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श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर लगी छबीलें, इस शहर से रहा है गुरु का खास नाता

श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस के मौके पर विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थल श्री हरिमंदिर साहिब में ठंडे मीठे जल की छबील लगाई गई।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 07 Jun 2019 01:22 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2019 01:24 PM (IST)
श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर लगी छबीलें, इस शहर से रहा है गुरु का खास नाता

जेएनएन, अमृतसर/तरनतारन। श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस के मौके पर विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थल श्री हरिमंदिर साहिब में ठंडे मीठे जल की छबील लगाई गई। श्रद्धालुओं ने पवित्र सरोवर में स्नान किया और गुरु घर का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके अलावा राज्यभर मेंं विभिन्न स्थानों पर ठंडे मीठे जल की छबील गई।

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श्री गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी के घर में जन्म लिया। उन्हेें शांति के पुंज के नाम से भी जाना जाता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के रचयिता श्री गुरु अर्जुन देव जी ने सिखी के प्रचार लिए तरनतारन नगर बसाया था। साथ ही उन्होंने यहां पर श्री दरबार साहिब का निर्माण करवाया जहां पर उनका शहीदी दिवस संगतों द्वारा मनाया जाता है। 

सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी की धर्मपत्नी बीबी भानी जी का नाम भी सिख इतिहास में सम्मान के साथ लिया जाता है। श्री गुरु अर्जुन देव जी का विवाह माता गंगा जी के साथ हुआ था। उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया जो सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद जी के नाम से जाने जाते हैंं। उन्होंने सिखी के प्रचार लिए और जरुरत को महसूस करते हुए दिल्ली से लाहौर (बरास्ता श्री गोइंदवाल साहिब) वाली सड़क पर नगर बसाने लिए गांव पलासोर, मुरादपुरा, कोट काजी व खानेवाल की ढाब पर रुके। यहां का वातावरण गुरु जी को पसंद आया।

श्री गुरु अर्जुन देव जी ने कोट काजी, पलासोर की ढाब वाली जमीन 1 लाख 57 हजार रुपये में खरीद कर यहां पर पावन सरोवर का निर्माण करवाया। गुरु जी ने बाबा बुडढा साहिब जी से अरदास करवाकर तरनतारन नगर की नींव 1590 ई. में रखवाई। गुरुजी ने तरनतारन नगर बसाते वर दिया कि यह नगरी खुद तरेगी और दूसरों को तारेगी जिसके चलते इस नगर को तरनतारन के नाम से जाना जाता है।

शेर-ए-पंजाब महाराजा रंजीत सिंह ने 1802 से लेकर 1837 तक तरनतारन नगर के कई बार दर्शन किए। 14 जुलाई 1836 को महाराजा रंजीत सिंह के आदेशों पर तरनतारन नगर की पक्की चारदीवार करवाई गई। महाराजा रंजीत सिंह के पोते कंवर नौनिहाल सिंह की ओर से श्री दरबार साहिब तरनतारन की परिक्रमा में 156 फीट 6 इंच ऊंचा मीनार बनवाया गया। गुरु जी ने अपने ऊपर होने वाले प्रत्येक जुल्म को गुरु का भाना माना व शांति का संदेश दिया। जिसके चलते उनकों शांति के पुंज के नाम से भी जाना जाता है।

गुरुनगरी तरनतारन की विशेषताएं

  • 1886 में तरनतारन को नगर पालिका में शामिल किया गया।
  • 1906 में तरनतारन को रेलवे स्टेशन मिला।
  • 1908 को सिख एजुकेशन कमेटी चीफ खालसा दीवान अमृतसर द्वारा खालसा प्रचारक विद्यालय खोला गया।
  • 21 दिसंबर 1911 को भाई मोहन सिंह जी वैद को नगरपालिका का पहला कमिश्नर नियुक्त किया गया।
  • 24 मई 1913 को अमृतसर जिले के डिप्टी कमिश्नर ने अमावस्या के मौके पर शराब की दुकानों पर रोक लगाने के आदेश दिए।
  • 1915 को तरनतारन में प्रथम आनरेरी मजिस्ट्रेट की अदालत कायम हुई।
  • 7 दिसंबर 1928 को सरकारी गजट में नोटिफिकेशन तहत एक अप्रैल 1929 को शराब की दुकानेंं शहर की हद से बाहर भेज दी गई।
  • 1947 में देश के बंटवारे के बाद तरनतारन को तहसील का दर्जा मिला।
  • 2006 में श्री गुरु अर्जुुन देव जी के 400 साला शहीदी दिवस मौके तरनतारन को जिले का दर्जा मिला।

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