जानें क्यों नूरपुर के श्री बृजराज स्वामी मंदिर में मीरा बाई संग विराजते हैं गिरिधर गोपाल
मूर्तियों के समक्ष शयनासन चरण पादुकाएं व एक गिलास पानी रखा जाता है। सुबह जब पुजारी मंदिर खोलते हैं तो शयनासन पर सिलवटों के साथ ही पानी की गिलास भी गिरा होता है।
पठानकोट [ वीरेन पराशर]। विश्व भर में श्री राधा-कृष्ण के लाखों मंदिर हैं लेकिन हम आपको आज बता रहे हैं श्री कृष्ण के एक विरले मंदिर के बारे में। यहां श्री कृष्ण के साथ राधा नहीं बल्कि उनकी अनन्य भक्त मीराबाई की मूर्ति स्थापित है। श्री कृष्ण भक्ति में लीन हो वह जिस प्रतिमा के आगे भजन करते हुए नृत्य करती थीं, वही दुर्लभ मूर्ति यहां पर है। बहुत कम लोग जानते हैं कि पठानकोट से मात्र 22 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश की सीमा पर नूरपुर में श्री बृजराज स्वामी मंदिर में हैं मीरा के ये गिरधर गोपाल। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आइए आपको करवाते हैं ऐतिहासिक मंदिर की सैर।
पठानकोट के पास नूरपुर में श्री बृजराज स्वामी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अनन्य भक्त मीरा बाई की प्रतिमा विराजमान है।
यह मंदिर नूरपुर में स्थित राजा जगत सिंह के किले में ही स्थित है। मूर्तियों में श्रीकृष्ण की मूर्ति का निर्माण राजस्थानी शैली में काले संगमरमर से और मीराबाई की मूर्ति का अष्टधातु से किया गया है। राजसी धरोहर होने के कारण यह किला व मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन हैं।
राजस्थान से यूं नूरपुर पहुंची ये मूर्तियां
इस मंदिर के इतिहास के साथ एक रोचक कथा जुड़ी है। यह उस समय की बात है (1619 से 1623 ई.) जब नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ चितौडगढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गए। उनके रात्रि कक्ष के बगल में एक मंदिर था। आधी रात को राजा को मंदिर से घुंघरुओं और संगीत की आवाज सुनाई दी। राजा ने जब मंदिर में बाहर से झांक कर देखा तो एक महिला मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने भजन गाते हुए नाच रही थी। राजा ने सारी बात राज पुरोहित को सुनाई। पुरोहित ने भी वापसी पर राजा (चितौडगढ़) से इन मूर्तियों को उपहार स्वरूप मांग लेने का सुझाव दिया।
अगले दिन चितौड़गढ़ के राजा ने दोनों मूर्तियां व एक मौलश्री का पौधा राजा जगत सिंह को उपहार स्वरूप दे दिया। नूरपुर के राजा ने इन मूर्तियों को अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का रूप देकर स्थापित किया। श्री कृष्ण की उस प्रतिमा को उन्होंने वहीं पर स्थापित करवाया जहां उनका सिंहासन था। इसी कारण अब यह स्थान श्री बृजराज स्वामी मंदिर के रूप में जाना जाता है। गत चार शताब्दी से मान्यता है कि इनके दर्शनमात्र से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर परिसर में मौजूद मौलश्री का पेड़।
रात को मंदिर में आते हैं श्रीकृष्ण
मान्यता है कि मंदिर में प्रभु श्रीकृष्ण आते हैं। इसके लिए रोजाना आरती व पूजा-अर्चना के बाद रात को मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। मूर्तियों के समक्ष शयनासन, चरण पादुकाएं व एक गिलास पानी से भरा रखा जाता है। सुबह जब पुजारी मंदिर खोलते हैं, तो शयनासन पर सिलवटों के साथ ही पानी की गिलास भी गिरा होता है। कहते हैं कि रात को यहां पर प्रभु श्रीकृष्ण व मीराबाई विश्राम करते हैं।
