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    Shaheed Udham Singh ने 21 साल बाद लिया था जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला, जानें क्या थी उनकी अंतिम इच्छा

    By Pankaj DwivediEdited By:
    Updated: Sat, 31 Jul 2021 04:45 PM (IST)

    पंजाब के लेफ्टिनेंट गर्वनर रहे माइकल ओ डायर की लंदन में जाकर गोली मारी थी। वो 26 दिसंबर का दिन था जब उन्‍होंने लंदन में अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी। ऊधम ...और पढ़ें

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    शहीद ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी दे दी गई थी। सांकेतिक चित्र।

    जालंधर, ऑनलाइन डेस्क। देश आज महान शहीद ऊधम सिंह का बलिदान दिवस मना रहा है। ऊधम सिंह भारत माता के वह वीर सपूत हैं जिन्होंने अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए उस समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गर्वनर रहे माइकल ओ डायर की लंदन में जाकर गोली मारी थी। वो 26 दिसंबर का दिन था जब उन्‍होंने लंदन में डायर को गोली मारकर अपनी वर्षों पुरानी प्रतिज्ञा पूरी की थी। ऊधम सिंह को डायर की हत्‍या के आरोप में 31 जुलाई, 1940 को फांसी दे दी गई थी। 

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    13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई थी। शहर में कर्फ्यू लगे होने के बाद भी इसमें सैकड़ों लोग शामिल थे। बैसाखी के दिन मेला भी लगा था। बाग में भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। तभी ब्रिगेडियर जनरल माइकल ओ डायर सैनिकों को लेकर वहां पहुंचा। उसने वहां पर मौजूद निहत्‍थे लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। जलियांवाला बाग चारों तरफ से घिरा हुआ था भागने या जान बचाने का कोई रास्‍ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद कुएं में कूद गए। देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। ऊधम सिंह के जीवन पर इस नरसंहार का गहरा घाव था। तभी उन्होंने डायर से बदला लेने की ठान ली थी। 

    पहचान छिपाकर पहुंचे थे लंदन

    पंजाब के संगरूर जिले के गांव सुनाम में 26 दिसम्बर 1899 को पैदा हुए ऊधम सिंह जलियांवाला बाग हत्‍याकांड के वक्‍त करीब 20 वर्ष के थे। जनरल डायर को जान से मारने के लिए उन्‍हें कई वर्षों का इंतजार करना पड़ा था। वो अपने परिवार में अकेले थे। उनके माता-पिता और भाई पहले ही दुनिया से जा चुके थे। ऐसे में उनके जीवन का केवल एक ही मकसद था, जनरल डायर की मौत। इसके लिए वो नाम बदल-बदल कर पहले दक्षिण अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका में रहे। वर्ष 1934 में वो पहचान छिपाकर अपना मकसद पूरा करने लंदन पहुंचे और वहां पर उन्‍होंने एक कार और रिवॉल्‍वर खरीदी। फिर, 13 मार्च, 1940 को एक सभा में हिस्सा ले रहे माइकल ओ डायर की हत्या कर दी। इसके लिए उन्‍हें 21 साल तक इंतजार करना पड़ा था।

    खुद को राम मोहम्मद सिंह आजाद सिंह कहते थे

    26 दिसंबर 1899 को संगरूर के सूनाम में पैदा हुए ऊधम सिंह खुद को राम मोहम्मद सिंह आजाद कहलाने में फख्र महसूस करते थे। जनरल डायर को गोलियां मारने के बाद ऊधम सिंह ने पकड़े जाने पर अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद ही बताया था।

    फतेहगढ़ साहिब में पूरी हुई थी अंतिम इच्छा, रोजा शरीफ में दफनाई गई अस्थियां

    शहीद ऊधम सिंह की अंतिम इच्छा शहादत के 34 वर्ष बाद फतेहगढ़ साहिब की धरती पर पूरी हुई थी। शहीद ऊधम सिंह को इंग्लैंड में फांसी दी गई थी। बाद में उनकी अस्थियों का कलश शहीदों की धरती फतेहगढ़ साहिब स्थित रोजा शरीफ में लाकर दफनाया गया था। इतिहासकारों अनुसार उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका शव मुस्लिम समुदाय में मक्का का दूसरा रूप माने जाते रोजा शरीफ में दफनाया जाए। आज इस स्थान पर शहीद स्मारक बनी हुई है। हर साल शहीदी सभा के दौरान यहां आने वाले लोग देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले इस महान योद्धा की वीरगाथा से रू-ब-रू होते हैं।