महाशिवरात्रि को लेकर मंदिर ही नहीं बाजार भी सजे
11 मार्च को मनाई जा रही महाशिवरात्रि को लेकर मंदिर ही नहीं शहर के बाजार भी सज गए हैं।
शाम सहगल, जालंधर
11 मार्च को मनाई जा रही महाशिवरात्रि को लेकर मंदिर ही नहीं शहर के बाजार भी सज गए हैं। लोहड़ी के बाद मनाए जा रहे सबसे बड़े पर्व को लेकर कारोबारियों में भी खासा उत्साह है। इस बार खास बात यह है कि केवल पंजाब ही नहीं बल्कि विभिन्न राज्यों से भगवान शिव के लिए के श्रृंगार के लिए खास उत्पाद उतारे गए हैं।
महाशिवरात्रि को लेकर शहर के बाजारों में अलीगढ़ का बना हुआ खास किस्म का त्रिशूल, बनारस का डमरू, मुरादाबाद का तांबे का नाग और राजस्थान के शिवलिग की मांग में भारी इजाफा हुआ है। इस बारे में सेवक धूप भैरों बाजार के रामजी बताते हैं कि कोरोना काल के बाद शिवरात्रि को लेकर उम्मीद की किरण दिखी है। लोग मंदिर ही नहीं बल्कि घरों में भी खास किस्म के उत्पादों की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस बार बनारस के डमरू की ज्यादा मांग है। इसके अलावा अलीगढ़ का त्रिशूल भी खासा पसंद किया जा रहा है। कारण, इस त्रिशूल पर की गई कलाकारी केवल अलीगढ़ में ही की जाती है। इसी तरह राजस्थान से हर साइज में शिवलिग मंगवाए गए हैं, जिनकी कीमत महज 200 रुपये से लेकर साइज व शेप के हिसाब से निर्धारित हैं। पूजा के सामान के विक्रेता प्रिस बताते हैं कि बीते वर्ष अधिकतर त्योहार
लाकडाउन में ही बीत गए थे। इसके चलते कारोबार भी मंदा रहा। इस बार महाशिवरात्रि को लेकर लोगों में भारी उत्साह है। इससे मंदी के बादल भी छंटेंगे। शिव मंदिरों के बाहर लगेंगे बाजार
महाशिवरात्रि को लेकर भगवान शिव का श्रृंगार और पूजा की सामग्री के लिए भी छोटे दुकानदारों ने तैयारी की है। प्राचीन शिव मंदिर गुड़ मंडी के बाहर दुकान लगाने वाले मंगतराम बताते हैं कि शिवरात्रि के दिनों में पूजा के सामान की मांग बढ़ जाती है। ऐसे में मंदिर के बाहर ही फूल पूजा का सामान व अन्य सामग्री की छोटी दुकानें सजाई जाएंगी। चार पहर पूजा होने के चलते दिनभर खरीदारी का दौर भी चलता है।
विदेशों में भी है अलीगढ़ के त्रिशूल की मांग
त्रिशूल के ऊपर कारीगिरी का काम केवल अलीगढ़ में ही होता है। यही कारण है कि अलीगढ़ के त्रिशूल की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में रहते शिव भक्तों द्वारा भी की जाती है।
महत्व : बुराई को नष्ट करने के साथ ही नकारात्मक उर्जा को ध्वस्त करने का प्रतीक भी माना जाता है। डमरू पर लगता है विशेष सूत्र
बनारस में तैयार होने वाले भगवान शिव के डमरू में विशेष सूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। यह सूत्र बनारस की ड्रेसेज में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे पूर्ण रूप से शुद्ध तथा मजबूत माना जाता है।
महत्व : सनातन धर्म के मुताबिक शुद्ध ध्वनि व प्रकाश से ही ब्रह्मांड की उत्पति हुई है। डुगडुगी के नाम से भी जाना जाता डमरू भगवान शिव को अति प्रिय है।
हर आकर में मौजूद गुजरात का शिवलिंग
मार्बल व ग्रेनाइट के लिए देश भर में विख्यात गुजरात के शिवलिग हर आकार में मौजूद है। बेहतर शेप तथा फिनिशिग के लिए गुजरात के शिवलिग की मांग हमेशा से रही है।
महत्व : संस्कृत भाषा में लिग को प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के प्रतीक के रूप में ही शिवलिग की पूजा की जाती है।