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    बटाला की धरती से श्री गुरु नानक देव जी ने गृहस्थ जीवन में रखा था कदम, मूल मंत्र के गिर्द लिए थे फेरे

    By DeepikaEdited By:
    Updated: Thu, 01 Sep 2022 10:08 AM (IST)

    विवाह के दौरान जब माता सुलखनी जी के साथ लावां फेरे होने थे और उस समय हिंदू रीत के अनुसार अग्नि के साथ लगन किया जाता था। लेकिन गुरू नानक देव जी ने वेदी प्रथा के तहत अग्नि के गिर्द लावां फेरे लेने से मना कर दिया।

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    श्री गुरू नानक देव जी और माता सुलखनी जी का आनंद कारज। (जागरण)

    परमवीर ऋषि, बटाला। बटाला की धरती से ही 535 साज पहले श्री गुरु नानक देव जी ने गृहस्थ जीवन में कदम रखा था और पहली बार अग्नि की जगह मूल मंत्र के गिर्द फेरे लेकर माता सुलखनी जी के साथ आनंद कारज किया था। एक से तीन सितंबर तक श्री गुरु नानक देव जी और माता सुलखनी जी का विवाह पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ बटाला में मनाया जाता है।

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    इसी के तहत आज शगुन रूपी नगर कीर्तन गुरूद्वारा श्री सति करतारिया, गुरुद्वारा श्री बेर साहिब सुलतानपुर लोधी से निकलेगा। 2 सितंबर को गुरुद्वारा श्री बेर साहिब से बटाला के लिए प्रस्थान करेगा और फिर 3 सितंबर को बटाला में गुरु नानक देव जी के ससुराल घर गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब से सुबह 7 बजे भव्य नगर कीर्तन शहर भर से होकर देर रात गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में समाप्त होगा। एसजीपीसी सदस्य गुरिंदरपाल सिंह गोरा ने बताया कि गुरु नानक देव जी 535 साल पहले बटाला की धरती पर अपना गृहस्थ जीवन शुरू करने के लिए आए थे।

    विवाह के दौरान जब माता सुलखनी जी के साथ लावां फेरे होने थे और उस समय हिंदू रीत के अनुसार अग्नि के साथ लगन किया जाता था। लेकिन गुरू नानक देव जी ने वेदी प्रथा के तहत अग्नि के गिर्द लावां फेरे लेने से मना कर दिया। उसके बाद श्री गुरू नानक देव जी ने एक तख्ती पर एक ओंकार लिखकर चौंकी साहिब पर सजाया और उसके गिर्द माता सुलखनी जी के साथ चार फेरे (लावां) ले कर आनंद कारज पूरा किया था। इतिहास में पहली बार गुरु जी ने शब्द की परिक्रमा कर ग्रहथ जीवन शुरू किया था।

    गोरा ने कहा कि जानकारी के अनुसार गुरु नानक देव जी ने एक ओंकार मूल मंत्र लिख कर फेरे लिए थे। दूसरे गुरु श्री गुरु अंगद देव जी और तीसरे गुरु साहिब श्री अमरदास जी का विवाह गुरु नानक देव जी के आनंद कारज से पहले हो चुका था। चौथे पातशाह श्री गुरु राम दास जी का विवाह आनंद साहिब की वाणी जो तीसरे पातशाह की तरफ से लिखी गई थी उसकी परिक्रमा से हुई थी। इसके बाद से ही सिख धर्म में जितने भी आनंद कारज हो रहे हैं चाहे वह गुरु साहिबान या फिर सिख धर्म मानने वाले हों वह सब उस लावां के पाठ के उच्चारण के साथ हो रहे हैं।

    विवाह पर्व को लेकर गुरुद्वारा श्री कंध साहिब माथा टेकने अपनी पत्नी के साथ आए सुखविंदर सिंह ने कहा कि वह बहुत भाग्यशाली हैं कि उन्होंने सिख धर्म में जन्म लिया। सिख धर्म की मर्यादा के अनुसार ही गृहस्थ जीवन की शुरुआत श्री गुरु ग्रंथ साहिब की परिक्रमा और लावां के पाठ के साथ गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। विवाह पर्व पर वह हर साल बटाला में पावन गुरुद्वारा श्री कंध साहिब और गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब के दर्शन कर आशीर्वाद लेने आते हैं।

    आज भी मौजूद है वह थड़ा साहिब जिस पर मूल मंत्र को रखा

    माता सुलखनी जी के मायके घर जिस जगह पर श्री गुरु नानक देव जी ने माता सुलखनी जी के साथ मूल मंत्र के गिर्द फेरे ले कर अपना आनंद कारज संपन्न किया था वहां पर इस समय गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब मौजूद है। वह थड़ा आज भी मौजूद है। इस जगह पर देश विदेश से संगत गुरु साहिब का आशीर्वाद लेने पहुंचती है।

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