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इन बागों के सौंदर्य में छिपा है इतिहास, जानें क्या है इनका एतिहासिक महत्व

न बागों के आज के सौंदर्य व इतिहास के पन्नों में छिपी इनकी कहानियों में कोई सुनाती है राजा-महाराजाओं के शासन काल की बात तो कोई कहती है स्वतंत्रता संग्राम की दास्तां...

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 22 Aug 2019 02:11 PM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2019 09:33 AM (IST)
इन बागों के सौंदर्य में छिपा है इतिहास, जानें क्या है इनका एतिहासिक महत्व
इन बागों के सौंदर्य में छिपा है इतिहास, जानें क्या है इनका एतिहासिक महत्व

जेएनएन, जालंधर। पंजाब में यूं तो सैकड़ों बाग हैं, लेकिन जब इन पार्कों की प्राकृतिक छटा में ऐतिहासिक महत्व का रंग मिल जाए तो इनका आकर्षण और बढ़ जाता है। इन बागों के आज के सौंदर्य व इतिहास के पन्नों में छिपी इनकी कहानियों में कोई सुनाती है राजा-महाराजाओं के शासन काल की बात तो कोई कहती है स्वतंत्रता संग्राम की दास्तां... इन्हीं में से कुछ संजो लाए हैैं हम आपके लिए...

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पंजाब की राजधानी, सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ का सौंदर्य 1600 छोटे-बड़े पार्क बढ़ाते हैं। इनमें कुछ पार्क ऐसे हैं, जो ऐतिहासिक धरोहरों के गुलदस्ते हैं। इन्हीं में एक है सेक्टर-9 का ‘लिली गार्डन’। असल में सचिवालय से मात्र 200 मीटर की दूरी पर बने इस स्थल पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार साल 1952 में चंडीगढ़ को दूरबीन से देखा था। इसके बाद चंडीगढ़ के निर्माण की रूपरेखा बननी शुरू हुई थी। बाद में प्रशासन ने यहां पर नेहरू की याद में गार्डन बना दिया। साल 2003 में यहां पर स्तम्भ का भी निर्माण किया गया है। अब इस लिली गार्डन के आसपास रिहायशी इलाका है, जो कि शहर के वीआइपी एरिया में शामिल है, लेकिन आज भी अधिकांश लोग इसके ऐतिहासिक महत्व से बेखबर हैं। 

एशिया में सबसे बड़ा है यह रोज़ गार्डन

30 एकड़ जमीन पर फैला और गुलाब की 1600 किस्मों से गुलजार चंडीगढ़ के सेक्टर-16 में यह बाग शहर की शान है। प्रशासन के पहले चीफ कमिश्नर डॉ. एमएस रंधावा द्वारा 1967 में राष्ट्रपति भवन में बने रोज गार्डन की तर्ज पर इसे बनवाया गया था। इसी कारण गार्डन का नाम पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के नाम पर रखा गया।  गार्डन में हर साल फरवरी माह एवं मार्च में रोज फेस्टिवल का आयोजन होता है, जो राष्ट्रीय टूरिज्म के विशेष आयोजनों में से एक है और हर साल इस पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं और इसमें विशेष अतिथियों का आगमन होता है। रोज़ गार्डन देखने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं।

नेहरू की याद में बने पार्क को मिला उनका नाम

यह पार्क भी पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की याद में बनाया गया है। हालांकि इस पार्क का निर्माण साल 2008 में तत्कालीन मेयर प्रदीप छाबड़ा ने करवाया था, लेकिन इस स्थान का इतिहास पुराना है। पहले यह रैली ग्राउंड था। इसी स्थल पर जवाहर लाल नेहरू ने चंडीगढ़ में सबसे पहले स्पीच दी थी, जबकि इस स्थल पर कांशी राम, मायावती, लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व पीएम चंद्रशेखर, राजेश पायलट के अलावा कई प्रमुख नेता अपनी रैलियां कर चुके हैं। इस स्थल पर रामलीला भी हो चुकी है।

