Jalandhar News: दिवाली की रात में पराली को आग लगाने के बढ़ सकते हैं मामले, अधिकारी रखेंगे आपस में तालमेल
जालंधर में दिवाली की रात को पराली को आग लगाने के मामले बढ़ सकते हैं। कृषि अधिकारी ने दिवाली के दिन लोकल स्तर पर अधिकारियों को आपसी तालमेल बनाए रखने को कहा है। उन्होंने कहा कि अगर कोई हादसा होता है तो उसकी जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।

जालंधर, जगदीश कुमार l जालंधर धान मंडियों में पहुंचने के बाद ज्यादातर किसानों को अदायगी हो चुकी है। किसान गेहूं की खेती को लेकर खेत तैयार करने के लिए धान की कटाई के बाद बचे अवशेषों (पराली) को आग लगाने लगे हैं। पराली को लगने वाली आग खेतों की मिट्टी तथा लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहंचा रही है। जिले में शाहकोट के गांव मीरपुर सैदां में पराली को आग लगाने से हुए सड़क हादसे में दो लोगों की मौत के बावजूद किसान पराली जलाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। दीपावली की रात को पराली जलाने के मामले बढ़ सकते हैं। कृषि अधिकारी डा. नरेश गुलाटी ने कहा कि दिवाली के दिन लोकल स्तर पर अधिकारी आपस में तालमेल रखेंगे। अगर कोई हादसा होता है तो उसकी जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।
सांस लेने में होती है दिक्कत सिविल अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट एवं छाती रोगों के माहिर डा. राजीव शर्मा का कहना है कि कोरोना की गिरफ्त में आने के बाद ज्यादातर लोगों के फेफड़े कमजोर हो चुके हैं। पराली का धुआं ऐसे लोगों के लिए नुकसानदायक साबित होता है। पराली को आग लगाने से उठने वाले धुएं में कार्बन मोनो आक्साइड, ओजोन, पीएम 2.5 व पीएम 10 के बढ़े स्तर की वजह से सांस लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जहरीली हवा बच्चों के फेफड़े के विकास को प्रभावित कर सकती है।
हवा में जहरीले कण फेफड़ों में सूजन पैदा कर अस्थमा, टीबी व एलर्जी के मरीजों की श्वास प्रणाली को बिगड़ देते हैं। दीपावली और पराली को आग लगाने की वजह से इन दिनों ओपीडी में अस्थमा, छाती रोग, खांसी तथा एलर्जी के मरीजों की संख्या भी बढ़ने लगती है। उन्होंने मरीजों को घर से बाहर निकलने से गुरेज करने की सलाह दी। घर से बाहर तभी निकलें जब बहुत जरूरी काम हो। रास्ते में सांस लेने में दिक्कत आए तो इंहेलर का इस्तेमाल करें।
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति हो जाती है कमजोर
कृषि अधिकारी डा. नरेश गुलाटी का कहना है कि जागरूक करने के बावजूद कुछ किसान पराली को आग लगा रहे हैं। जिले में 1.73 लाख हेक्टेयर धान का रकबा है। हर साल 6-7 टन पराली प्रति हेक्टेयर रकबे के हिसाब से करीब 13 लाख टन पराली निकलती है। पराली को आग से मिट्टी की सतह जल जाती है। इसकी वजह से उपजाऊ शक्ति कमजोर हो जाती है। खेतों के किनारे लगे पेड़ भी जल जाते हैं और वहां रहने वाले पक्षियों को भी बेघर होना पड़ता है।
डाक्टर बोले, जहरीले धुएं से आंखों में होती है जलन
थिंद आई अस्पताल के एमडी डा. जेएस थिंद कहते हैं कि पराली जलाने व दिवाली पर पटाखों के जहरीले धुएं से आंखों में एलर्जी, लाली व खुजली की समस्या बढ़ जाती है। आंखें मलने से जख्म हो सकते हैं।
लोहियां खास व नकोदर में सबसे ज्यादा जली पराली
जिले में पराली लगने के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है। जिले में 18 अक्टूबर तक 83 मामले सामने आए थे। 22 अक्टूबर को इनकी संख्या 168 तक पहुंच गई थी। सबसे ज्यादा मामले लोहियां खास व नकोदर इलाके के शामिल है।
जहरीले तत्व हैं नुकसानदायक
एक्सईएन अरुण कक्कड़ के मुताबिक एक टन पराली को जलाने से तकरीबन 3 किलो पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलो कार्बन मोनो आक्साइड, 1460 किलो कार्बन-डाई-आक्साइड, 2 किलो सल्फर डाईआक्साइड और 199 किलो राख पैदा होती है। जो हवा में मिक्स हो कर पर्यावरण को प्रदूषित करती है।

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