Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    125 साल से मनाया जा रहा श्री गुरु नानक देव व माता सुलखनी का विवाह पर्व, 1917 में अमृतसर की संगत विवाह में बटाला पहुंची थी

    By Vinay KumarEdited By:
    Updated: Fri, 26 Aug 2022 11:29 AM (IST)

    बटाला में 125 साल से श्री गुरु नानक देव जी व माता सुलखनी देवी जी का विवाह पर्व मनाया जा रहा है। 1917 के आसपास अमृतसर की संगत ने श्री गुरु नानक देव जी व माता सुलखनी देवी जी का विवाह पर्व पहली बार मनाने का निर्णय लिया था।

    Hero Image
    10 मई 1933 में खींची गई गुरुद्वारा श्री कंध साहिब व गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब की तस्वीर तस्वीर।

    परमवीर ऋषि, बटाला। इस बार श्री गुरु नानक देव व माता सुलखनी जी का विवाह पर्व यहां एक से तीन सितंबर तक मनाया जाएगा। यह विवाह पर्व यहां करीब 125 साल से मनाया जा रहा है। इसके बाद सन 1917 के आसपास अमृतसर की संगत ने श्री गुरु नानक देव जी व माता सुलखनी देवी जी का विवाह पर्व पहली बार मनाने का निर्णय लिया था। उस समय अमृतसर से नगर कीर्तन ट्रेन से बटाला पहुंचा था। पहली बार श्री बीड़ साहिब सिर पर सत्कार के साथ उठाकर माता सुलखनी जी के मायके घर डेरा साहिब नगर कीर्तन पहुंचा था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नगर कीर्तन बटाला के रेलवे स्टेशन के पास ही बनी एक धर्मशाला में रुका था और अगले दिन गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब में संगत नतमस्तक होती थी। आज भी उक्त धर्मशाला में नानक शाही ईंटों से बने कमरों के अवशेष इस बात की गवाही देते हैं। रेलवे स्टेशन के पास मोहल्ला दारा सलाम में यह धर्मशाला है। अगले दिन नगर कीर्तन पांच प्यारों की अगुआई और श्री गुरु ग्रंथ साहिब की छत्रछाया में गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब के लिए रवाना होता था।

    उस दौरान गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में महंत केसरा सिंह के पास गुरुद्वारा साहिब का प्रबंध था। केसरा सिंह ने ही दारा सलाम स्थित धर्मशाला से शुरू हुए नगर कीर्तन में अदब के साथ श्री बीड़ साहिब को सिर पर उठाया था। गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब में नगर कीर्तन पहुंचा था। इसके बाद से निरंतर हर साल श्री गुरु नानक देव जी और माता सुलखनी देवी जी का विवाह पर्व निरंतर मनाया जाता है।

    आज भी मौजूद है वह धर्मशाला जहां रुका था बरात रूपी नगर कीर्तन

    1917 के दौरान जिस धर्मशाला में अमृतसर की संगत नगर कीर्तन के रूप में ट्रेन के माध्यम से बटाला पहुंची थी और जिस सराए में ठहरी थी वह आज भी रेलवे स्टेशन के पास इतिहास संजोए हुए है। हालांकि इस सराए को बाद में सेखड़ी बिरादरी की तरफ से 15 अगस्त 1953 में यात्रियों के लिए फिर से बनवाया गया था। इसकी गवाही आज भी इस धर्मशाला के दरवाजे के बाहर उर्दू और पंजाबी भाषा में लगा सफेद पत्थर हैं। इस समय इस धर्मशाला का प्रबंध सेखड़ी बिरादरी की तरफ से बनाए गए माता इच्छरा देवी सेखड़ी ट्रस्ट की तरफ से किया जा रहा है। हालांकि इस धर्मशाला में नानक शाही ईंटों से बने कमरे समय के अनुसार गिर गए हैं, लेकिन नानक शाही ईंटों के इवशेष अभी भी इस बात की गवाही देते नजर आते हैं।

    छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद सिंह ने करवाया था निर्माण

    मीरी-पीरी के मालिक छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद सिंह जी जब अपने बेटे गुरदित्ता जी का विवाह कराने आए थे तब वे श्री गुरु नानक देव जी के ससुराल घर के गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब दर्शन करने के लिए भी आए थे। जिस जगह पर श्री गुरु नानक देव जी का विवाह हुआ था उस जगह पर श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी की तरफ से एक चबूतरा भी बनवाया गया था। इसके बाद से संगत की आस्था और भी बढ़ गई थी। बाद में महाराजा शेर सिह ने भी अपने राज के दौरान गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब का निर्माण करवाया था।

    सुल्तानपुर लोधी से बटाला तक नगर कीर्तन निकालने का इतिहास

    सन 2000 के करीब बटाला के सरदार बूट हाउस के मालिक बेदी ने सुल्तानपुर लोधी से बटाला तक पैदल यात्रा बरात रूपी नगर कीर्तन निकालने की शुरुआत की थी। इसके बाद 2005 में सुखमणि साहिब सेवा सोसायटी के प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह पदम, ज्ञानी हरबंस सिंह और अन्य संगत के सहयोग से गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब में बारत रूपी नगर कीर्तन सुल्तानपुर लोधी से बटाला तक निकालने की शुरुआत की गई।

    comedy show banner
    comedy show banner