नेहरू रोज़ गार्डन से कभी होता था शहर को पानी सप्लाई

लुधियाना का नेहरू रोज़ गार्डन आज भले ही शहर के लोगों के लिए एक बड़े और सुंदर पार्क के तौर पर विकसित हो चुका है, लेकिन कभी इसी बाग से पूरे शहर में पानी की सप्लाई होती थी। अंग्रेजों के जमाने में रोज़ गार्डन के एक हिस्से में 24 कुएं बनाए गए थे और उन कुओं का पानी एक बड़े अंडरग्राउंड टैंक में स्टोर किया जाता था। यहां से पाइपों के जरिए पानी दरेसी पहुंचाया जाता और वहां से लोगों के घरों तक सप्लाई होती थी।

इस गार्डन में पानी के टैंक के अलावा एक बड़ी मीनार भी अंग्रेजों ने बनवाई थी। मीनार के नीचे एक लड़की की प्रतिमा लगाई गई है, जो अपने प्रेमी को पत्र लिखती हुई दिखती है। यह मूर्ति 11 वीं सदी की कला शैली दर्शाती है। ऐतिहासिक धरोहर होने के बावजूद किसी को नहीं पता कि इस मीनार में जो मूर्ति रखी गई है वह किसकी है। रोज़ गार्डन सही मायने में 1972 में अस्तित्व में आया जब तात्कालिक मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने इस पार्क को ‘नेहरू रोज़ गार्डन’ का नाम दिया और पार्क को व्यवस्थित किया। अब यह शहर का सबसे बड़ा और खूबसूरत पार्क है।

करीब 25 एकड़ में फैले इस बाग में चार हजार से अधिक पेड़ व गुलाब की 20 से अधिक किस्में हैं। पार्क में संगीत का आनंद लोग ले सकें इसलिए 1995 में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने म्यूजिकल फाउंटेन लगवाया। यही नहीं 1981 में तात्कालिक वित्त व स्थानीय निकायमंत्री केवल कृष्ण ने रोजगार्डन के एक हिस्से में नेहरू प्लेनिटोरियम बनवाया। पार्क में बुजुर्गों व युवाओं के लिए एक लाइब्रेरी बनाई गई है।

यहां है त्याग भी, अनुराग भी

अमृतसर के तीन ऐतिहासिक बागों में से कोई त्याग व शहादत की कहानी कहता है तो कोई प्राकृतिक सौंदर्य से आकर्षित करता है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है जलियांवाला बाग, दूसरा है कंपनी बाग और तीसरा 40 खूह बाग। मौजूदा समय में इन तीनों ही बागों को पर्यटन के लिए और विकसित किया जा रहा है। जहां पर लोग सुबह के समय सैर के लिए जाते हैं। कंपनी बाग और 40 खूह बाह में ओपन जिम बनाए गए हैं।

दूरदराज से लोग जलियांवाला बाग को देखने आते हैं और 13 अप्रैैल 1919 को यहां हुए नरसंहार में शहीद हुए 1000 से ज्यादा लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं। महिलाएं अपने बच्चों को लेकर बाग के अंदर बने कुएं में कूद गई थीं। इस बाग में समारक के अलावा टोपियारी कला से बंदूकधारी सिपाही बनाए गए हैं और उन्हें उन्हीं स्थानों पर खड़ा किया गया है, जहां गोलीकांड के दौरान सिपाही खड़े थे।

40 खूह बाग

1915 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गए इस बाग में कुल 40 कुएं बने हुए हैं। किसी जमाने में इन्हीं कुओं से पूरे शहर को पानी सप्लाई होता था। यह बाग दो भागोंं में बंटा हुआ है। एक भाग में 28 कुएं है और दूसरे भाग में 12 कुएं हैं। इनसे ही पूरी वॉल सिटी यानी अमृतसर को पानी की सप्लाई की जाती थी। उस समय यहां देगी लोहे की पाइपें डाली गई थी। अभी भी वे पाइपें मौजूद है। इसके अलावा उस समय पानी निकालने के लिए स्टीम के साथ प्रेशर बनाया जाता था।

