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    नेताजी द्वारे-द्वारे जाकर हाथ जोड़ कर रहे वोट की अपील, पढ़ें अमृतसर की और भी रोचक खबरें

    By Vinay KumarEdited By:
    Updated: Wed, 09 Feb 2022 09:39 AM (IST)

    Punjab Election 2022 अमृतसर में इस बार पर चिकोणे मुकाबले के समीकरण ने गेम ऐसी उलझा दी है कि अब नेताजी द्वारे-द्वारे जाकर हाथ जोड़कर वोट की अपील कर रहे हैं। इस पर दूसरे व्यक्ति ने कहा कि वोटतंत्र है ही ऐसा यही मौका होता है।

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    Punjab Election 2022 नेताजी द्वारे-द्वारे जाकर लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं।

    अमृतसर [विपिन कुमार राणा]। Punjab Election 2022 नेताजी अब द्वारे-द्वारे : चुनावी घमासान में कई दिग्गजों को लग रहा था कि वह आसानी से जीत जाएंगे लेकिन जैसे समीकरण इस बार बने हैं, अच्छे-अच्छों की हवा निकली हुई है। पिछले दिनों पाश एरिया रणजीत एवेन्यू के एक बाग में बुद्धिजीवी वर्ग के कुछ लोग सैर कर रहे थे। तभी उनमें बातचीत के दौरान चुनावी गुफ्तगू शुरू हो गई। इसी बीच एक व्यक्ति ने तंज कसते कहा कि शहर के कुछ दिग्गज नेता पहले दौर में तो चुनाव प्रचार में निकले नहीं। वे रिश्तेदारों को भेजते रहे। उन्हें लग रहा था कि बैठे-बिठाए जीत जाएंगे। पर चिकोणे मुकाबले के समीकरण ने उनकी गेम ऐसी उलझा दी है कि अब नेताजी द्वारे-द्वारे जाकर हाथ जोड़कर वोट की अपील कर रहे हैं। इस पर दूसरे व्यक्ति ने कहा कि वोटतंत्र है ही ऐसा, यही मौका होता है जब नेता आशीर्वाद लेते नजर आते हैं और लोगों को वोट की अहमियत का पता चलता है।

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    कहीं अहंकार ना ले डूबे

    विधानसभा चुनाव को लेकर अमृतसर का सियासी पारा चढ़ा हुआ है। हर जगह बस चुनाव और मैदान में उतरे प्रत्याशियों को लेकर ही कयासबाजी हो रही है। शहर में एक जगह कुछ लोग जुटे थे। उनमें एक बड़े शिवभक्त नेता की चर्चा छिड़ी हुई थी। इसी दौरान भावुक होते हुए एक व्यक्ति ने कहा कि इनका जीतना तो तय है, क्योंकि यह बहुत बड़े शिवभक्त हैं। कई ने तो उनकी हां में हां मिला दी, पर बीच में से एक ने टोकते हुए कहा कि एक चीज मत भूलो, शिवभक्त तो रावण भी था, पर उसके अहंकार ने उन्हें हरा दिया था। अब हमारे नेताजी बहुत बड़े हैं, ऐसे में वह नतमस्तक होकर चलेंगे तो हो सकता है जीत जाएं, अगर अहंकार में चले तो फिर रावण भी इससे बच नहीं पाया था। वैसे भी चुनाव में तो नतमस्तक होकर चलना जरूरी हैै, पता नहीं कब किसकी जरूरत पड़ जाए।

    लगता है हवन करवाना पड़ेगा

    कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चले लंबे घमासान के बाद आखिर तस्वीर साफ हो ही गई। इसमें सीएम चरणजीत सिंह चन्नी बाजी मार गए और कांग्रेस के प्रदेश प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू रह गए। सिद्धू को सीएम का चेहरा न बनाए जाने के बाद उनके समर्थक खासे हताश नजर आए। वैसे तो पिछले लंबे समय से यही हो रहा है कि नवजोत सिद्धू जो भी करने जाते हैं, वही दांव उलटा पड़ जाता है। घोषणा नहीं होने के बाद सिद्धू की होली सिटी स्थित कोठी पर सन्नाटा छाया हुआ था और परिवार व समर्थक मीडिया से दूरी बनाकर चल रहे थे। यही नहीं, उनके समर्थकों में यह चर्चा चल रही थी कि पता नहीं बार-बार ऐसा क्यों हो रहा है? एक ने कहा कि लगता है उनकी गृहचाल ही खराब चल रही है। हर बार कोई न कोई अड़चन आ जाती है, लगता है हवन करवाना पड़ेगा।

    हमारी अहमियत कैसे पता चलेगी?

    जब चुनावी मौसम की बहार आती हैै तो दलबदलुओं की चांदी हो जाती है। रूटीन में तो चुनाव जीतने के बाद नेता वर्करों को घास तक नहीं डालते। यही कारण है कि चुनाव के समय वर्कर पाला बदलने में देर नहीं लगाते। क्षेत्र में नुकसान ना हो इसलिए नेता रुठों को मनाने में जुट जाते हैं। पिछले दिनों एक राष्ट्रीय पार्टी के कुछ वर्करों को मनाने के लिए नेताजी उनके मोहल्ले में पहुंचे। पहले तो वर्करों ने नेताजी से मिलने को लेकर काफी टालमटोल किया। बाद में टकसाली नेताओं के हस्तक्षेप से मुलाकात हो गई। नेताजी बोले, आप हर बार नाराज होते हैं और बाद में चल भी पड़ते हो। इस पर चुटकी लेते हुए एक वर्कर ने कहा कि अगर नाराज नहीं होंगे तो आपको हमारी अहमियत कैसे पता चलेगी? आप लोग भी तो चुनाव में ही वर्करों को पूछते हैं, उसके बाद तो आपको भी याद नहीं आती।