अंग्रेजों के जमाने से विख्यात है जालंधर का कोतवाली बाजार, यहीं ठहरे थे बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थी
अंग्रेजों के जमाने में जिले की एकमात्र जेल के सामने कोतवाली (पुलिस थाना) हुआ करती थी। यहीं पर बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को ठहराया गया ...और पढ़ें

शाम सहगल, जालंधर। जिले की एकमात्र जेल के सामने बनाई गई कोतवाली की जगह में समय के साथ कई परिवर्तन किए गए। विभाजन के बाद यहां पर रिफ्यूजी केंद्र बनाया गया था, तो अब यहां पर फायर ब्रिगेड केंद्र है। क्षेत्र निवासी वरिष्ठ नागरिक गोपी चंद गुलाटी के मुताबिक कोतवाली के साथ लगते पूरे इलाके को कोतवाली बाजार के नाम से जाना जाता था, जो आज भी बरकरार है।
देश के विभाजन से पहले तथा अंग्रेजों के जमाने में जिले की एकमात्र जेल के सामने कोतवाली (पुलिस थाना) हुआ करती थी। यहां पर अपराधियों के लिए बैरक भी बने हुए थे। इसमें अदालती फैसले से पहले अपराधियों को रखा जाता था। अदालत से सजा सुनाए जाने के बाद अपराधियों को सड़क पार करके जेल भेज दिया जाता था। यह शहर की सबसे पुरानी कोतवाली हुआ करती थी।
एक तरफ पुरानी सब्जी मंडी तो दूसरी तरफ जेल रोड। इसके बीच शहर के प्रमुख व्यापारिक प्रतिष्ठानों की मार्केट कोतवाली बाजार खुद में 200 साल पुराना इतिहास संजोए हुए है। अंग्रेजों के जमाने में विकसित हुए इस बाजार का नाम इसके साथ लगती जीटी रोड पर बनाई गई कोतवाली के नाम से विख्यात हुआ, जो आज भी बरकरार है।
जालंधर की जेल को कपूरथला शिफ्ट कर दिया गया है। आज उस स्थान पर दमकल केंद्र चल रहा है।
दिन ढलने के बाद लोग गुजरने से भी कतराते थे
गोपी चंद गुलाटी बताते हैं कि सड़क के एक तरफ जेल तो दूसरी तरफ कोतवाली होने के चलते दिन ढलने के बाद लोग यहां से गुजरने से भी कतराते थे। कारण, अपराधियों को पकड़ कर कोतवाली में बने बैरकों में भेजा जाता था। वहीं जेल में दिन ढलते ही सख्त पहरे के कारण यहां से गुजरने वालों को भी ब्रिटिश पुलिस द्वारा शक की नजर से देखा जाता था। यही कारण रहा था कि दिन ढलने के बाद लोग इस रोड से आते-जाते नहीं थे।
तब मेन रोड पर था भगवान वाल्मीकि चौक
कोतवाली से चंद कदमों पर हुआ करती थी कचहरी जेल तथा कोतवाली से जीटी रोड से होते हुए भगवान वाल्मीकि चौक के पास कचहरी पहुंचा जा सकता था। यहां पर अपराधियों को पेश करने के बाद तथा सजा मिलने के बाद जेल भेज दिया जाता था। कोतवाली बाजार के दुकानदार यशपाल मरवाहा बताते हैं कि सीमित शहर के दायरे में उस समय जीटी रोड शहर का बाहरी इलाका था। कोतवाली से चंद कदमों की दूरी पर भगवान वाल्मीकि चौक भी मेन रोड पर था।
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महानगर के वरिष्ठ नागरिक गोपी चंद गुलाटी और कोतवाली बाजार के दुकानदार यशपाल मरवाहा।
पाकिस्तान से आए लोगों को ठहराया जाता था यहां
देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान से पलायन कर जालंधर पहुंच रहे लोगों को कोतवाली वाली जगह पर ठहराया जाता था। शहर के बाहरी इलाके में सुरक्षित व खुला स्थान होने के चलते प्रशासन द्वारा इस जगह को रिफ्यूजी केंद्र के लिए सबसे बेहतर माना गया। शरणार्थियों को शिफ्ट करने के बाद खाली हुए स्थान को फायर ब्रिगेड केंद्र में शिफ्ट किया गया, जो आज भी बरकरार है।
अब न कोतवाली रही, न जेल
सड़क के एक तरफ कोतवाली के आसपास के इलाके को कोतवाली बाजार तो सड़क पार करके बनी जेल के आसपास के इलाके को जेल रोड के नाम जाना जाता रहा है। कोतवाली के पीछे रिहायशी मोहल्ले व इसके साथ ही गुड़ मंडी थी। जेल के साथ लगते इलाके में खेत व जंगलनुमा क्षेत्र था। समय के साथ न तो यहां कोतवाली रही और न ही जेल। जालंधर की जेल को कपूरथला शिफ्ट कर दिया गया है।
अब व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए जाना जाता है बाजार
कोतवाली के आसपास के इलाके में अतिक्रमण होने के बाद रिहायशी इलाका बाजार में परिवर्तित हो गया। यहां पर बांस, रस्सियां, झाड़ू, थोक करियाना से लेकर रिटेल करियाना व मनियारी का कारोबार किया जाता है। कभी जिस इलाके से दिन ढलने के बाद लोग गुजरने से भी कतराते थे, वहां अब लोग रात तक खरीदारी करते हैं।

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