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    Famous Temples in Punjab: संगत की आस्था का केंद्र है श्री जटेश्वर महादेव मंदिर, खाेदाई में मिले थे पांडव काल के खंडहर

    By Vipin KumarEdited By:
    Updated: Thu, 23 Jun 2022 04:03 PM (IST)

    Famous Temples in Punjabपंजाब में कई मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इनमें से एक नाम है श्री जटेश्वर महादेव जी का मंदिर जटवाहड़। यहां हर शिवरात्रि काे मेला लगता है। बताया जाता है कि इसके पुजारी भगवान शिव के उपासक थे।

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    श्री जटेश्वर महादेव जी का मंदिर। (जागरण)

    मनदीप बाली, नूरपुरबेदी (रूपनगर)। श्री जटेश्वर महादेव जी का मंदिर जटवाहड़ गांव (नूरपुरबेदी) के जंगलों में घिरी एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। इसका निर्माण कब हुआ है, इसकी जानकारी अतीत के गर्भ में छुपी हुई है। खाेदाई के समय मिले पांडव काल के खंडहरों और उन पर उकरी शैली मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण है। करीब 190 वर्ष पूर्व तक यह प्रदेश बीहड़ था। जिसके आस-पास आबादी नहीं थी।

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    इस मंदिर का इतिहास जो जनश्रुति पर आधारित है। वर्ष 1830 तक इसके अस्तित्व संबंधी किसी को कोई जानकारी नहीं थी। उस समय गांव तख्तगढ़ में चंदन वंश के पंडित जय दियाल जी रहते है। वह संस्कृत के ही नहीं बल्कि ज्योतिष तथा कर्मकांड के भी प्रकांड पंडित थे। निर्धनों की झोपड़ियाें से लेकर राज महलों तक उनकी प्रतिष्ठा थी। झांडियां ग्राम का एक क्षत्रीय निक्कू राम उनका प्रमुख शिष्य था। देव योग से वह कुष्ट रोग से पीडि़त हो गया। जिसके कारण उसने गंगा जी में जलसमाधि लेने का निश्चय किया और पंडित जय दयाल जी को इससे अवगत करवाया।

    पंडित जी शिवा उपासक थे, जिन्हें अपने आराध्य देव में पूर्ण आस्था थी और उन्होंने आपने शिष्य को आत्महत्या का विचार त्यागकर इस बीमारी के इलाज का परामर्श दिया। उन्होंने निक्कू राम को सलाह दी कि वह श्रद्धा से अगर ऊ नम शिवाय के बीज मंत्र का जाप करे और शिवलिंग की पूजा करें तो पूर्ण रूप से स्वस्थ हो सकता है। लेकिन आसपास कहीं भी कोई मंदिर न होने पर वह गंभीरता से विचार कर ही रहे थे कि एक दिन ईष्ट देवता ने सपने में पंडित जी को एक स्थान दिखाया।

    ऐसा ही स्थान निक्कू राम ने सपने में देखा था। दोनों उस स्थान की तलाश में निकल पड़े। कई दिनों के बाद उस स्थान को खोज निकालने में सफल हुए। निक्कू राम ने पंडित जी को बताया कि जब सेहतमंद जीवन तके दौरान पशु चराते समय कभी-कभार उनकी गाय उस स्थान पर पहुंचती थी तो उसके थनों से अपने-आप दूध की धारा बह निकलती थी।

    पंडित जी को विश्वास हो गया कि जहां पर भगवान के जरूर दर्शन होंगे। उनके आदेश पर खोदाई का कार्य शुरू कर दिया और 3 माह की खोदाई के कार्य के दौरान मंदिर के अवशेष प्रकट होने लगे। शिवलिंग जोकि गुंबद और चार कलात्मक स्तंभों के मध्य प्रतिष्ठित था (वह मूल मंदिर आज भी ठीक उसी तरह सुरक्षित है) के अवशेषों को पाकर लोग प्रसन्न हो उठे और पूरा वातावरण हर-हर महादेव के जयघोषों से गूंज उठा व खोदाई की प्रक्रिया ने भी जोर पकड़ लिया। एक दिन अचानक जब किसी व्यक्ति से मिट्टी उठाने वाला औजार शिव विग्रह पर लगा तो एका एक ही वहां से रक्त की धारा फूट पड़ी। जिसे देखकर सभी लोग चकित रह गए और रक्त की धारा कुछ समय बाद शांत हो गई। वहां पर अदृश्य शक्ति का आभास हुआ।

    जब उन्होंने धीरे-धीरे शेष मिट्टी और पत्थरों को हटाया तो पूर्ण जलहरी (शिवलिंग) के दर्शन हुए। इस पर लोग दर्शनों के लिए उमड़ पड़े। पंडित जी के मन में विचार आया कि अगर शिवलिंग को निकटवर्ती गांव तख्तगढ़ में स्थानांतरित कर दिया जाए तो पूजन में सुविधा होगी। मगर अदृश्य शक्ति ने ऐसा न करने की चेतावनी दी। पंडित जी और उनके शिष्य निक्कू राम प्रति दिन वहां वहां पहुंचकर शिवलिंग का पूजन करने लगे और कृष्ट रोग पूजन करने से कुछ दिनों में ही दूर हो गया।

    पंडित लाल जी मंदिर की देख-रेख का संभाल रहे काम

    इस मंदिर के संस्थापक पंडित जय दयाल जी के शरीर त्याग देने के पश्चात उनके भाई पंडित लाल जी मंदिर की देख-रेख का कार्य संभालने लगे। श्री लाल जी के पश्चात मंदिर की देख-रेख का कार्य उनके दो पुत्रों दाता राम व राम रक्खा करने लगे। अब उक्त कार्य शगली राम और राम रक्खा के पारिवारिक सदस्य प्रबंधक कमेटी बनाकर कर रहे हैं। मंदिर में अब तक रसोई घर, विशाल हाल, 100 से अधिक कमराें का निर्माण करवाया जा चुका है जबकि यात्रियों की सुविधा के लिए 25 लाख रुपये की लागत से आधुनिक शौचालय ब्लाक के निर्माण के अतिरिक्त कई योजनाओं पर संगत की सुविधा के लिए युद्ध स्तर पर कार्य चल रहा है।

    सावन माह में आते हैं बड़ी संख्या में श्रद्धालु

    इस ऐतिहासिक मंदिर में शिवरात्रि पर भारी मेला लगता है और सावन माह में तो संगत का भारी तांता लगा रहता है। इस मौके दूर-दराज से श्रद्धालु शिवलिंग पर जल अर्पित करने पहुंचते हैं। श्री जटेश्वर महादेव मंदिर भगतों की भारी आस्था का केन्द्र बना हुआ है। पुरातत्व विभाग के पास भी इसके सदियों पुराने और ऐतिहासिक होने के पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं।