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    महादान ने बढ़ाया सोनी का सम्मान

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 13 Jun 2022 07:27 PM (IST)

    रक्तदान को महादान कहा गया है। सड़क हादसों में घायल व गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए महादान उनकी जिदगी बचाने के लिए वरदान साबित होता है। महादान करने वालों को सम्मान मिलने और जागरूकता से इनकी संख्या का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा है।

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    महादान ने बढ़ाया सोनी का सम्मान

    जगदीश कुमार, जालंधर

    रक्तदान को महादान कहा गया है। सड़क हादसों में घायल व गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए महादान उनकी जिदगी बचाने के लिए वरदान साबित होता है। महादान करने वालों को सम्मान मिलने और जागरूकता से इनकी संख्या का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा है।

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    जालंधर के सेशन कोर्ट में बतौर रीडर तैनात जतिदर सोनी 152 बार खूनदान कर चुके है। हजारों की तादाद में लोगों को जागरूक कर खूनदान के लिए प्रेरित भी कर रहे है। उन्होंने पुरुषों के अलावा महिलाओं को भी महादान की राह दिखाई। उन्होंने बताया कि 1989 में पिता सुरिदर पाल सोनी का कूल्हा टूट गया और उन्हें मिल्ट्री अस्पताल में दाखिल करवाया गया। डाक्टरों ने खून का इंतजाम करने के लिए कहा तो कोई भी आगे नहीं आया। किराएदार को दो किलो देसी घी और पचास रुपये नकद देकर एक यूनिट खून लिया। इसके बाद खुद खूनदान की ठान ली। वह पहली बार साइकिल पर खूनदान करने के लिए जालंधर छावनी मिलिट्री अस्पताल ही गए थे। कोरोना काल में भी सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक में खून की कमी को दूर करने के लिए लोगों को प्रेरित किया था। उनकी पत्नी मोनिका सोनी ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया है। वह मरीजों को खूनदान करने के लिए अमृतसर, लुधियाना, चंडीगढ़ और श्री हजूर साहिब तक भी गए है। इस दौरान द ब्लड एसोसिएशन संस्था का दामन थामा। उन्हें भारत श्री अवार्ड 2018, यूथ आईकोन अवार्ड, रियल लाइफ हीरो अवार्ड व जिला प्रशासन के अलावा राज्य और केंद्र सरकार से भी सम्मान मिला है। महिलाएं भी पीछे नहीं

    खूनदान करने में महिलाओं भी पीछे नहीं है। ज्यादातर महिलाएं खूनदान करने से कन्नी कतराती है, इसके बावजूद मोहल्ला गोबिदगढ़ में रहने वाली प्रिया बिदरा महादान के लिए पूरी तरह से समर्पित है। वह कहती है कि खूनदान करने की इच्छा बचपन से ही थी लेकिन डर लगता था। खूनदान करने में रिकार्ड कायम करने वाले जतिदर सोनी ने उन्हें प्रेरित किया और डर निकालने के लिए खूनदान कैंपों में लेकर गए। इसके बाद 18 साल की आयु में उन्होंने पहली बार खूनदान किया था। इसके बाद उनका डर निकल गया और अब रूटीन में खूनदान करती है। उनके दो बच्चे है। इसके बावजूद जब भी मौका मिलता है खूनदान करने के लिए कैंपों में पहुंच जाती है।

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