लुधियाना के वैज्ञानिकों की क्रांतिकारी खोज, रसायन मुक्त सोलर ट्रैप से होगा कीटों पर प्रहार; किसानों को होगा बड़ा फायदा
लुधियाना के सीफेट संस्थान के वैज्ञानिकों ने अनाज को कीटों से बचाने के लिए विशेष ट्रैप विकसित किए हैं। ये ट्रैप रासायनिक दवाओं के बिना कीटों को नष्ट करते हैं। दृश्यमान प्रकाश कीट ट्रैप और सोलर चलित सार्वभौमिक कीट ट्रैप नामक ये उपकरण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि इन ट्रैपों से रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम होगा और किसानों की लागत घटेगी।
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सोलर चलित सार्वभौमिक कीट ट्रैप (फोटो: जागरण)
आशा मेहता, लुधियाना। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) – केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीफेट) लुधियाना के विज्ञानियों ने किसानों और भंडारण एजेंसियों के लिए एक बड़ी राहत तैयार की है। वर्षों की मेहनत के बाद उन्होंने ऐसे ‘स्पेशल ट्रैप’ बनाए हैं जो अनाज के गोदामों और खेतों में फसलों को बर्बाद करने वाले कीटों को बिना रासायनिक दवा के ही खत्म कर देंगे।
विज्ञानियों का दावा है कि देश में पहली बार इस तकनीक पर आधारित ट्रैप तैयार किए गए हैं। ये ट्रैप हैं दृश्यमान प्रकाश कीट ट्रैप (विजिबल लाइट इनसेक्ट ट्रैप) और सोलर चलित सार्वभौमिक कीट ट्रैप (सोलर पावर्ड यूनिवर्सल इनसेक्ट ट्रैप)। संस्थान की ओर से दोनों ट्रैप के लिए पेटेंट आवेदन भी किया गया है।
ट्रैप पर शोध करने वाले विज्ञानी डा. गुरु पीएन ने बताया कि भारत में कीटों से बचाव के लिए हर साल लगभग 30 हजार मीट्रिक टन रासायनिक कीटनाशक उपयोग में लाए जाते हैं। इन पर करीब 8,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होता है। यदि देश के सिर्फ पांच प्रतिशत गोदामों में भी ये ट्रैप लगाए जाएं, तो रसायन उपयोग में 10 प्रतिशत कमी आ सकती है।
यानी लगभग 3,000 मीट्रिक टन कम रसायन और 800 करोड़ रुपये की बचत। यह तकनीक किसानों की लागत घटाकर मुनाफा बढ़ाएगी। साथ ही पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा दोनों को सुदृढ़ बनाएगी। रासायनिक धूम्रीकरण से अनाज के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। एल्यूमीनियम फास्फाइड जैसी गैसें विषैली होती हैं, जबकि इन ट्रैपों के उपयोग से सस्टेनेबल भंडारण (धारणीय स्टोरेज) की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा सकता है।
कैसे करते हैं काम ये ट्रैप?
दृश्यमान प्रकाश कीट ट्रैप
इस ट्रैप में नीले और पीले रंग की एलईडी लाइट का उपयोग किया गया है जो कीड़ों को आकर्षित करती है। ट्रैप की रोशनी से आकर्षित होकर कीड़े पानी से भरे कंटेनर में गिरकर नष्ट हो जाते हैं। ट्रैप में आधा लीटर पानी स्टोर रहता है, जिसमें हजारों कीड़े फंस सकते हैं। यह बैटरी से चार घंटे की चार्जिंग में 12 घंटे तक काम करता है।
मात्र एक यूनिट बिजली में इसका 20 दिन तक इस्तेमाल संभव है और इसे गोदाम की दीवार या फर्श पर आसानी से लगाया जा सकता है। आठ मीटर तक के क्षेत्र को कवर करने वाले इस ट्रैप की जांच कर्नाटक राज्य भंडारण निगम के कई गोदामों में की गई, जहां यह गेहूं, चना, मूंग, धान, दलहन आदि में पाए जाने वाले कीटों को नष्ट करने में सफल रहा।
सोलर चलित सार्वभौमिक कीट ट्रैप
यह ट्रैप खेतों और गोदामों दोनों के लिए बनाया गया है। इसमें 10 वाट का सोलर पैनल, फेरोमोन आकर्षण, ग्लू शीट और नीले-पीले एलईडी लाइट सेंसर लगे हैं। यह सौर ऊर्जा से चार्ज होता है। दिन में बंद और रात में चालू होने वाला आटो लाइट सेंसर से युक्त इस यंत्र में फसलों के हिसाब से ऊंचाई समायोजित की जा सकती है। कीड़े फेरोमोन और लाइट की ओर आकर्षित होकर गोंद जाल पर चिपक जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
अध्ययन में यह ट्रैप धान, सरसों, गोभी, मटर, मिर्च, प्याज और फलों के बागों में पाए जाने वाले कीटों जैसे व्हाइट फ्लाई, एफिड, जस्सिड्स, तिला आदि पर प्रभावी पाया गया। इससे किसानों को न केवल कीटनाशकों की लागत से मुक्ति मिलेगी, बल्कि मजदूरों की जरूरत भी घटेगी क्योंकि बार-बार स्प्रे करने की आवश्यकता नहीं रहेगी।
अभी तक कैसे बचाते हैं फसलें और क्या है नुकसान
सीफेट के निदेशक डा. नचिकेत कोतवालीवाले बताते हैं कि भारत में अब तक किसानों और गोदामों में कीटों से बचाव के लिए मुख्य रूप से रासायनिक उपायों पर निर्भरता रही है। गोदामों में रासायनिक धूम्रीकरण किया जाता है, जिसमें अनाज के ऊपर एल्यूमिनियम फास्फाइड की गोलियां रखकर बोरियों को तिरपाल से एयरटाइट ढक दिया जाता है। खेतों में कीटनाशकों का स्प्रे किया जाता है, जिसमें मैलाथियान, डेल्टामेथ्रिन और अन्य जहरीले रसायन शामिल होते हैं।
इन रसायनों का अवशेष अनाज और सब्जियों में रह जाता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लंबे समय तक इनका उपयोग मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को बिगाड़ता है। लगातार स्प्रे से कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, जिससे रसायन बेअसर होने लगते हैं। किसानों को हर सीजन में दो-तीन बार स्प्रे करना पड़ता है, जिससे लागत और श्रम दोनों बढ़ते हैं।

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