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    स्वास्थ्य के लिए 'कड़वा' है बाजारों में बिक रहा गुड़, सरेआम डाली जा रही चीनी व केमिकल

    गुड़ को सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है और कई लोग खाने के बाद मीठे के तौर भी इसका इस्तेमाल करते हैं। लेकिन मौजूदा समय में बाजारों में बिक रहा गुड़ सेहतमंद नहीं है और बीमारियों को दावत दे रहा है।

    By Vikas_KumarEdited By: Updated: Sun, 13 Dec 2020 06:05 AM (IST)
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    केमिकल मिलाकर गुड़ का निर्माण जिले के आसपास के गांवों में सड़क पर ही किया जा रहा है।

    जालंधर, [शाम सहगल]। जिले में बिक रहा गुड़ स्वास्थ्य के लिए 'कड़वा' है। कारण, बाजार में बिक रहे गुड़ को चमकदार बनाने के लिए कई ऐसे केमिकल इस्तेमाल किए जा रहे है, जो सेहत को प्रभावित तो करते ही है साथ ही कई तरह की बीमारियों का कारण भी बन रहे है। लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करते हुए इस गुड़ के निर्माण से लेकर बिक्री करने का धंधा धड़ल्ले से जारी है। जिसे लेकर जिला प्रशासन से लेकर सेहत विभाग ने चुप्पी साधी हुई है। खास बात यह है कि केमिकल मिलाकर गुड़ का निर्माण जिले के आसपास के गांवों में सड़क पर ही किया जा रहा है। जहां से रोजाना अधिकारी गुजरते हैं।

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    दरअसल, सर्दी में गुड़ का उठपादन व मांग दोनों बढ़ जाते है। तासीर से गर्म होने के चलते सीजन में गुड़ की मांग में तेजी के साथ इजाफा हो जाता है। सामान्य दिनों में औसत 120 क्विंटल गुड़ की खपत सीजन में बढ़कर 200 क्विंटल का आंकड़ा भी पार कर जाती है। मांग में बढ़ोतरी के चलते ही सर्दी के सीजन में गुड़ का निर्माण करने वालों की संख्या में भी इजाफा हो जाता है। जो तमाम नियमों को दरकिनार करके गुड़ का निर्माण करके भारी मुनाफा कमाते है।

    निम्न स्तर की चीनी का हो रहा इस्तेमाल

    पारंपरिक तरीके से गुड़ का निर्माण केवल ग९ने के रस से किया जाता है। लेकिन, ग९ने की कीमत से निम्न स्तर की चीनी सस्ती पड़ने के चलते गुड़ निर्माता इसे प्राथमिकता देते है। बाजार में निम्न स्तर की चीनी 30 रुपये प्रति किलो तक बेची जाती है। जिसे गुड़ का निर्माण करने में इस्तेमाल किया जाता है। पुरानी होने के चलते इस चीनी का रंग देखने में मैला होता है। वास्तव में यह चीनी खाने लायक नहीं होती। जिसका इस्तेमाल गुड़ के निर्माण में आसानी से किया जाता है।

    केमिकल के इस्तेमाल से पेट संबंधी पैदा हो रही समस्याएं

    निम्न स्तर की चीनी के इस्तेमाल से गुड़ का निर्माण करने के बाद इसे चमकीला बनाने के लिए हाइड्रोजन व अ९य केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे गुड़ का कालापन दूर हो जाता है। लेकिन, इसके इस्तेमाल से पेट संबंधी परेशानियों हो जाती है। इस बारे में न्यू रूबी अस्पताल के एमडी डा. एसपीएस ग्रोवर बताते है कि मिलावटी खाद्य पदार्थे सबसे पहले पेट को प्रभावित करते है। केमिकल युक्त गुड़ के सेवन से पेट की आंतें व पाचन शॠित प्रभावित होती है। इसके अलावा जो शूगर के रोगी चीनी की जगह गुड़ का इस्तेमाल कर रहे है, उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित होना तय है। जबकि, इससे पूर्व गुड़ का कालापन दूर करने के लिए भिंडी के पानी तथा लाल मिर्च के बीज का इस्तेमाल किया जाता था।

    जिले में यहां हो रहा निर्माण व बिक्री

    जिले में सर्दी के सीजन में रोजाना औसत 200 क्विंटल गुड़ की बिक्री होती है। जिसका घरेलू उपभोॠता के अलावा गच्चक निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है। जिले में निम्न स्तर के गुड़ का निर्माण कोटली गांव रोड, काला बकरा व भोगपुर रोड पर सड़कों पर टैंट लगाकर किया जा रहा है। इसी तरह गुड़ मंडी, इमाम नासिर, चरणजीतपुरा सहित कई इलाकों में निम्न स्तर की सामग्री से तैयार गुड़ की बिक्री की जा रही है।

    ऐसे होता है मोटी कमाई का खेल

    बाजार में इस समय गुड़ 50 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है। जिसमें 30 रुपये प्रति किलो वाली निम्न स्तर की चीनी का इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि, 300 रुपये क्विंटल ग९ने से सात किलो गुड़ तैयार होता है। इस तरह के गन्ने से निर्मित गुड़ निर्माता को ही 43 रुपये प्रति किलो पड़ता है। जिसमें थोक विक्रेता से लेकर रिटेलर तक पहुंचने में ही दाम 50 रुपये तक पहुंच जाते है। जबकि, निम्न स्तर की सामग्री से तैयार गुड़ रिटेल में ही 50 रुपये प्रति किलो बेचा जा रहा है।

    6 सैंपल लिए है, रिपोर्ट का इंतजार

    इस बारे में जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. एसएस नांगल बताते है कि सीजन की शुरूआत से लेकर 6 जगह से गुड़ के सैंपल लिए गए है। जिसकी रिपोर्ट आनी बाकी है। रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा जांच का काम आगे भी जारी रहेगा।