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    मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों के कारण फैमिली डाक्टरों का चलन घटा

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 30 Jun 2022 08:41 PM (IST)

    करीब 25 साल पहले तक लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए फैमिली डाक्टरों की अहम भूमिका होती थी।

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    मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों के कारण फैमिली डाक्टरों का चलन घटा

    जगदीश कुमार, जालंधर

    करीब 25 साल पहले तक लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए फैमिली डाक्टरों की अहम भूमिका होती थी। समय के साथ लोगों की आर्थिक स्थिति में बदलाव आने लगा और साथ ही मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों और स्पेशलिस्ट डाक्टरों का दायरा भी बढ़ने लगा। इससे फैमिली डाक्टर का चलन खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। इनकी जगह स्पेशलिस्ट डाक्टर लेने लगे हैं। फैमिली डाक्टर के प्रचलन को जिंदा रखने के लिए शुक्रवार को डाक्टर्स डे 'फैमिली डाक्टर्स आन द फ्रंट लाइन थीम' के साथ मनाया जाएगा।

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    एशिया में अस्पतालों को लेकर अहम जगह बना चुके जिले में पिछले करीब तीन दशक से मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों का तेजी से विस्तार हुआ। यहां शहर से ही नहीं बल्कि विभिन्न राज्यों से आकर सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर बीमारियों का इलाज कर रहे हैं। पंजाब हेल्थ सिस्टम कारपोरेशन के राज्य में सबसे बड़े सिविल अस्पताल में भी 80 प्रतिशत स्पेशलिस्ट डाक्टर तैनात हैं। लोग बीमारी के आधार पर खुद ही माहिर डाक्टरों के पास इलाज करवाने पहुंचते हैं। इस कारण मरीजों के घर में जाकर फैमिली डाक्टर की ओर से जांच व इलाज करने का प्रचलन खत्म होने के कगार पर है। उनकी जगह स्पेशलिस्ट डाक्टरों ने ले ली है। हालांकि इनका यह काम भी अब 10 से 15 प्रतिशत ही बचा है। इस साल मनोचिकित्सकों की राज्य स्तरीय कान्फ्रेंस में डाक्टरों को भी फैमिली डाक्टर रखने की सलाह दी गई थी। पहले 50 परिवारों का फैमिली डाक्टर था, अब 10-12 का हूं : डा. केएस राणा

    नीमा के वरिष्ठ सदस्य डा. केएस राणा कहते हैं कि करीब 50 साल पहले एक ही डाक्टर कई परिवारों का फैमिली डाक्टर होता था। वह भी करीब 50 परिवारों के फैमिली डाक्टर थे। उसके पास पूरे परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य की जानकारी होती थी। कोई बड़ी स्वास्थ्य समस्या होने पर ही लोग उनकी सलाह के अनुसार बड़े अस्पताल में जाते थे। धीरे-धीरे लोगों की संख्या कम होने लगी। लोग स्पेशलिस्ट डाक्टरों के पास इलाज करवाने जाने लगे। अब तो 10-12 परिवार ही बचे हैं, जिनके घरों में इलाज करने जाता हूं। फैमिली डाक्टरों का काम अब 10 से 15 प्रतिशत के करीब ही बचा है। समय में बदलाव के बावजूद फैमिली डाक्टर की जरूरत है। इससे घातक बीमारियों के इलाज की राह आसान होगी। फैमिली डाक्टरों की अब भी जरूरत : डा. अशोक ललवानी

    आइएमए के प्रधान डा. अलोक ललवानी का कहना है कि जब उनकी माता डा. कुंज ललवानी ने प्रैक्टिस शुरू की थी तब फैमिली डाक्टर को लोग परिवार का सदस्य मानते थे। वर्तमान में सुपर स्पेशलिटी का जमाना है। युवा देश-विदेश से डिग्रियां हासिल कर बड़े अस्पतालों में संबंधित बीमारी के ही इलाज करने के दायरे में सिमट रहे हैं। हालांकि लोगों को ही नहीं डाक्टरों को भी फैमिली डाक्टर जरूर रखना चाहिए। इससे शुरुआती दौर में ही बीमारी की जांच कर इलाज किया जा सकता है। जिले में 865 की आबादी पर एक डाक्टर

    मेडिकल टूरिज्म को लेकर जिला तेजी से आगे बढ़ रहा है। करीब 24 लाख की आबादी वाले जिले में विभिन्न वर्गो से संबंधित 2775 डाक्टर विभिन्न अस्पतालों से जुड़े हुए हैं। अभी जिले में 865 की आबादी पर एक डाक्टर का अनुपात सामने आ रहा है। जिले में डाक्टर

    आइएमए : 1500

    नीमा : 575

    आइडीए : 430

    रजिस्टर्ड आयुर्वेदिक मेडिकल प्रैक्टिसनर्स वेल्फेयर एसोसिएशन (उपवैद्य) : 270