अब इस जगह को हेरिटेज साइट घोषित कर दिया गया है और 10 करोड़ रुपये की लागत से बाग का नवीनीकरण किया जा रहा हैं। उस सारी मशीनरी को भी संभाला जा रहा है। इस पूरी इंजनीयरिंग को लोगों को दिखाने के लिए अलग से गैलरी भी बनाई जा रही है, ताकि आने वाली पीढ़ी को बताया जा सके कि जब चालीस खूह पार्क का निर्माण किया गया था, उस समय किस तरह शहर को पानी की सप्लाई होती थी।

कंपनी बाग : अमृतसर के कंपनी बाग को महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था। महाराजा रणजीत सिंह कला प्रेमी थे और जगह-जगह बाग बनवाना, उनकी पहली पसंद थी। इसी बाग का निमार्ण 1818 से लेकर 1837 के बीच किया गया था। बाग के अंदर महाराजा रणजीत सिंह ने अपना पैलेस भी बनवाया था। जहां पर जाकर वह अक्सर विश्राम करते थे। आज शहर के बीचों बीच स्थित यह पार्क लोगों के लिए सैर का प्रमुख केंद्र है।

161 साल में कई बार बदला कंपनी बाग का नाम

जालंधर का नेहरू गार्डन, एमप्रेेस गार्डन (क्वीन्स गार्डन) या सबसे अधिक प्रचलित नाम कंपनी बाग 161 साल से अमूल्य सैरगाह बना हुआ है। इसका रूप बार-बार बदलता रहा है। सबसे आखिरी बार 5 साल पहले इसे दोबारा डेवलप किया गया जिसमें म्यूजिकल फाउंटेन व बच्चों के लिए अलग जोन बनाया गया। 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापना के कारण इसे कंपनी बाग नाम मिला।

पहले पहल इसमें अंग्रेजों की सेना की कंपनी या टुकड़ी के लिए ही इसे डेवलप किया गया था, लेकिन बाद में यह जनता के लिए खोल दिया गया। कंपनी ने ब्रिटिश महारानी यानी एमप्रेस के सम्मान में इसका नाम ‘एमप्रेस गार्डन’ रखा था, लेकिन देश आजाद हुआ तो इसका नाम ‘नेहरू गार्डन’ कर दिया गया। आजादी के बाद महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई, जिसकी लोकेशन अब बदल दी गई है। कंपनी बाग से जुड़ा क्लाक टावर आज भी प्रेस क्लब के रूप में मौजूद है।

1956 में जब जवाहर लाल नेहरू अमृतसर में कांग्रेस अधिवेशन के बाद स्वतंत्रता सेनानी रायजादा हंसराज के पास जालंधर पहुंचे। उनके साथ खुली जीप में ‘नेहरू गार्डन’ भी आए। बच्चों से उनके प्रेम के कारण यहां कई झूले थे और तब की बनी ‘नेहरू ट्रेन’ तो पांच साल पहले तक तोड़ी जाने तक बच्चों की फेवरिट थी। बाद में 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी यहां आए थे। जालंधर के मेयर जगदीश राजा के अनुसार स्वतंत्रता दिवस के बड़े आयोजन भी यहां होते थे और स्वतंत्रता सेनानियों का जमावड़ा यहां होता था। उस दौरान लड्डू बांटनें का विशेष महत्व था।

12 प्रवेश द्वारों ने गार्डन को नाम दिया बारादरी

पटियाला के उत्तर में स्थित बारादरी गार्डन शहर की शान है। इसमें प्रवेश के लिए 12 द्वार होने के कारण इसे यह नाम मिला। शेरांवाला गेट के ठीक बाहर है, महाराजा राजिंदर सिंह के शासनकाल के दौरान स्थापित इस गार्डन परिसर में उन्हीं की संगमरमर से बनी विशाल प्रतिमा भी स्थापित है। दुर्लभ पेड़, पौधों, फूलों से सजे इस गार्डन की स्थापना शाही स्टेडियम, स्केटिंग रिंक और राजिंदरा कोठी नाम के एक छोटे से महल के साथ एक राजसी आवास के रूप में की गई थी।

