जालंधर के बाबा सोढल मंदिर में मिलता है संतान प्राप्ति का आशीर्वाद, श्रद्धालु चढ़ाते हैं लाखों टन दूध
Jalandhar Baba Sodal Temple जालंधर के बाबा सोढ़ल मंदिर में महिलाओं की सूनी गोद भर जाती है। कहा जाता है कि यहां पर संतान से वंचित लोग जब अपनी मनोकामना लेकर आते हैं तो बाबा सोढल उनकी यह इच्छा जरूर पूरी करते हैं।

जालंधर [प्रियंका सिंह]। जालंधर का बाबा सोढल मंदिर अपनी अनोखी परंपरा करके पूरी दुनिया में जाना जाता है। लगभग 500 साल पुराने इस मंदिर में प्रसाद के रूप में संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया जाता है। इसी कारण यह मंदिर देश-विदेश में प्रसिद्ध है। हर साल यहां हजारों बेऔलाद जोड़े संतान पाने की मनोकामना लेकर पहुंचते हैं। फिर, मनोकामना पूरी होने पर ढोल नगाड़ों के साथ नाचते हुए मंदिर आते हैं। 21 या 11 मट्ठियों का प्रसाद चढ़ा कर बाबाजी का धन्यवाद करते हैं। एक और खास बात यह है कि साल में एक बार लगने वाले विशाल मेले में श्रद्धालु लाखों टन दूध इस मंदिर में चढ़ाते हैं। कभी जालंधर आएं तो इस मंदिर के दर्शन करना ना भूलें।
भर जाती है सूनी गोद
सोढल रोड पर स्थित बाबा सोडल मंदिर में महिलाओं की सूनी गोद भर जाती है। कहा जाता है कि यहां पर संतान से वंचित जो भी लोग संतान प्राप्ति की मनोकामनाएं लेकर आते हैं, बाबा सोढल उनकी यह इच्छा पूरी कर देते हैं। जो भी इस मंदिर में अपनी मुराद लेकर आया, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटा है।
मंदिर के इतिहास को लेकर रोचक कथा
मंदिर के इतिहास को लेकर एक दंतकथा प्रचलित है। कहा जाता है कि यहां पर पहले एक ऋषि का आश्रम हुआ करता था। इसमें चड्ढा परिवार की बहू संतान प्राप्ति के लिए रोज सेवा करने आती थी। मुनि ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर पूछा कि तुझे क्या चाहिए। महिला ने कहा कि मेरी कोई संतान नहीं है, मुझे प्रसाद के रूप में संतान चाहिए। मुनि ने उसकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया। साथ में यह वचन भी लिया कि अगर उसके घर में बच्चा पैदा हो तो वह उसका कभी निरादर नहीं करे। लंबे समय तक सेवा करने के बाद उसे संतान का सुख मिला।
इस मंदिर में पहले तलाब हुआ करता था। इस पर वह महिला एक बार वह अपने बच्चे के साथ कपड़े धोने के लिए पहुंची। बच्चे के खाना खाने की जिद पर महिला ने उसे गुस्से में डांट दिया। इस पर बालक पानी में जाकर डूब गया। महिला काफी देर तक रोती बिलखती रही। उसी समय उस तालाब से वह बालक शेषनाग के रूप में बाहर निकला। उसने यह वचन दिया कि इस स्थान पर मनोकामना लेकर आएगा, उसकी इच्छा जरूर पूरी होगी।
हर साल लगता है विशाल मेला
हर साल भाद्रपद की अनंत चतुर्दशी को यहां पर भव्य मेला लगता है जो लगातार 3 दिन तक चलता है। पहले यह मेला रात 12 बजे से शुरू होकर अगले दिन तक रहता था। अब मेले के दो-तीन दिन पहले ही श्रद्धालु मंदिर में आने लगते हैं जिसकी रौनक मेले के दो-तीन दिन बाद भी रहती है। मेले में देश-विदेश से श्रद्धालु लाखों की संख्या में बाबा सोढल के दर्शन के लिए आते हैं। यह बेला बाबा सोडल को श्रद्धांजलि भेंट करने के लिए आयोजित किया जाता है।
चड्ढा बिरादरी के जठेरे हैं बाबा सोढल
बाबा सोढल का जन्म चड्ढा परिवार में हुआ था। बाबा सोढल जब तालाब से नाग देवता के रूप में प्रकट हुए थे, तब उन्होंने चड्ढा और आनंद बिरादरी के परिवारों में पुनर्जन्म को स्वीकार करते हुए मट्ठी जिसे टोपा कहा जाता है, चढ़ाने का निर्देश दिया। इस टोपे का सेवन केवल चड्ढा और आनंद परिवार के सदस्य ही कर सकते हैं। इस प्रसाद का सेवन परिवार में जन्मी बेटी तो कर सकती है मगर दामाद व उसके बच्चों यह प्रसाद नहीं खा सकते हैं। पहले शहर की चड्ढा बिरादरी ही ज्यादातर इस मंदिर में नतमस्तक होती थी, अब हर धर्म व समुदाय के लोग अपनी मनोकामना लेकर बाबा सोढल मंदिर में आते हैं।
खेती की परंपरा है प्रसिद्ध
मेले के 7 दिन पहले बाबा सोढल के भक्त अपने-अपने घरों में पवित्र बीज बीजते हैं, जो हर परिवार की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। फिर आठवें दिन उस खेती को लेकर मंदिर में चढ़ाने के लिए आते हैं।
मेले के दिन चढ़ता लाखों टन दूध
जिस तालाब में बाबा सोडल शेषनाग के रूप में प्रकट हुए थे। वहां पर उनकी प्रतिमा लगी है। इसमें मेले के दिन श्रद्धालु हर साल लाखों टन दूध चढ़ाते हैं। श्रद्धालु अपनी इच्छा अनुसार जितना बन पड़े उतना दूध चढ़ाने के लिए लेकर आते हैं।
कभी इस स्थान के चारों ओर था घना जंगल
मंदिर में 1970 से सेवा कर रहे पंडित अनिल शर्मा का कहना है कि आज जो मंदिर बना है, पहले यहां पर चारों और जंगल होते थे। यहां पर केवल ऋषि की एक कुटिया और पानी से भरा तालाब होते थे। मगर अब तालाब का पानी सूख गया है। तलाब में नानकशाही ईटों से चारदीवारी की गई है। यहां पर लोगों ने एकजुट होकर बाबा सोढल के इतिहास को और इस स्थान को संभाले व सुरक्षित रखने के लिए भव्य मंदिर का निर्माण करवाया है।
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