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ओम जय जगदीश हरे... पं. श्रद्धाराम फिल्लौरी को लोग भूले, उनकी लिखी आरती हर किसी की जुबां पर

फिल्लौर में 30 सितंबर 1837 को जन्मे श्रृद्धाराम शर्मा ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए शुरू किए जन आंदोलन को इसी आरती के जरिए 1870 में राष्ट्रवाद के आंदोलन में पिरोकर हिंदू व सिखों को एक मंच पर एक कर दिया था।

By Manoj TripathiEdited By: Published: Fri, 30 Sep 2022 12:35 AM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 12:37 AM (IST)
ओम जय जगदीश हरे... पं. श्रद्धाराम फिल्लौरी को लोग भूले, उनकी लिखी आरती हर किसी की जुबां पर
पं. श्रद्धाराम फिल्लौरी का जालंधर के फिल्लौर कस्बे में जन्म हुआ था।

मनोज त्रिपाठी, जालंधर। बेशक आज की नई पीढ़ी यह भूल चुकी है कि जिस आरती 'ओम जय जगदीश हरे' को वह सुबह अपने घरों या मंदिरों में सुनते हैं और अपने अच्छे दिन की कल्पना करते हुए भगवान से सुनहरे भविष्य की कामना करते हैं, उसके रचयिता (लेखक) श्रृद्धाराम शर्मा उर्फ श्रृद्धा राम फिल्लौरी का आज जन्मदिन है। इस आरती के जरिए फिल्लौरी आज जक जिंदा हैं।

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फिल्लौर में 30 सितंबर 1837 को जन्मे श्रृद्धाराम शर्मा ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए शुरू किए जन आंदोलन को इसी आरती के जरिए 1870 में राष्ट्रवाद के आंदोलन में पिरोकर हिंदू व सिखों को एक मंच पर एक कर दिया था। उनकी मृत्यु 24 जून 1881 में 44 साल की उम्र में पाकिस्तान के लाहौर में हुई थी। फिल्लौरी ने ओम जय जगदीश हरे आरती की रचना 1870 में की थी। ज्योतिषि पिता जयदयालु के घर में पैदा हुए फिल्लौरी सनातन धर्म के प्रचारक के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे।

अच्छे ज्योतिषि, अच्छे संगीतज्ञ व आर्य समाज को आगे बढ़ाने वाले फिल्लौरी हिंदी, संस्कृत, उर्दू, गुरमुखी, फारसी के भी विद्वान थे। जिस समय देश में स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था तो उस समय उन्होंने उस आंदोलन को राष्ट्रवाद का रूप देकर और मजबूत किया। इसके लिए जरूरी था कि कोई ऐसी रचना जिसे सभी गाते हों। रचना में श्रृद्धा हो और विश्वास हो।

उन्होंने 1870 में जब 'ओम जय जगदीश हरे लिखी' तो उसे खुद जाकर-जाकर लोगों को सुनाया करते थे। आंदोलन के कार्यक्रम स्थलों पर भी वह इसे सुनाते थे। धीरे-धीरे इस आरती ने पंजाब से निकलकर पूरे देश में श्रृद्धाभाव के साथ अपना स्थान बना लिया और मंदिरों में इसे भगवान की आरती के रूप में सुनाया जाने लगा।

पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष

सिख महिला महताब कौर से विवाह करने के बाद उन्होंने गुरुमुखी में 'सिखां दे राज दी विथियां' और 'पंजाबी बातचीत' जैसी पुस्तकें लिखकर सिखों को भी नई दिशा दी। यही वजह है कि हिंदी के पहले उपन्यासकार के अलावा पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में भी उनकी पहचान बन गई। भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती होने वाले अधिकारियों को उनकी पुस्तक के कुछ अंश आज भी पढ़ाए जाते हैं।

फिल्लौरी ने अपने व्याख्यान के दम पर पर अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का वातावरण तैयार कर अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। यही वजह थी कि 1865 में अंग्रेजों ने उन्हें फिल्लौर से निकाल दिया था। अपने विचारों को सशक्त तरीके से रखने के उनके तरीकों से ईसाई पादरी फादर न्यूटन बेहद प्रभावित थे। उनके हस्तक्षेप के बाद अंग्परेज हुकूमत को उनका निष्कासन रद करना पड़ा था।

हिंदी का पहला उपन्यास लिखा

उनके द्वारा 1877 में 'भाग्यवती' नामक लिखे गए उपन्यास को हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है। इसे उस समय शादियों के दौरान लड़कियों को लोग दहेज के रूप में देते थे। इसके अलावा संस्कृत व उर्दू व पंजाबी में भी उन्होंने तमाम किताबें लिखीं।

फिल्लौर में है स्मारक, लेकिन रखरखाव नहीं

उनकी याद में जालंधर-लुधियाना हाईवे के किनारे बसे फिल्लौर में एक स्मारक भी बनाया गया है, लेकिन रखरखाव का अभाव वहां हमेशा दिखाई देता है। नगर कौंसिल में उनके नाम पर बनी लाइब्रेरी में आज पढ़ने वालों की संख्या लगातार कम हो गई है और उसे स्टोर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां उनके नाम पर बनी लाइब्रेरी में उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों का अभाव है।


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