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    Jalandhar: 185 कि.मी के हाईवे एरिया में एक भी रेस्ट एरिया नहीं, चालक सड़क पर वाहन खड़े कर नींद करते हैं पूरी

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    Updated: Fri, 18 Nov 2022 07:33 AM (IST)

    जालंधर जिले की सीमा में आते 185 किलोमीटर के नेशनल हाईवे में एक भी जगह रेस्ट एरिया नहीं है।करतारपुर से फिल्लौर तक सबसे ज्यादा 70 किलोमीटर का हाईवे जालं ...और पढ़ें

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    दकोहा फाटक के पास निर्माण कार्य पर डायवर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड नहीं लगाया। (विजय शर्मा)

    जागरण टीम, जालंधर : जालंधर जिले की सीमा में आते 185 किलोमीटर के नेशनल हाईवे में एक भी जगह रेस्ट एरिया नहीं है। रेस्ट एरिया नहीं होने के कारण चालक वाहनों को हाईवे पर किनारे ही खड़ा करके अपनी नींद पूरी करते हैं। धुंध के दिनों में इन्हीं किनारे खड़े वाहनों से हाईवे पर तेज रफ्तार में चल रहे वाहन टकराते हैं। हाईवे से एक घुमाव देकर रेस्ट एरिया इसलिए बनाया जाता है ताकि चालक अपने वाहन वहां खड़े कर कुछ देर आराम कर सकें और हाईवे पर बिना किसी बाधा के यातायात चलता रहे लेकिन नेशनल हाईवे अथारिटी ने एक भी रेस्ट एरिया बनाना जरूरी नहीं समझा। करतारपुर से फिल्लौर तक सबसे ज्यादा 70 किलोमीटर का हाईवे जालंधर की सीमा में आता है। यहां तरफ एक भी रेस्ट एरिया नहीं है।

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    यही हाल नकोदर चौक से शाहकोट तक 55 किलोमीटर और पठानकोट से चौलांग व रामामंडी से आदमपुर 30-30 किलोमीटर एरिया का है। यानी चारों हाईवे पर आप किसी भी तरफ से आ-जा रहे हैं तो आपको सुविधाओं से सुसज्जित कोई रेस्ट एरिया नहीं मिलेगा। आलम ये हो गया कि कई स्थानों पर ट्रक व अन्य वाहन चालकों ने हाईवे को ही पार्किंग स्थल बना डाला है। वे हाईवे पर ही वाहन खड़ा करके आराम करते हैं या कारें खड़ी करके बाजारों से सामान खरीदने चले जाते हैं। हाईवे बनने के बाद उसके रखरखाव और मानकों के मुताबिक इसका संचालन फाइलों की कैद से बाहर नहीं निकल पा रहा।

    जालंधर के दकोहा फाटक के पास चल रहे निर्माण कार्य पर डायवर्शन के लिए ना तो कोई साइन बोर्ड लगाया गया और ना ही किसी व्यक्ति को तैनात किया गया। (विजय शर्मा)

    हालांकि कुछ जगह बस या ट्रक लेन लिखकर जगह दी गई है लेकिन वह जगह सुनसान होने व किसी तरह की सुविधा नहीं मिलने के कारण लोग हाईवे पर ही वाहन खड़ा करते है। इनके चालान भी आज तक यातायात विभाग ने नहीं काटे। रोजाना ऐसे दर्जनों वाहन आपको हाईवे के किनारे लाइन बनाए खड़े मिल जाएंगे। रेस्ट एरिया के नहीं होने के कारण वाहन चालक को नींद आने पर भी वह गाड़ी नहीं रोकता और उनकी झपकी के कारण हादसे होते हैं। ढाबा चालक भी उनको ज्यादा देर रुकने या वाहन खड़ा करने नहीं देते। सुविधाओं से लैस रेस्ट एरिया हों तो हादसों में बड़े स्तर पर कमी लाई जा सकती है।

    रांग साइड ड्राइविंग भी खतरनाक सड़क के सुरक्षा मानक

    गलत दिशा में ड्राइविंग नहीं करने की नसीहत देते हैं, परंतु लोग रांग साइड वाहन चलाने से गुरेज नहीं करते। हाईवे पर कट दूर होने के कारण कई बार वाहन चालक अपने गंतव्य तक जाने के लिए समीपवर्ती रोड कट से रांग साइड में एंट्री करते हैं। रांग साइड में वाहनों के आवागमन से अकसर वाहनों के आपस में टकराने की घटनाएं होती हैं, जो वाहन चालकों के लिए जानलेवा साबित होती हैं। ट्रैफिक पुलिस भी इस पर रोक नहीं लगा पाई।

