13 आतंकियों को मार कर लेफ्टीनेंट नवदीप सिंह ने पिया था शहादत का जाम, मरणोपरांत अशोक चक्र से हुए थे सम्मानित
बलिदानी लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह ने देश की एकता व अखंडता को बरकरार रखने और देश के दुश्मनों के कुत्सित इरादों को नेस्तनाबूद करते हुए 26 वर्ष की अल्पायु मे ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, गुरदासपुर। शहीदों की जन्मस्थली जिला गुरदासपुर व पठानकोट की वीरभूमि को यह मान प्राप्त है कि जब भी देश की सुरक्षा को खतरा पैदा हुआ हमारे वीर जवानों ने दुश्मन के कुत्सित इरादों को नेस्तनाबूद करते हुए अपने बलिदान देकर इस देश की एकता व अखंडता को बरकरार रखा है। शहादतों की इसी श्रृंखला में एक नाम आता है स्थानीय संत नगर निवासी बलिदानी लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह का जिसने 26 वर्ष की अल्पायु में अपना बलिदान देकर अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा लिया।
इस वीर योद्धा के जीवन संबंधी जानकारी देते हुए शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंदर सिंह विक्की ने बताया कि लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह का जन्म 8 जून 1985 को पिता कैप्टन जोगिंदर सिंह और माता जगतिंदर कौर के घर हुआ। आर्मी स्कूल तिब्बड़ी कैंट से मैट्रिक और सरकारी कालेज गुरदासपुर से 12वीं करने के बाद उन्होने होटल मैनेजमेंट ज्वाइन किया। इसके बाद उन्होंने आर्मी इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट कोलकाता से एमबीए की डिग्री प्राप्त की। मगर नवदीप सिविल नौकरी करने के बजाय भारतीय सेना में भर्ती होकर देश के लिए कुछ करना चाहते थे।
इसी जनून को लेकर अप्रैल 2010 में उन्होंने सीडीएस की परीक्षा पास करने के बाद ओटीए चेन्नई में प्रवेश पाया। 19 मार्च 2011 को यहां से पास आउट होकर वह 15 मराठा लाइट इन्फेंट्री यूनिट में बतौर लेफ्टीनेंट शामिल होकर देश सेवा में जुट गए। 20 अगस्त 2011 को इनकी यूनिट को जम्मू कश्मीर के बांदीपुर जिले के गुरेज सेक्टर के साथ लगती भारत-पाक सीमा की किशन गंगा नदी के पास पाक प्रशिक्षित आतंकियों की घुसपैठ होने की सूचना मिली। लेफ्टीनेंट नवदीप सिंह की प्लाटून को इस आपरेशन को अंजाम देने की जिम्मेदारी मिली।
आतंकियों ने जैसे ही भारत की सीमा में घुसपैठ करने का प्रयास किया लेफ्टीनेंट नवदीप ने अपने साथियों को कहा कि जब तक मैं न कहूं कोई फायर नहीं करेगा, पहली गोली मैं चलाऊंगा । आतंकी जब काफी नजदीक आ गए तो नवदीप ने उन पर फायरिंग शुरु कर दी तथा 13 आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया। इसी दौरान छिपे आतंकी द्वारा दागी एक गोली उनके सिर को भेदते हुए निकल गई। जिससे इस रणबांकुरे ने कश्मीर की वादियों से देशवासियों को अंतिम सैल्यूट कर शहादत का जाम पी लिया। इनके अदम्य साहस को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इन्हें 26 जनवरी 2012 को मरणोपरांत शांतिकाल के सबसे सर्वोच्च वीरता पदक अशोक चक्र से सम्मानित किया।
कुंवर विक्की ने बताया कि इस जांबाज सैनिक की शहादत को नमन करने के लिए 20 अगस्त को गवर्नमेंट कालेज गुरदासपुर के इनके नाम पर बने खेल स्टेडियम में एक श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें कई गणमान्य लोग व सेन्याधिकारी शामिल होकर इन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे।

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