Parkash Singh Badal: इस वजह से प्रकाश सिंह बादल को नहीं आता था गुस्सा, धैर्य से सुनते थे अपनी आलोचना
Parkash Singh Badal पूर्व मुख्यमंत्री की परछाई बनकर चलने वाले पार्टी के प्रवक्ता डा. दलजीत सिंह चीमा का कहना है कि बादल साहिब अनुशासित जीवन पर विश्वास करते थे। वह जो समय देते थे उस समय पर वह वहां पर मौजूद रहते थे।

चंडीगढ़, जागरण संवाददाता। देश के सबसे वयोवृद्ध नेता प्रकाश सिंह बादल अपने साथ ही उस राज को भी ले गए कि आखिर उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आता था। उनके साथ ही नहीं बल्कि उनके धुर विरोधी को भी पता रहता था कि बादल की कितनी भी आलोचना कर लो, लेकिन अपने चेहरे से वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देते।
वर्ष 2012 से लेकर 2015 तक कांग्रेस के विधायक दल के नेता रहे (अब भाजपा में) सुनील जाखड़ कहते हैं, शायद इतना धैर्य किसी व्यक्ति में देखा नहीं जा सकता। आज के राजनेता अपनी थोड़ी सी आलोचना नहीं सुन सकते, जबकि प्रकाश सिंह बादल ऐसे शख्स से जिनके सामने आप घंटों आलोचना करते रहो, लेकिन वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे। उत्तेजना तो उनके अंदर थी ही नहीं।
प्रकाश सिंह बादल समय के बेहद पाबंद थे। वर्ष 2007 से 2012 की सरकार के दौरान जब उन्होंने संगत दर्शन का कार्यक्रम शुरू किया तो कई ऐसे मौके आए जब पूर्व मुख्यमंत्री सुबह के निर्धारित समय पर पहुंच गए और संगत दर्शन वाले स्थान पर कुर्सियां ही लग रही थी।
पूर्व मुख्यमंत्री की परछाई बनकर चलने वाले पार्टी के प्रवक्ता डा. दलजीत सिंह चीमा का कहना है कि बादल साहिब अनुशासित जीवन पर विश्वास करते थे। वह जो समय देते थे उस समय पर वह वहां पर मौजूद रहते थे।
बादल जब मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस विपक्ष में तो कांग्रेस के नेताओं की हमेशा ही कोशिश रहती थी कि वह किसी प्रकार से बादल के सदन में बोलने से रोके, क्योंकि बादल ऐसे नेता थे जो अपनी ताकत और विपक्ष की दुखती रग को भी जानते थे।
यही कारण होता था कि कांग्रेस अक्सर ही अपनी बात को सदन में रखती थी, लेकिन वह बादल का सामना नहीं करना चाहते थे।बादल वह शख्स थे जो विपक्ष के बगैर सदन में बोलते ही नहीं थे। एक बार कांग्रेस ने बजट सत्र के दौरान बायकाट किया तो बादल ने अपने भाषण को इसलिए सीमित कर लिया, क्योंकि सामने में विपक्ष ही नहीं था।
उन्होंने सदन में कहा था अगर सामने सुनने वाला न हो तो बोलने का मजा नहीं आता। जाखड़ कहते हैं, जब मैं विपक्ष का नेता था तो बादल साहिब कहते थे, चौधरी साहिब (जाखड़) जितना बोलना चाहते हैं बोलने दिया जाए। यही नहीं उन्हें जिस बात का जवाब देना होता था या जो सवाल उठते थे वह उसे खुद ही नोट करते और जवाब की पूरी तैयारी करके आते थे। मैंने आज तक किसी को इतनी तैयारी करके आते नहीं देखा। डा. चीमा कहते हैं, संगत ही बादल साहिब की कमजोरी थी। संगत को देखकर उनकी आंखों में चमक आ जाती थी।

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