सीजनल वायरल इंफेक्शन की भी कोरोना वायरस जैसी दहशत, डॉक्टरों ने बताया- कैसे करें पहचान
सीजनल वायरल इंफेक्शन की भी दहशत कोरोना से कम नही है। दोनों बीमारियों के लक्षण ज्यादातर एक जैसे होने की वजह से डाक्टर कोरोना जांच के प्राथमिकता दे रहे है जो लोगों के लिए मानसिक तनाव का बड़ा कारण बन रही है।
जालंधर, [जगदीश कुमार]। एक साल बाद भी कोरोना का कहर जारी है। वहीं इन दिनों सीजनल वायरल इंफेक्शन की भी दहशत कोरोना से कम नही है। दोनों बीमारियों के लक्षण ज्यादातर एक जैसे होने की वजह से डाक्टर कोरोना जांच के प्राथमिकता दे रहे है जो लोगों के लिए मानसिक तनाव का बड़ा कारण बन रही है। डाक्टरों की माने तो सीजनल वायरल इंफेक्शन वाले ज्यादातर मरीजों के कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है। सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों में से बीस फीसद के करीब वायरल इंफेक्शन है। डाक्टर संदिग्ध कोरोना की श्रेणी में रख कर उनकी जांच को प्राथमिकता दे रहे है।
सिविल अस्पताल की डा. ईशू सिंह कहती है कि वायरल इंफेक्शन की वजह से भी बुखार, गले में खराश, खांसी और बदन टूटने जैसे लक्षण सामने आते है। इसकी वजह शरीर में काफी कमजोरी आती है। वायरल इंफेक्शन और कोरोना के लक्षण एक जैसे होने की वजह से लोगों को जांच को लेकर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। कोरोना केस खतरे से बचाने के लिए लोगों के प्राथमिकता के आधार पर टेस्ट करवाए जाते हैं, हालांकि इससे पहले वायरल इंफेक्शन का इलाज शुरू कर दिया जाया है। इस दौरान कोरोना टेस्ट पाजिटिव आने पर उसके इलाज में बदलाव किया जाता है। उन्होंने दोनों ही बीमारियों से बचाव के लिए एहतियात बरतरने की सलाह दी है। इसके अलावा उन्होंने इस दौरान अत्याधिक तरल खाद्य पदार्थों का सेवन करने तथा पौष्टिक आहार लेने की बात कही है।
क्या है कोरोना वायरस
जिला परिवार कल्याण अधिकारी डा. रमन गुप्ता ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण पूरी दुनिया में फैला हुआ है। यह जानवरों में भी आम है। अमरीका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीएस) के अनुसार कोरोना वायरस जानवरों से मनुष्यों तक पहुंच जाता है। नया चीनी कोरोना वायरस सार्स वायरस की तरह है जिसने सैकड़ों को संक्रमित किया है।
लक्षण
वायरस लोगों को बीमार कर सकते हैं। कोरोना वायरस के लक्षणों में नाक बहना, खांसी, गले में खराश, कभी-कभी सिर दर्द और बुखार के अलावा पेट दर्द और डायरिया शामिल हैं। लक्षण कुछ दिनों तक रह सकते हैं। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग इसके निशाने पर हैं। बुजुर्ग और बच्चे आसानी से शिकार होते हैं।
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संक्रमण का उपचार
कोरोना वायरस संक्रमण कोई विशेष उपचार नहीं है। ज्यादातर समय, लक्षण अपने आप ही चले जाएंगे। डाक्टर दर्द या बुखार की दवा से लक्षणों में राहत दे सकते हैं। कमरे में ह्यूमिडिफायर या गर्म पानी से नहाना, गले में खराश या खांसी के साथ मदद कर सकता है। मरीजों को तरल पदार्थों का ज्यादा सेवन करना चाहिए और पूरी तरह से आराम करना चाहिए।
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ऐसे रोक सकते हैं वायरस का हमला
- कोरोना वायरस से बचने के लिए सरकार की नीतियों के अनुसार टीकाकरण जरूर करवाएं ।
- बीमार लोगों से दूर रह कर संक्रमण के जोखिम को कम कर सकते हैं।
- आंखों, नाक और मुंह को छूने से बचने की कोशिश करें।
- हाथों को अक्सर साबुन और पानी से अच्छी तरह कम से कम 20 सेकेंड तक धोएं।
- बीमार मरीजों को भीड़ में जाने से गुरेज करना चाहिए।
- दूसरों से संपर्क न करें।
- आपस में दो मीटर की दूरी रखे।
- बिना मास्क के घर से बाहर न निकले।
- खांसते या छींकते हैं पर अपने मुंह और नाक को ढक लें।
- आपके द्वारा स्पर्श की जाने वाली वस्तुओं और सतहों को कीटाणुरहित कर दें।
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डाइटिशियन और न्यूट्रीशियन की सलाह- खाने के साथ खाएं सेब और केले
कोरोना का वार कमजोर प्रतिरोधक शक्ति वाले लोगों पर भारी पड़ता है। इन दिनों लोगों को ज्यादा समय खाली पेट नही रहना चाहिए। सुबह ब्रेक फास्ट हावी करना चाहिए। ब्रेक फास्ट न करने वालों समान्य लोगों के मुकाबले कमजोर होते है। उनके दिमाग को पूरी तरह से आक्सीजन नही नही मिल पाती है। ऐसा मानना है डायटिशियन मोनिशा सिक्का का। वह कहती है कि दिन में तीन बार खाना जरूरी है। इसके अलावा थोड़े थोड़े समय बाद कुछ न कुछ जरूर खाना चाहिए। उन्होंने ब्रेक फास्ट में दही व सब्जी के साथ रोटी और एक गिलास दूध जरूर लेना चाहिए। दोपहर के खाने से सेब और केला जरूर खाएं। इसमें पोटाशियम तथा आयरन की पर्याप्त मात्रा में होने की वजह से शरीर को ताकत प्रदान करता है। दोपहर के खाने में स्लाद, दही, सब्जी के साथ चावल या रोटी खाएं। शाम को एक मुट्ठी भूने हुए चने खाएं। रात को खान सोने से करीब दो से तीन घंटे पहले खाएं। खाना हलका होना चाहिए। इसमें स्लाद व दाल रोटी को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
2014 के एक अध्ययन से पता चला है कि गर्भवती महिलाओं में एमईआरएस और सार्स कोरोना वायरस का अधिक गंभीर असर हो सकता है।
-डा. गुंझन , जिला एपीडिमोलाजिस्ट