Punjab Heritage: पंजाब का पेरिस कहलाता है कपूरथला, पर्यटकों का दिल जीत लेता है यहां का इंडो-फ्रेंच आर्किटेक्चर
पंजाब का कपूरथला शहर राजा-महाराजाओं का शहर कहलाता है। इसे अपनी बेजोड़ वास्तुकला नमूनों के लिए पंजाब का पेरिस भी कहते हैं। यहां आपको इंडो-फ्रेंच और इंडो-ग्रीक शैली के भवन देखने को मिलते हैं। यहां का सुल्तानपुर लोधी कस्बा सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।

हरनेक सिंह जैनपुरी, कपूरथला। यदि आप पंजाब आए हैं और देश की अमीर विरासत, इंडो फ्रेंच आर्किटेक्चर के अद्भुत नमूने देखना चाहते हैं तो कपूरथला आना न भूलें। यह शहर राजा-महाराजाओं का शहर कहलाता है और ब्रिटिश काल में भारत की एक बड़ी रियासत था। बेहद खूबसूरत शहर को शानदार वास्तुकला के लिए 'पंजाब का पेरिस' (Paris of Punjab) भी कहते हैं। कपूरथला को नवाब जस्सा सिंह आहलूवालिया ने बसाया था।
यहां स्थिति जगतजीत पैलेस, दरबार हाल, पंच मंदिर, मौरिश मस्जिद, गुरुद्वारा श्री बेर साहिब, जगतजीत क्लब, विल्ला कोठी, जलोखाना, शालिमार बाग, घंटा घर, जुबली हाल एवं बग्घी खाना, कांजली झील, आदि प्राचीन स्थलों के साथ साथ अब साइंस सिटी एवं रेल कोच फैक्टरी भी आकर्षण का केंद्र हैं। इस विरासती शहर में मौजूद प्राचीन इमारतें इंडो-फ्रेंच वास्तुकला के अनूठे उदाहरण हैं। अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण यह शहर पंजाब के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में गिना जाता है।
कपूरथला स्थित मनमोहक दरबार हाल (दीवान-ए-खास)।
फ्रांसीसी वस्तुशिलप का अदभुत नमूना जगतजीत पैलेस (Jagatjit Palace)
जगतजीत महल में कपूरथला रियासत के महाराजा जगतजीत सिंह रहते थे। यह करीब 200 एकड़ में फैला है। पुरानी कचहरी में बना उनका मनमोहक दरबार हाल (दीवान-ए-खास) भारत के सबसे खूबसूरत हाल में से एक है। प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियां और सीलिंग पर बनी चित्रकारी फ्रांसिसी कला और वास्तुशिल्प की विशेषताओं को दर्शाती हैं।
जगतजीत पैलेस, हेरीटेज उत्सव पर इसे दूधियां रोशनी से सजाया गया था।
इस महल का निर्माण कार्य वर्ष 1900 में शुरु हुआ था और 1908 में पूरी तरह बनकर तैयार हो गया था। महल का डिजाइन फ्रांसीसी वास्तुकार एम मार्सेल ने तैयार किया थायह महल 'पैलेस आफ वर्साइल' और 'फारनटेनब्लियू' की याद दिलाता है। वर्तमान में यहां सैनिक स्कूल चल रहा है, जिसने देश को अनेक जनरल, बिग्रेडीयर व अनेक सिविल, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी दिए हैं।
जगतजीत क्लब नगर के बीच में स्थित एक शानदार इमारत है।
जगतजीत क्लब
जगतजीत क्लब का निर्माण ग्रीक (यूनानी) शैली में किया गया है। यह कुछ-कुछ एथेंस के एक्रोपोलिस की याद दिलाता है। अपने बनने के समय से लेकर आज तक यह इमारत कई तरह से इस्तेमाल की गई है। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में यहां चर्च था, 1940 में सिनेमा हाल बना और आज इस इमारत में स्थानीय क्लब है।
कपूरथला स्थित प्रसिद्ध गोल कोठी, जिसका अब जीर्णोद्धार किया जा चुका है।
गोल कोठी
एसएसपी निवास के बिलकुल सामने स्थित गोल कोठी की विरासत व इतिहास भी बेहद अमीर है। इस गोल कोठी को महाराजा फतेह सिंह ने कपूरथला स्टेट के प्रधानमंत्री के आवास के तौर पर वर्ष 1833 में बनवाया था। इस इमारत में 1880 से कुछ सालों के लिए महाराजा जगजीत सिंह भी रहे है। करीब 187 साल पुरानी गोल कोठी की हालत पहले बेहद खराब हो गई थी लेकिन अब इसके जीर्णोद्वार का कार्य पूर्ण हो चुका है।