बगीचों में महाराजा रणजीत सिंह के संग्रह के साथ एक संग्रहालय की इमारत शामिल है। 2009 से नीमराना होटल्स समूह द्वारा इसे हैरिटेज होटल के रूप में पुन:स्थापित किया है और यह पंजाब का पहला हेरिटेज होटल बना है। बारादरी गार्डन में हर रविवार सुबह 6 बजे शहर वासियों को विभिन्न विषयों पर जागरूक करने के लिए नाटक का मंचन होता है। यहां कई बॉलिवुड और पंजाबी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।

शाही रियासत के गवाह शालीमार बाग

कपूरथला-गोइंदवाल मार्ग पर करीब 10 एकड़ में फैला ऐतिहासिक ‘शालीमार बाग’ तथा माल रोड पर बना ‘कमरा बाग’, दोनों ही राजा फतेह सिंह आहलूवालिया द्वारा बनवाए गए थे। राजा फतेह सिंह शेर-ए- पंजाब महाराजा रंजीत सिंह से पगड़ी बदलवा कर उनके ‘पग-वट’ भाई बने थे और खालसा राज्य के विस्तार में उनका अहम योगदान था। लाहौर दरबार में रहते हुए वह अकसर वहां के शालीमार बाग में जाया करते थे। उसकी सुंदरता से प्रभावित हो कर उन्होंने कपूरथला में इस शालीमार बाग का निर्माण करवाया था। यह भारत का एकमात्र ऐसा मुगलिया बाग है जिसका निर्माण किसी मुगल शासक ने नहीं बल्कि एक सिख राजा ने करवाया।

 

फतेह सिंह के पुत्र राजा निहाल सिंह ने अपने पिता व माता सदा कौर के निधन के बाद यहीं पर उनका अंतिम संस्कार किया और समाधियां भी बनवाई। इन शाही समाधियों पर नक्काशी उन्हीं कारीगरों द्वारा करवाई गई थी जिन्होंने आगरा के बुलंद दरवाजे पर खूबसूरत कलाकारी की थी। इन शाही समाधियों के अलावा इस बाग में बारादरी तथा रियासत के समय का एक तरणताल भी है। महाराजा रंजीत सिंह के आगमन पर उन्हें इसी बाग में रात्रि भोज करवाया गया था। इसी बाग में एक सदी से बसंत मेला लगता आ रहा है, जिसकी परंपरा राजा जगतजीत सिंह ने शुरू की थी। अब इस बाग की देखरेख नगर कौंसिल के पास है।

कमरा बाग

1833 में कमरा बाग में ‘गोल कोठी’ का निर्माण राजा फतेह सिंह ने करवाया तो एक समारोह के दौरान अन्य रियासतों के राजाओं ने महल की वास्तु कला की प्रशंसा की। इस पर विनम्रता ने राजा फतेह सिंह ने कहा, ‘मैंने महल नहीं, छोटा सा कमरा बनवाया है।’इन्हीं शब्दों के कारण महल का नाम ‘कमरा महल’ व आसपास के बाग का नाम ‘कमरा बाग’ पड़ गया। आज इस बाग में रणधीर महमानखाना (गेस्ट हाउस), रणधीर कालेज, बीएसएनएल भवन व एसएसपी की रिहायिश है। ऐतिहासिक जगतजीत पैलेस से सटे इस बाग की देखरेख अब बागवानी विभाग करता है। (इनपुट : चंडीगढ़ से राजेश ढल्ल, जालंधर से जगजीत सिंंह, अमृतसर से हरीश शर्मा, पटियाला से गौरव सूद, लुधियाना से राजेश भट्ट व कपूरथला से हरनेक सिंह जैनपुरी)

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