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मेरा शहर, मेरी यादेंः देश ही नहीं, शहर के विभाजन के भी गवाह हैं 88 वर्षीय गोपी चंद गुलाटी

‘देश के विभाजन के बाद शहर को 1953-54 में चार हिस्सों में बांटा गया था। इनमें ईस्ट वेस्ट नॉर्थ व साउथ शामिल हैं। उसी समय शहर के मकानों के नंबर हलके के हिसाब से लगाए गए थे।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 09:13 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 05:54 PM (IST)
मेरा शहर, मेरी यादेंः देश ही नहीं, शहर के विभाजन के भी गवाह हैं 88 वर्षीय गोपी चंद गुलाटी
मेरा शहर, मेरी यादेंः देश ही नहीं, शहर के विभाजन के भी गवाह हैं 88 वर्षीय गोपी चंद गुलाटी

जालंधर, जेएनएन। जीवन के 88 बसंत देख चुके गोपी चंद गुलाटी, देश के विभाजन ही नहीं बल्कि शहर के विभाजन के भी गवाह हैं। 1947 में बंटवारे का दंश झेल चुके गोपी चंद ने शहर को चार भागों में बंटते देखा है। यही कारण है कि पुराने शहर के मकान नंबर बताते ही वह झट से घर का पता बता देते हैं। विभाजन के बाद यहां आकर बसने वाले गोपीचंद गुलाटी ने शहर में नहर व जंगल भी देखे हैं। इनका वह बखूबी वर्णन भी करते हैं। बात चाहे रैनक बाजार की हो या फिर बस्तीआत क्षेत्र की। इतिहास के झरोखे से हर याद उनके जहन में आज भी ताजा है। कभी एक दायरे तक सीमित शहर को उन्होंने नजदीक से विकसित होते देखा है। दैनिक जागरण से उन्होंने अपनी अमिट यादें कुछ यूं साझा की...

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मियां चन्नू, मुल्तान से चरणजीतपूरा तक का सफर

‘विभाजन से पहले हम पाकिस्तान के मुल्तान के साथ लगते मियां चन्नू इलाके में रहते थे। आजादी के बाद जालंधर पहुंचे तो यहां के जेल रोड स्थित मिशन कंपाउंड में बने सरकारी कैंप में ठहरे थे। तब यहां पर गहरे गड्ढे थे। जहां सरकारी कैंप बनाया गया था, वहां ठंड भी काफी ज्यादा थी। इस कारण बाद में हमें भार्गव कैंप में शिफ्ट किया गया। मॉडल हाउस में उस वक्त जंगल थे। हम भार्गव कैंप से मॉडल हाउस तक पैदल ही जाकर लकड़ियां एकत्रित करके लाते थे। बाद में मेरे चाचा पंडित रुचि राम की सिफारिश पर जिलाधीश ने हमें बस्ती गुजां में शिफ्ट किया। मेरे चाचा पाकिस्तान में फंसी कई हिंदू लड़कियों को छुड़ा कर लाए थे। इस कारण उनकी प्रशासन में अच्छी पैठ रही। पाकिस्तान के मियां चन्नू में हम घनी आबादी में रहने के आदी थे। इसी कारण यहां भी मन नहीं लगा। आखिरकार हम शहर के अंदरूनी इलाके चरणजीतपुरा में शिफ्ट हो गए। तब से लेकर आज तक परिवार सहित यहीं पर रह रहा हूं।

ऐसे हुआ था शहर का विभाजन

‘देश के विभाजन के बाद शहर को 1953-54 में चार हिस्सों में बांटा गया था। इनमें ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ व साउथ शामिल हैं। उसी समय शहर के मकानों के नंबर हलके के हिसाब से लगाए गए थे। मिसाल के तौर पर ‘एनके’ नॉर्थ इलाके में, ‘डब्ल्यू ए’ वेस्ट इलाका, ऐसे ही ‘एस’ अक्षर वाले नबर साउथ और ‘ई’ के साथ लिखे जाने वाले घरों के नंबर ईस्ट इलाके में पड़ते थे। इस तरह से शहर को चार भागों में बांटा गया। वह बताते हैं कि आज भी अगर कोई उन्हें मकान का नंबर डिजिट सहित बता दे, तो वह उसके घर का पता आसानी से बता देंगे।

खत्म हुआ भट्टी व सांझे तंदूर का कल्चर

सीमित शहर में आपसी भाईचारा सबसे अहम होता था। पहले सांझी भट्टी और चूल्हे का कल्चर था। मोहल्लों में भट्टी पर लोग दाने भुनाने व आटा गूंध कर रोटियां बनाने के लिए आते थे। इसके बदले में भट्टी वाले को पैसों की जगह थोड़ा आटा या दाने दे दिए जाते थे।

सामाजिक होती थी राजनीतिक पार्टियां

पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे गोपी चंद गुलाटी कहते हैं, पुराने समय में शहर में राजनीतिक पार्टियां सामाजिक होती थीं। हर किसी के दुख-सुख में हर पार्टी का नेता राजनीति से ऊपर उठकर शामिल होता था। सांझा तंदूर, भट्टी और सभी सार्वजनिक मंचों को लीलते हुए विकसित हुए शहर में सबसे बड़ा नुकसान आपसी भाईचारे का हुआ है।

गणतंत्र दिवस की परेड देखने के शौक ने बना दिया सियासी

गोपी चंद गुलाटी बताते है कि वह गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस की परेड देखने के लिए गुरु गोबिंद सिंह स्टेडियम जरूर जाते थे। यहां पर सियासी लोगों की भीड़ व उनके साथ अच्छी पहचान के कारण राजनीति में आ गए। पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में कई वर्षों तक पार्टी में सेवाएं दी। यह दौर आज भी निंरतर जारी है।

आदर्श नगर में थी नहर

वह बताते हैं कि शहर के पॉश क्षेत्र आदर्श नगर में एक नहर हुआ करती थी। उनकी पत्नी जमुना देवी वहां कपड़े धोने जाती थीं। तेज विकास ने शहर की कई नहरों को लील लिया है।

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