कपूरथला के शालिमार बाग का गेट, इसे लाहौर के शालिमार बाग की तर्ज पर बनाया गया है।
लाहौर के शालिमार बाग की तर्ज पर बना बाग
कपूरथला के शालिमार बाग को करीब दो सौ साल पहले लाहौर के शालिमार बाग की तर्ज पर बनाया गया था। यह बाग महाराजा फतेह सिंह व महाराजा रणजीत सिंह के आपसी प्रेम की गवाही भी देता है। बाग में बनी बारादरी में शाम को महाराजा फतेह सिंह व महाराजा रणजीत सिंह की महिफल जमती थी। इसमें बैठ कर दोनो पग वट भाई शास्त्रीय संगीत का लुत्फ उठाते थे। 10 एकड़ में बने शालामार बाग में लगे फव्वारे इसकी आभा को चार चांद लगाते हैं।
कपूरथला स्थित पुरानी बारादरी।
पुरानी बारादरी मुगल काल की बेहतरीन इमारत
इसी बाग में पुरानी बारादारी बनी है, जिसे मुगल काल की बेहतरीन इमारत माना जाता है। इस बारादारी की नक्काशी आगरा के बुलंद दरवाजों की मीनाकारी करने वाले कलाकारों ने की थी। इसकी आज कोई मिसाल नहीं मिलती। बाग में कपूरथला स्टेट के विभिन्न राजाओं की समाधियां भी हैं। यहां हर साल 100 साल से बसंत मेला लगता आया है। इसकी शुरुआत महाराजा जगतजीत सिंह ने की थी। वह हाथी पर सवार होकर बसंत पर बाग में पहुंचते थे और अपने राज्य जी जनता के साथ त्योहार मनाते थे। उस समय पूरा बाग केसरिया रंग में रग जाता था। पतंगबाजी के खूब मुकाबले होते थे।
विरासती शहर कपूरथला स्थित कैमरा बाग।
कैमरा बाग में मिलती है मन को ताजगी व ठंडक
विरासती शहर की ठंडी सड़क पर स्थित कैमरा बाग का इतिहास भी बहुत पुराना है। इस बाग की बगल में गोल कोठी स्थित है, जिसे शाही घराने का निवास स्थान माना जाता है। पुराने लोग गोल कोठी को शीशा कोठी भी कहते थे। इस गोल कोठी से जलोखाना व जगतजीत पैलेस के लिए अंडर ग्राउंड सुरंग भी जाती थी, जिससे होते हुए शाही परिवार के लोग जगतजीत पैलेस से गोल कोठी और जलोखाना आते जाते थे। शाही परिवार की गोल कोठी में आमद को देखते हुए महाराजा ने इसके बिलकुल पास कैमरा बाग का निर्माण करवाया गया, जिसमें अनेक विदेशी पौधे वृक्ष लगे हैं। गोल कोठी के साथ एसएसपी रैजीडेंस और सिविल रेस्ट हाउस स्थित है।
आज के रणधीर कालेज की शुरुआत वर्ष 1856 में महाराजा खड़क सिंह ने की थी।
भारत में शिक्षा का उजियारा फैलाता रणधीर कालेज
कपूरथला स्टेट के आर्मी ट्रेनिग ग्राउंड पर वर्ष 1856 में महाराजा खड़क सिंह ने अपने पिता महाराजा रणधीर सिंह की याद में संस्कृत विद्यालय की शुरुआत की थी। 1896 में महाराजा जगतजीत सिंह ने इस विद्यालय को इंटर मीडिएट कालेज बना दिया। तब यह कोलकता विश्वविद्यालय से संबंद्ध था। उस समय यह उत्तर भारत का यह सबसे पुराना उच्च शिक्षण संस्थान था। लाहौर के बाद उच्च शिक्षा के लिए हिमाचल, हरियाणा व पंजाब के लोग रणधीर कालेज आते थे। 1945 में इसे डिग्री कालेज का रुतबा हासिल हुआ।
जुबली हाल की इमारत को कभी विधानसभा के रूप में प्रयुक्त किया गया था।
जुबली हाल था रियासत की विधानसभा
इस कालेज में महाराजा जगतजीत सिंह की तरफ से अपनी ताजपोशी की सिल्वर जुबजी के अवसर पर 1918 में बीकानेर के बाद रायल स्टेट की दूसरी विधान सभा की स्थापना की थी। इसे जुबली हाल कहते हैं। महाराजा ने अपनी स्टेट में बकायदा चुनाव करवा कर विधानकारों का चयन किया और तमाम विकास कार्यों में उनकी पूरी सहायता ली। जुबली हाल की इमारत अब 101 साल पुरानी हो चुकी है। इसकी मरम्मत होने से अब यह इमारत सुरक्षित है। यह इमारत अभी कालेज की देख रेख में ही है, पुरात्तव विभाग ने अभी तक इस इमारत के जीर्णोद्वार की जिम्मेदारी नही ली है।
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