Famous Temple in Punjab : अमृतसर में स्थित है चमत्कारी हनुमान मंदिर, संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होने पर बच्चों को बनाते हैं लंगूर
Famous Temple in Punjab अमृतसर श्री दुर्ग्याणा तीर्थ परिसर में श्री बड़ा हनुमान मंदिर है। मंदिर में आकर जो भी पुत्र प्राप्ति की कामना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। इस मंदिर में श्री लंगूर मेला में लाल व सिल्वर गोटे वाले चोले में सजे हजारों बच्चे आते हैं।
अमृतसर [कमल कोहली]। अमृतसर की पावन धरती पर एक ऐसा मंदिर है जहां पर अगर किसी के घर औलाद अथवा पुत्र पैदा नहीं होता है। वह इस मंदिर में आकर आराधना करता है कि उनके घर संतान पैदा हो। जब प्रभु कृपा से उनके घर औलाद पैदा होती है तो वह परंपरा के साथ अपने बच्चों को लंगूर बनाते हैं। यह मंदिर श्री दुर्ग्याणा तीर्थ परिसर में बना हुआ है, जिसका नाम श्री बड़ा हनुमान मंदिर है।
इस मंदिर में लगने वाले श्री लंगूर मेला में लाल व सिल्वर गोटे वाले चोले में सजे-धजे हजारों बच्चे अनोखा नजारा पेश करते हैं। लाल व सिल्वर गोटे वाला चोला, सिर पर टोपी हाथ पर छड़ी पकड़े पाव में छम-छम करती घुंघरू की आवाज के साथ ढोल की ताल पर झूमते व जय श्री राम के जयकारों के साथ नाचते हैं। श्री दुर्ग्याणा कमेटी के प्रधान एडवोकेट रमेश शर्मा तथा महासचिव अरुण खन्ना ने बताया कि मंदिर के विकास के लिए कमेटी हरसंभव प्रयास करती रहती है। यह ऐसा मंदिर है जहां पर सभी की मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर का इतिहास
श्री दुर्ग्याणा तीर्थ परिसर के नजदीक श्री बड़ा हनुमान मंदिर स्थित है। यह मंदिर श्री रामायण काल का बताया जाता है। मंदिर में श्री हनुमान जी की बैठी हुई अवस्था की प्रतिमा है। मान्यता है कि यह प्रतिमा श्री हनुमान जी ने स्वयं बनाई थी। लव कुश ने जब भगवान श्री राम की सेना के साथ युद्ध किया था, तब लव कुश ने इसी मंदिर में श्री हनुमान जी को वट वृक्ष से बांध दिया था। यह वटवृक्ष आज भी मंदिर में सुशोभित है।
मान्यता है कि जब हनुमान बंधन से मुक्त हुए तो श्रीराम ने उनको आशीर्वाद दिया। मान्यता है कि श्री राम ने कहा जो भी निसंतान दंपति इस मंदिर में सच्चे मन से संतान की प्राप्ति के लिए आराधना करेगा। उसकी मनोकामना पूरी होगी। यह ऐसा स्थान है, जहां पर श्री राम का उनके संतान के साथ मिलाप हुआ था। इस मंदिर में जिन परिवारों के घर संतान की प्राप्ति होती है। वह शारदीय नवरात्रों के दिनों में 10 दिनों तक अपने बच्चों को लंगूर बनाते हैं तथा 10 दिनों तक कठिन तपस्या में दो बार मंदिर में नतमस्तक होने करना होता है।
कई धार्मिक प्रक्रियाओं से गुजरते हैं लंगूर बनने वाले बच्चों व माता-पिता
लंगूर मेले के दौरान लंगूर बनने वाले बच्चे तथा उनके माता-पिता को कई धार्मिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है । प्रथम दिन लंगूर बनने से पहले होने वाली पूजा में मिठाई, नारियल, दो पुष्प हार अर्पित करने होते हैं। इसके बाद पुजारी से आशीर्वाद लेकर बच्चे चाेला धारण करते हैं। फिर बच्चे व श्रद्धालु ढोल की थाप पर नाचते हैं और पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। लंगूर बने बच्चों को प्रतिदिन दो समय माथा टेकना होता है। इसके अलावा जमीन पर सोना, जूते-चप्पल नहीं पहनना, चाकू की कटी हुई कोई चीज नहीं खाना आदि जैसे नियमों का भी लंगूर बने बच्चों और उनके माता-पिता को मानना पड़ता है। खानपान वैष्णो होता है। वहीं, लंगूर बने बच्चे अपने घर के अलावा किसी और के घर के अंदर नहीं जा सकते हैं।
लंगूर बनने वाला बच्चा नहीं चला सकता कैंची व सुई
इसके साथ ही लंगूर बनने वाला बच्चा सुई, धागे का काम और कैंची नहीं चला सकता। उसे 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। 10 दिन तक वह ठाकुर जी का सिमरन करता है। फिर विजयदशमी को लंगूर बना बच्चा रावण व मेघनाद के पुतलों को तीर मारता है। अगले दिन छोटे हनुमान मंदिर में हनुमान जी के आगे नतमस्तक होकर अपना चोला उतार देता है।
शनि की साढ़े साती व ढैया में मिलती है राहत
मंदिर के पुजारियों के अनुसार , यह मान्यता भी है कि यदि किसी व्यक्ति को शनि की साढ़े साती या ढैया लगी हुई है तो श्री बड़ा हनुमान मंदिर में पूजा अर्चना करने से उसे राहत मिलती है। यहां श्री हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से शनि की साढ़ेसती और ढैया में होने वाले सभी कष्ट दूर होते हैं।
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