Updated: Sun, 27 Jul 2025 11:10 PM (IST)
जालंधर के सिविल अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट में खराबी आने से तीन गंभीर मरीजों की मौत हो गई। मरीजों को ऑक्सीजन कंसंट्रेटर से बचाने की कोशिश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली। अस्पताल प्रबंधन ने जांच के लिए कमेटी गठित की है। प्लांट में तकनीकी खराबी कैसे आई इस पर सवाल उठ रहे हैं।
जागरण संवाददाता, जालंधर। सिविल अस्पताल के ऑक्सीजन प्लांट में तकनीकी फॉल्ट आने के कारण तीन गंभीर मरीजों की मौत हो गई। तीनों मरीज तीन दिन से ट्रामा के आइसीयू में दाखिल थे। दो गंभीर मरीज फेफड़ों की समस्या व एक मरीज ड्रग ओवरडोज के तौर पर दाखिल थे। मृतकों में 15 साल की लड़की भी शामिल है।
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तीनों मरीजों को ऑक्सीजन लगी हुई थी। रविवार को शाम अचानक अस्पताल के ऑक्सीजन प्लांट में तकनीकी खराबी आने से हड़कंप मच गया। ऑक्सीजन की सप्लाई बंद होने के साथ तीनों मरीजों की सांस उखड़नी शुरु हो गई। अस्पताल प्रबंधन व स्टाफ को पता चला तो तुरंत दूसरा ऑक्सीजन प्लांट को चलाया गया।
ऑक्सीजन सप्लाई बंद होने के बाद मौजूदा स्टाफ ने आक्सीजन कंसंट्रेटर के माध्यम से ही मरीजों को आक्सीजन देने की कोशिश की लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। जब दूसरा ऑक्सीजन प्लांट चलाया गया तब तक ऑक्सीजन ना मिलने की वजह से मौत हो चुकी थी। सिविल अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि सिविल अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी नहीं है।
सिलेंडर के साथ-साथ ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भी मौजूद है। मरीजों को आक्सीजन लगी हुई थी। बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन प्लांट में लीकेज की बात सामने आ रही है। सोमवार को स्थिति स्पष्ट हो पाएगी कि प्लांट में तकनीकी खराबी आई है या फिर किसी प्रकार की लीकेज थी। मामले को लेकर अस्पताल प्रबंधन ने एंक्वायरी कमेटी बना दी गई है।
तकनीकी खराबी या लीकेज कैसे हुई?
मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. राज कुमार ने कहा कि आक्सीजन प्लांट में पांच से दस मिनट की तकनीकी खरा्बी आई थी। अस्पताल में तीन गंभीर मरीज दाखिल थे। जिन्हें आक्सीजन लगी हुई थी। तीन दिन से मरीज पहले ही गंभीर चल रहे थे। कुछ मिनटों में आक्सीजन सप्लाई बंद होने के बाद दूसरा प्लांट चलाया गया था। सप्लाई शुरु हो गई थी।
अस्पताल में आक्सीजन की कमी नहीं है। मरीजों को आक्सीजन कंसट्रेटर से आक्सीजन दी गई थी लेकिन मरीजों को बचाया नहीं जा सका है। इस मामले की जांच को लेकर इंक्वायरी कमेटी बैठा दी गई है।
सिविल अस्पताल प्रबंधन के सामने सवाल हो रहे खड़े
अगर अगर प्लांट में तकनीकी खराबी आना सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। क्या प्लांट की समय समय पर चेकिंग हो रही थी। क्या सिलेंडर बदलने के समय नोजल चेक समय-समय पर हो रही थी। अब इन सवाल इंक्वायरी कमेटी में उठ सकते है।
क्या पाइपलाइन ब्लाक हो गई थी। कौन सी कंपनी का प्लांट लगा है। अगर तकनीकी खराबी आई क्या कंपनी जिम्मेवार होगी या नहीं। कोरोना काल की बात करें तो प्लांट की देखरेख बेहतर ढंग से की जाती थी। लापरवाही कहां से हुई। यह सिविल अस्पताल के सामने सवाल खड़े होते है।
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