    मनमाफिक कट सबसे बड़ा खतरा

    हाईवे के ऊपर लोगों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक डिवाइडर को तोड़कर अवैध कट बना लिए गए हैं। अवैध कटों में से दपहिया वाहन चालक तीव्र गति से हाईवे के मध्य में पहुंच जाते हैं और हाईवे पर तीव्र गति से आ रहे वाहनों से जा टकराते हैं। अवैध कट रोकने के लिए प्रशासन भी गंभीरता नहीं दिखा रहा है। कहीं हाईवे की तरफ से पत्थर की छोटी दीवारें डिवाइडर के रूप में बनाकर रास्ता रोका भी गया है तो लोगों ने उसे भी खिसका कर रास्ते निकाल लिए हैं। जालंधर में सबसे ज्यादा संवेदनशील विधिपुर सहित नेशनल हाईवे 44 पर करतारपुर से लेकर फिल्लौर तक ऐसे 30 से ज्यादा कट हैं या अवैध रास्ते बनाए गए हैं, जिनका इस्तेमाल हाईवे पर सीधे इंट्री व एक्जिट के लिए किया जाता है।

    लापरवाही भरी डायवर्जन सड़कों के निर्माण (प्रीमिक्स डालने) अथवा किसी दुर्घटना होने की वजह से की जाने वाली डायवर्जन भी वाहन चालकों के लिए भारी खतरा है। डायवर्जन के दौरान तयशुदा मानक व्यवस्था को अनदेखा कर दिया जाता है। डायवर्जन पर सुरक्षा के मानकों को अनदेखा किया जाता है। स्टाफ की भी तैनाती नहीं की जाती। डायवर्जन भी गलत दिशा से करवाया जाता है। अगर एक लेन में प्रीमिक्स डाला जा रहा है या प्रीमिक्स उखाड़ा जा रहा है अथवा निर्माण किया जा रहा है तो उससे पहले रोड कट पर ट्रैफिक को दूसरी लेन में एंट्री करवाई जाती है। अगले किसी रोड कट से वाहन पुनः अपने लेन में आ पाते हैं। नियम के अनुसार डायवर्जन पर सड़क बना रही कंपनी को स्टाफ को तैनात करना होता है ताकि वह रांग साइड में वाहनों की एंट्री और एक्जिट प्वाइंट पर खड़े रहकर वाहन चालकों को रोकने और दूसरी लेन में रास्ता क्लीयर होने पर ही आगे भेजे, लेकिन अधिकांश मामलों में ऐसा नहीं होता। कैंट रेलवे स्टेशन के पास दकोहा में बनाए जा रहे अंडरपास के निर्माण को लेकर बनाए गए डायवर्जन का भी यही हाल है। रोजाना यहां से हजारों वाहन निकलते हैं।

    दिशासूचक बोर्ड ही नहीं

    हाईवे पर कई ऐसे प्वाइंट भी हैं, जहां तीखा मोड़, घुमाव, चौराहा हैं, लेकिन इन अहम स्थानों पर साइन बोर्ड ही उपलब्ध नहीं हैं। कुछ स्थानों पर अगर बोर्ड लगाए भी गए हैं तो वह आकार में इतने छोटे हैं अथवा उपयुक्त जगह पर नहीं है, जिससे कि दूर जा रहे वाहन चालकों को कोई जानकारी मिल सके।

    हाईवे अथारिटी नहीं निभा रहा जिम्मेदारी : सुरेंद्र सैनी

    सड़क सुरक्षा को लेकर कई सालों से काम कर रहे सुरेंद्र सैनी ने कहा कि हाईवे के ऊपर सुविधाओं की जिम्मेदारी और मानकों के मुताबिक दिशा सूचक बोर्ड अथवा ट्रैफिक लाइट लगाने की जिम्मेदारी एनएचएआई की है, लेकिन इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई जा रही। यही वजह है कि हाईवे के ऊपर हादसे हो रहे हैं और लोगों की जान जा रही है।