच चलती थी गाड़ी
फ्रंटियर मेल को 1 सितंबर, 1928 को पहली बार रवाना किया गया था। जब इसे शुरू किया था तो यह रेलगाड़ी मुंबई के बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन से पेशावर के बीच चलती थी। जब बल्लार्ड पियर स्टेशन को बंद किया गया तो इसका आरंभिक स्टेशन कोलाबा, मुंबई कर दिया गया। आज पेशावर पाकिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन यूरोप से पीएंडओ स्टीमर द्वारा आई डाक का लदान स्टेशन भी था। खास बात यह है कि उस समय जहां पंजाब मेल मुंबई से पेशावर जाने में कई दिन लगाती थी, वहीं फ्रंटियर मेल सिर्फ 72 घंटे में पेशावर पहुंचती थी।
देश की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन रह चुकी
फ्रंटियर मेल को यात्रियों और डाक को मुंबई से दिल्ली ले जाने के लिए शुरू किया गया था और उसके बाद नार्थ वेस्टर्न रेलवे के सहयोग पेशावर तक जाती थी। मुंबई और दिल्ली के बीच रेलगाड़ी लगभग 1393 किमी की दूरी तय करती थी जबकि मुंबई से पेशावर के बीच की दूरी 2335 किमी थी।
यह रेलगाड़ी एक लंबे समय तक देश की सबसे तेज चलने वाली रेलगाड़ी बनी रही। 1930 में लंदन के ‘द टाइम्स’ ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर चलने वाली एक्सप्रेस गाड़ियों में से सबसे प्रसिद्ध रेलगाड़ी बताया। आने वाली 31 अगस्त को यह 94 साल की हो जाएगी।
15 मिनट लेट होने पर बिठा दी गई थी जांच
यह ट्रेन उस समय अपने समय की इतनी पाबंद थी कि लोग कहते थे कि घड़ी गलत हो सकती है, लेकिन फ्रंटियर मेल लेट नहीं हो सकती। रेलवे हेरिटेज अधिकारी के मुताबिक एक बार यह ट्रेन 15 मिनट लेट हो गई थी तो इसके जांच के आदेश दे दिए गए थे। यही नहीं रेलवे अभिलेखागार के मुताबिक जब फ्रंटियर मेल मुंबई पहुंचती थी तो इसके सुरक्षित आगमन की जानकारी देने के लिए ऊंची इमारतों से विशेष लाइटिंग की जाती थी।