शास्त्रीय संगीत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है सखी : कौशिकी
महज दो साल की उम्र से ही शास्त्रीय संगीत की पहचान रखने वाली पटियाला घराने की सुविख्यात विदूषी कौशिकी चक्रवर्ती आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं।

जालंधर : महज दो साल की उम्र से ही शास्त्रीय संगीत की पहचान रखने वाली पटियाला घराने की सुविख्यात विदूषी कौशिकी चक्रवर्ती आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। 12 साल की उम्र में आइटीसी एसआरए से स्कालर की उपाधि हासिल करने वाली कौशिकी पहली बार उस समय चर्चा में आई थीं, जब अपने पिता अजय चक्रवर्ती के साथ अमेरिका में कंसर्ट टूर में हिस्सा लिया था। महज 16 साल की उम्र में कौशिकी ने शास्त्रीय संगीत की दुनिया में तूफान लाते हुए खुद को अपनी उम्र के संगीतकारों में सबसे अलग साबित कर दिया था। कौशिकी को संगीत की शिक्षा पंडित जनन प्रकाश घोष से मिली। इसके बाद इस सिलसिले को उनके पिता अजय चक्रवर्ती ने आगे बढ़ाया और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी। कौशिकी को ख्याल ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती आदि विधाओं में महारत हासिल है। महिलाओं के शास्त्रीय संगीत में भागीदारी को बढ़ाने के लिए उन्होंने एक बैंड सखी भी बनाया है, जिसका पहला एलबम कारवां जल्द ही रिलीज होने वाला है। कौशिकी को साल 2020 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद के हाथों नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने बातचीत में कहा कि सखी शास्त्रीय संगत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है। दो साल की उम्र में मां चंदना चक्रवर्ती ने उसके इस हुनर को पहचाना था। श्री हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन में शामिल होकर कैसा महसूस कर रही हैं?
भारतीय संगीत से जुड़े किसी भी कलाकार या संगीत की समझ रखने वाले हर व्यक्ति के लिए श्री हरिवल्लभ संगीत सम्मलेन आस्था का विषय है। डेढ़ सौ सालों से भारतीय संगीत के लगभग सभी दिग्गज इस सम्मलेन में हिस्सा ले चुके हैं। इस मंच पर आने पर हर बार मुझे गर्व की अनुभूति होती है। मुझे याद है दस साल पहले भी मैं जालंधर श्री हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन में हिस्सा लेने आई थी। नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है सखी, क्या कहेंगी?
एक महिला होने के नाते मुझे इस बात की जरूरत महसूस हुई कि महिलाओं को समाज में बराबरी का हक दिलाने के लिए किसी को तो आगे आना होगा। महिलाओं की बात और उनके अधिकारों की बराबरी को समाज के सामने रखने की जरूरत थी और सखी वह जरिया बनी। सखी में छह महिला कलाकार शामिल हैं, जिन्होंने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में प्रोग्राम कर महिलाओं की बातों को सुरों के माध्यम से दुनिया के सामने रखा है। अनुशासन ही है सफलता की कूंजी है?
समय के साथ-साथ संगीत और संगीत के माध्यमों में भी बदलाव आ रहा है। इंटरनेट के आ जाने से अब संगीतकारों के लिए अपनी रचनाओं को लोगों तक पहुंचाना काफी आसान हो गया है। युवा कलाकारों को खास तौर पर इस बात का ध्यान रखना होगा कि बिना पूरी तैयारी के अपनी रचनाओं को इंटरनेट मीडिया पर न डालें। इसके लिए पहले पूरी तैयारी करें।
-प्रस्तुति: भूमिका कत्थक
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