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Punjab History: श्री गुरु रामदास जी ने बसाया था अमृतसर, तभी से शहर बना व्यापार का बड़ा केंद्र

गुरु रामदास ने ही चक्क रामदास या रामदासपुर की नींव रखी जो बाद में अमृतसर कहलाया। गुरु साहिब ने तुंग गिलवाली एवं गुमटाला गांवों के जमींदारों से संतोखसर सरोवर खुदवाने के लिए जमीनें खरीदीं। बाद में उन्होंने संतोखसर का काम बंद कर पूरा ध्यान अमृतसर सरोवर खुदवाने में लगा दिया।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 09:49 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 07:04 PM (IST)
Punjab History: श्री गुरु रामदास जी ने बसाया था अमृतसर, तभी से शहर बना व्यापार का बड़ा केंद्र
गुरु रामदास जी ने 1577 में 500 बीघा में गुरुद्वारा साहिब की नींव रखी थी।

जासं, अमृतसर। लगभग साढ़े चार सौ वर्षों से अमृतसर शहर अस्तित्व में है। सबसे पहले गुरु रामदास जी ने 1577 में 500 बीघा में गुरुद्वारा साहिब की नींव रखी थी। यह पवित्र गुरुद्वारा श्री हरिमंदिर साहिब सरोवर के बीच में बना हुआ है। अमृतसर को गुरु रामदास जी ने बसाया और फिर यह शहर व्यापारिक दृष्टि से लाहौर की ही तरह महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। पहले इसका नाम गुरु रामदास नगरी था।

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गुरु रामदास (जेठा जी) का जन्म चूना मंडी, लाहौर (अब पाकिस्तान में) में कार्तिक वदी दो, 24 सितंबर 1534 को हुआ था। माता दया कौर (अनूप कौर) एवं बाबा हरि दास जी सोढ़ी खत्री के यह पुत्र थे। रामदास जी का परिवार बहुत गरीब था। उन्हें उबले हुए चने बेचकर अपनी रोजी-रोटी कमानी पड़ती थी। जब रामदास जी 7 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। उनकी नानी उन्हें अपने साथ बासरके गांव ले आईं। उन्होंने वहां 5 वर्षों तक उबले हुए चने बेचकर अपना जीवनयापन किया। रामदास जी अपनी नानी के साथ गोइंदवाल आ गए और वहीं बस गए। यहां भी वह उबले चने बेचने लगे और साथ ही गुरु अमरदास साहिब जी की ओर से संगत के साथ विचार चर्चा के लिए होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में भी भाग लेने लगे। इस दौरान उन्होंने गोइंदवाल साहिब के निर्माण की सेवा की।

रामदास जी का विवाह गुरु अमरदास जी की पुत्री बीबी भानी के साथ हुआ। उनके यहां तीन पुत्रों पृथी चंद, महादेव और अर्जुन साहिब ने जन्म लिया। शादी के पश्चात रामदास जी गुरु अमरदास जी के पास रहते हुए गुरु घर की सेवा करने लगे। वह गुरु अमरदास जी के बेहद प्रिय और विश्वासपात्र सिख थे। वह देश के विभिन्न भागों में लंबे धार्मिक प्रवासों के दौरान गुरु अमरदास जी के साथ ही रहते। इस दौरान गुरु रामदास जी अपनी भक्ति और सेवा के कारण बहुत प्रसिद्ध हो गए थे।

संतोखसर सरोवर का काम बंद करवा अमृतसर सरोवर की खुदवाई में लगाया

गुरु रामदास ने ही चक्क रामदास या रामदासपुर की नींव रखी जो बाद में अमृतसर कहलाया।  गुरु साहिब ने तुंग, गिलवाली एवं गुमटाला गांवों के जमींदारों से संतोखसर सरोवर खुदवाने के लिए जमीनें खरीदीं। बाद में उन्होंने संतोखसर का काम बंद कर अपना पूरा ध्यान अमृतसर सरोवर खुदवाने में लगा दिया। इस कार्य की देख-रेख करने के लिए भाई सहलों जी और बाबा बुड्ढा जी को नियुक्त किया गया। 1577 में शहर चक्क रामदासपुर बसाया गया। जल्द ही यह शहर अंतराष्ट्रीय व्यापार का केंद्र होने की वजह से चमकने लगा। गुरु रामदास साहिब ने स्वयं विभिन्न व्यापारों से जुड़े व्यापारियों को इस शहर में आमंत्रित किया। यह कदम सामरिक दृष्टि से बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ। यहां सिखों के लिए भजन-बंदगी का स्थान बनाया गया।

आनंद कारज के लिए चार लावों की शुरुआत कर सरल विवाह को समाज के सामने रखा

सिखों को आनंद कारज के लिए चार लावों (फेरों) की शुरुआत की और सरल विवाह की गुरमति मर्यादा को समाज के सामने रखा। गुरु रामदास जी ने सिख धर्म में आनंद कारज के लिए चार लावों (फेरों) की और सरल विवाह की गुरमति मर्यादा को समाज के सामने रखा। इस प्रकार उन्होने सिख पंथ के लिए एक विलक्षण वैवाहिक पद्धति दी। इस प्रकार इस भिन्न वैवाहिक पद्धति ने समाज को रुढि़वादी परंपराओं से दूर किया। गुरु साहिब ने अपने गुरुओं द्वारा प्रदत्त गुरु का लंगर प्रथा को आगे बढ़ाया। अंधविश्वास, वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों का विरोध किया। 1 सितंबर, 1581 को गुरु जी ज्योति ज्योत समा गए।


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