ऐसे पहुंचे मंदिर
श्री बृजराज मंदिर तक सड़क और हवाई मार्ग दोनों से पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से कांगड़ा के गग्गल एयरपोर्ट और पठानकोट स्थित एयरपोर्ट तक फ्लाइट ली जा सकती है। चंडीगढ़ से ऊना- तलवाड़ा होकर जसूर से नूरपुर तक सड़क मार्ग से भी श्रद्धालु आ- जा सकते हैं। पठानकोट- कांगड़ा मार्ग से सरलता से यहां पर बस, ट्रेन, टैक्सी या अपने वाहन से पहुंचा जा सकता है।
मीराबाई करती थीं इसी मूर्ति की पूजा
मंदिर में स्थापित श्री कृष्ण की इस मूर्ति का संबंध उनकी अनन्य प्रेम भक्त मीराबाई से बताया जाता है। मध्यकाल में मीराबाई ने प्रभु भक्ति को नया आयाम दिया था। वह खुद को भक्त नहीं बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका बताती थीं। इसीलिए उनकी प्रेमभक्ति को प्रभु श्रीकृष्ण के बराबर सम्मान और भाव दिया जाता है। मान्यता है कि यह वही मूर्ति है जिसकी मीराबाई पूजा-अर्चना करती थीं। इसी मूर्ति के साथ वह बातें करती थीं और भक्ति में लीन हो कर इसी के आगे नृत्य करती थीं।
अनोखा है 400 साल का मौलश्री का यह पेड़
इस मंदिर में मौलश्री का पेड़ भी चार सदी पूर्व ही रोपा गया था। चित्तौड़गढ़ के राजा से भेंट स्वरूप मिला यह पेड़ तब लंबे सफर के कारण सूख गया था लेकिन मंदिर परिसर में इसकी प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद यह हरा हो गया। इसकी विशेषता यह भी है कि इसमें फल नहीं आता केवल फूल उगते हैं। अब कई साल से इसका एक हिस्सा खूब हरा -भरा है जबकि आधा पेड़ सूख गया है।
चरण पादुकाएं व गिलास
श्री कृष्ण मंदिर में उनके शयनासन के पास ही ये चांदी की चरण पादुकाएं व एक चांदी के गिलास में पानी भी रखा गया है। कहा जाता है कि रात में श्री कृष्ण जब यहां विश्राम करते हैं तो ये चरण पादुकाएं भी अपने स्थान से सुबह हिली हुई मिलती हैं। साथ ही गिलास भी गिरा होता है।
रात में मंदिर के कपाट बंद करने से पहले श्रीकृष्ण और मीरा बाई की मूर्तियों के पास चांदी की खड़ाऊं और चांदी के गिलास में पानी भी रखा जाता है। मान्यता है कि भगवान स्वयं यहां रात्रि विश्राम करते हैं।
मूर्ति के दाएं पांव में पदममणि भी बनी है
मंदिर के पुजारी ऋतुल शर्मा बताते हैं कि मूर्ति को मंदिर के प्रथम तल पर स्थापित किया गया है। पूरी मूर्ति का भार बाएं पांव पर टिका है। मूर्ति की अहम विशेषता है कि इसके दाएं पांव में पदममणि भी है। ऐसा संयोग बेहद दुर्लभ है, जिसमें काले रंग के रूप में श्रीकृष्ण की अवस्था और पांव में पदममणि हो। उनके बुजुर्ग बताते हैं कि ऐसी मूर्ति मथुरा में भी है पर उसका आकार बृजराज मंदिर में स्थापित मूर्ति से छोटा है।
निखारा गया मंदिर का रंग-रूप
श्री बृजराज स्वामी मंदिर नूरपुर ट्रस्ट की चेयरमैन शकुंतला देवी और वाइस चेयरमैन दविंद्र शर्मा का कहना है कि यह मंदिर नूरपुर रियासत के किलों के भीतर स्थित है और पुरातत्व विभाग के अधीन है। काफी समय से मंदिर का रखरखाव और मरम्मत करने में दिक्कत आ रही थी। लेकिन एक साल पहले ट्रस्ट के गठन के बाद मंदिर के रंग रूप को निखारा गया है। यहां पर सालाना जन्माष्टमी पर्व का आयोजन होता है और इसे जिलास्तरीय दर्जा भी प्राप्त है। सालभर देश विदेश से श्रद्धालु यहां आते हैं।
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