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    हिंदू-सिख एकता का प्रतीक है बटाला में श्री अच्लेश्वर धाम व गुरुद्वारा श्री अच्ल साहिब, शिव के पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी है कथा

    By Vinay KumarEdited By:
    Updated: Tue, 01 Mar 2022 03:28 PM (IST)

    बटाला में हिन्दू-सिख ऐकता का प्रतीक है श्री अच्लेश्वर धाम मंदिर और अच्ल साहिब गुरुद्वारा। यहां पर सभी धर्मों के लोग माथा टेकने के लिए आते हैं। दोनों ही धार्मिक स्थानों पर श्रद्धालु माथा तो टेकते ही हैं साथ ही एक ही सरोवर में स्नान करते हैं।

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    बटाला में श्री अच्लेश्वर धाम में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़।

    बटाला [परमवीर ऋषि]। हिंदू-सिख एकता का प्रतीक श्री अच्लेश्वर धाम मंदिर और अच्ल साहिब गुरुद्वारा, जहां पर सभी धर्मों के लोग माथा टेकने के लिए आते हैं। दोनों ही धार्मिक स्थानों पर श्रद्धालु माथा तो टेकते ही हैं साथ ही एक ही सरोवर में जात-पात मंदिर परिसर के बाहर छोड़ कर एक साथ स्नान करते हैं। यह परंपरा आज से नहीं बल्कि कई सदियों से चली आ रही है। श्री अच्लेश्वर मंदिर में भगवान भोलेनाथ समस्त देवी-देवताओं के साथ पहुंचे थे तो वहीं पहले सिख गुरु नानक देव जी ने भी गुरुद्वारा श्री अच्ल साहिब पहुंच कर सिखों के साथ गोष्टी कर उन्हें सच्चाई के रास्ते चलने के लिए उपदेश दिया था। देश भर से आने वाले श्रद्धालु मंदिर और गुरुद्वारा साहिब में माथा टेकते हैं। श्रद्धालु चाहे किसी भी धर्म के हो वह दोनों ही धार्मिक स्थानों पर पूरी श्रद्धा के साथ अपना शीश निवाते हैं। जबकि माथा टेकने से पहले एक ही सरोवर में स्नान कर आपसी भाईचारे की मिसाल पैदा करते हैं।

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    भगवान भोलेनाथ समस्त देवी-देवताओं के साथ पहुंचे थे

    श्री अच्लेश्वर धाम मंदिर भगवान भोलेनाथ के बढ़े पुत्र श्री कार्तिके का स्थान है और यहां पर हर साल कार्तिक माह की हर नौवीं-दसवीं तिथि को लगने वाले उत्तर भारत प्रमुख मेले में भारी संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना के लिए पूजा करते हैं। मान्यता के अनुसार जब भगवान भोलेनाथ और माता पावर्ती ने दोनों पुत्रों भगवान श्री कार्तीके और श्री गणेश में से एक को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए बुलाया तो भगवान भोलेनाथ ने कहा कि जो भी तीन लोकों का चक्कर काट कर सब से पहले पहुंचेगा वही हमारा उत्तराधिकारी होगी। जिसके बाद श्री गणेश मूश्क पर स्वार हो कर तो भगवान श्री गणेश मोर पर स्वार हो कर तीनों लोकों की यात्रा पर निकल पड़े।

    जब श्री गणेश को उत्तराधिकारी बनाया गया उस समय भगवान कार्तिके बटाला से करीब सात किलो मीटर दूर बने श्री अच्लेश्वर धाम में विश्राम कर रहे थे। पता चलते ही कार्तिके नाराज हो कर इसी जगह बैठ गए। जब भोलेनाथ को पता चला तो वह समस्त देवी देवताओं के साथ आए और कार्तिके को मनाने लगे। लेकिन कार्तिके नहीं माने और इसी जगह अच्ल होने की बात कही। जिसके बाद भगवान भोलेनाथ ने कार्तिके को वर दिया कि इस जगह हर साल नवमीं-दसवीं की रात को समस्त देवी-देवता आया करेंगे और यहां पर बने सरोवर में स्नान करने वाले भक्तों को अपना आशीर्वाद दिया करेंगे। तभी से ही इस जगह का नाम श्री अच्लेश्वर धाम मंदिर पड़ा है।

    गुरु नानक देव जी शिवरात्रि को आए थे यहां

    मंदिर के सामने ही बने गुरुद्वारा श्री अच्ल साहिब में पहले सिख गुरु नानक देव जी शिवरात्रि के दिन यहां आए थे। इस स्थान पर सिद्ध योगी रहा करते थे और शिवरात्रि को यहां पर भारी तादाद में लोग पहुंचते थे। जब शिवरात्रि के दिन गुरु नानक देव जी पहुंचे तो गुरु जी के एक दर्शन के लिए लोग दौड़े। इस दौरान वहां पर सिद्धों को ईष्या हो गई और सिद्ध अपने गुरु भगर नाथ के साथ श्री गुरु नानक देव जी से विचार करने पहुंच गए। गुरु जी ने भगर नाथ से कहा कि आप ने अपने संसार को त्याग दिया है, अपना गुजारा करने के लिए लोगों से भीख मांग कर करते हो, तो फिर आप श्रेष्ठ कैसे हो।

    गुरु जी की बात सुन कर भगर नाथ ने चमत्कार दिखाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सका। भगर नाथ गुरु जी के पैरों में गिर गया, जिसके बाद गुरु जी ने वहां पर आए लोगों का परमात्मा का नाम जपने के लिए कहा। इस दौरान गुरु जी ने इस स्थान पर एक बेरी भी लगाई थी और कहा था कि यह बेरी 12 महीने फल देगी। जो आज भी गुरुद्वारा साहिब में मौजूद है। इसी जगह पर सिखों के छठे गुरू श्री हरगोबिंद साहिब भी अपने सबसे बड़े बेटे बाबा गुरदित्ता की शादी में बटाला आए थे और इस जगह पर आठ कोनों वाला कुआं भी खुदवाया था जो आज भी गुरुद्वारा साहिब के मुख्या द्वार के सामने है।