देश के साथ शहर के बंटवारे के भी साक्षी हैं गोपी चंद गुलाटी, मुस्लिम परिवार ने आश्रय देकर बचाई थी जान
जालंधर के 94 वर्षीय गोपीचंद गुलाटी केवल देश ही नहीं बल्कि शहर को भी चार हिस्सों में बांटे जाने के साक्षी रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक मुस्लिम परिवार की मदद से वह पाकिस्तान से भारत आए थे। 1953-54 में जालंधर का विभाजन उनकी आंखों के सामने हुआ था।
शाम सहगल, जालंधर। देश के विभाजन के दौरान पाकिस्तान के जिला मुल्तान के मियां चन्नू इलाके से शहर में आकर बसे गोपी चंद गुलाटी स्वतंत्रता संग्राम व समय के साथ-साथ शहर में आए व्यापक परिवर्तन की यादें खुद में संजोए हुए हैं। यह उनका अनुभव ही है कि शहर के किसी भी इलाके का मकान नंबर बताते ही वह झट से उसकी लोकेशन बता देते हैं।
सिर पर सफेद बाल, आंखों पर मोटे शीशे वाला चश्मा व चेहरे पर झलक रहा जीवन का अनुभव यह बताने के लिए काफी है कि चरणजीत पुरा निवासी 94 वर्षीय गोपीचंद गुलाटी केवल देश ही नहीं, बल्कि शहर को भी चार हिस्सों में बांटे जाने के जीते जागते गवाह हैं। गोपीचंद गुलाटी बताते हैं कि देश के विभाजन के बाद 1953-54 में शहर का भी विभाजन हुआ था। उस दौरान शहर को ईस्ट, वेस्ट, नार्थ व साउथ में बांटा गया था। यही कारण है कि शहर के मकानों के नंबर इलाके के हिसाब से लगाए गए थे। मिसाल के तौर पर उनके एनके नंबर के मकान नार्थ, डब्ल्यू ए नंबर के मकान वेस्ट, ई अक्षर वाले मकान ईस्ट और एस अक्षर वाले मकान साउथ में पड़ते थे।
सरकारी कैंप से तय किया चरणजीत पुरा तक का सफर
वह बताते हैं कि आजादी के दौरान जब दंगे हुए तो एक मुस्लिम परिवार ने उन्हें आश्रय दिया। मौका देखते हुए उन्हें देश भेजने में भी उस परिवार ने हरसंभव सहयोग दिया। इस तरह मुश्किल भरे सफर के बाद जालंधर पहुंचे तो यहां पर मिशन कंपाउंड में सरकारी कैंप में ठहरे। हालात सामान्य नहीं हुए तो लोगों को भार्गव कैंप में शिफ्ट कर दिया गया। उस समय माडल हाउस में जंगल हुआ करता था। चाचा पंडित रुचि राम ने उन्हें बस्ती गुजां में और फिर वहां से वह चरणजीत पुरा में शिफ्ट हो गए।
तब सामाजिक हुआ करती थीं सियासी पार्टियां
गोपी चंद गुलाटी बताते हैं कि उस समय सियासी पार्टियां सामाजिक अधिक हुआ करती थीं। चुनाव के दौरान किए गए वादे को खुद का दिया हुआ वचन माना जाता था। उन वादों को पूरा करने के लिए सियासी पार्टियां किसी भी हद तक चली जाती थी।
आदर्श नगर में होती थी नहर
शहर का पाश इलाका आदर्श नगर में विभाजन के बाद नहर हुआ करती थी। उस नहर में पत्नी जमुना देवी कपड़े धोने जाती थी। यहां की कई नहरों को विकास ने समाप्त कर दिया है।
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