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    RL Bhatia Passed Away: 1984 के सिख दंगों में जीत दर्ज कर बचाई थी कांग्रेस की साख, बाद में नवजोत सिंह सिद्धू से खाई मात

    By Kamlesh BhattEdited By:
    Updated: Sat, 15 May 2021 09:21 AM (IST)

    RL Bhatia Passed Away अमृतसर लोकसभा क्षेत्र से 6 बार सांसद रहे आरएल भाटिया का कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया। हाल में उन्होंने अपना 100वां जन्मदिन मनाया था। भाटिया को पंजाब में कांग्रेस का वटवृक्ष माना जाता था।

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    आरएल भाटिया ने हाल में ही अपना 100वां जन्मदिन मनाया था। फाइल फोटो

    अमृतसर [विपिन कुमार राणा]। RL Bhatia Passed Away: कांग्रेस में वटवृक्ष का रुतबा रखने वाले पूर्व विदेश राज्यमंत्री आरएल भाटिया शनिवार सुबह कोरेाना से देहांत हो गया। वह सौ साल के थे। केरल व बिहार के पूर्व राज्यपाल भाटिया अमृतसर से छह बार सांसद चुने गए। 23 जून 2004 से 10 जुलाई 2008 तक वह केरल और 10 जुलाई 2008 से लेकर 28 जून 2009 तक बिहार के राज्यपाल रहे। भाटिया 1992 में पीवी नरसिम्हा की सरकार में विदेश राज्यमंत्री रहे। सियासत में अपनी साफ सुथरी छवि के लिए भाटिया जाने जाते थे।

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    ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद चुनाव में कई फेरबदल हुए केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा चार साल पूरे होने पर गरीबी हटाओ के नारे पर चुनाव करवाए गए थे। उस समय अमृतसर म्युनिसिपल कमेटी के तत्कालीन मुखिया दुर्गा दास भाटिया ने कांग्रेस के टिकट पर अमृतसर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। दुर्गा दास भाटिया का एक साल बाद ही निधन हो गया। 

    दुर्गा दास भाटिया के निधन के बाद कांग्रेस ने उनके भाई रघुनंदन लाल भाटिया को उपचुनाव में मैदान में उतारा। भाटिया ने यज्ञ दत्त शर्मा को हराया। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में तत्कालीन जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ. बलदेव प्रकाश ने रघुनंदन लाल भाटिया को मात दी। 1980 के लोकसभा चुनाव में रघुनंदन लाल भाटिया ने भाजपा के डॉ. बलदेव प्रकाश को शिकस्त दी।

    जन्मदिन के मौके पर आरएल भाटिया। फाइल फोटो

    1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार और दिल्ली दंगों के बावजूद रघुनंदन लाल भाटिया चुनाव जीत गए थे। 1989 चुनाव के दौरान प्रदेश में आतंक की काली परछाई बहुत गहरी थी, तब चीफ खालसा दीवान के तत्कालीन प्रधान किरपाल सिंह बतौर आजाद उम्मीदवार मैदान में उतरे और आरएल भाटिया को हराया। 1991 और 1996 के चुनाव में भी भाटिया को जीत मिली। अमृतसर से 1952 में ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर पहले जट सिख उम्मीदवार थे।

    इसके लगभग 31 साल बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक शहरी सिख दया सिंह सोढ़ी को चुनाव मैदान में उतारा। सोढ़ी ने आरएल भाटिया के वर्चस्व को तोड़ते हुए यह सीट जीती। 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब प्रदेश में अकाली-भाजपा की सरकार थी, तब दया सिंह सोढ़ी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की कार्यप्रणाली पर बयान दिए। सोढ़ी उस चुनाव में नहीं जीत पाए। लंबे समय तक चले भाटिया के एकछत्र राज को नवजोत सिंह सिद्धू ने ध्वस्त किया। भारतीय जतना पार्टी के टिकट पर सिद्धू ने 2004, उपचुनाव 2007 व 2009 तक लगातार जीत दर्ज करते हुए हैट्रिक बनाई।

    निभाई कई अहम जिम्मेदारियां

    • भाटिया पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान भी रहे।
    • 1982 से 1984 तक यह जिम्मेदारी निभाई।
    • 1991 में कांग्रेस कमेटी के सचिव चुने गए।
    • बतौर सांसद भाटिया संयुक्त राष्ट्र में डेलीगेट के नाते भारत का प्रतिनिधित्व किया।
    • 1983 में दिल्ली में हुए 7वें एनएएम सम्मेलन में बतौर डेलीगेट भाग लिया।
    • भाटिया 1983 से 1984 तक इंडिया कौंसिल फार कल्चर रिलेशनज के सदस्य रहे।
    • 1983 से 1990 तक इंडिया बुलगारिया फ्रेडशिप सोसायटी के चेयरमैन रहे और इंडो जीडीआर फ्रेडशिप एसोसिएश के 1983 से 1990 तक सह चेयरमैन रहे।