होशियारपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विश्व प्रसिद्ध द्रौण शिव मंदिर
शिवरात्रि सिर्फ हिदू ही नहीं सभी धर्मों का सबसे बड़ा त्योहार है। इसे पूरे विश्व में विशेष स्थान मिला है और इस दिन देश के सारे शिव मंदिरों में सुबह से लेकर अगली सुबह तक भक्तों की तरफ से लगातार पूजा अर्चना करके भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

सतीश कुमार, होशियारपुर
शिवरात्रि सिर्फ हिदू ही नहीं, सभी धर्मों का सबसे बड़ा त्योहार है। इसे पूरे विश्व में विशेष स्थान मिला है और इस दिन देश के सारे शिव मंदिरों में सुबह से लेकर अगली सुबह तक भक्तों की तरफ से लगातार पूजा अर्चना करके भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। शिवरात्रि महापर्व इस वर्ष 11 मार्च को पूरे विश्व भर में मनाया जा रहा है। वहीं गगरेट में स्थापित द्रौण शिव मंदिर में इस दिन पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। लोग दूर दूर से आकर भगवान शिव के द्वार पर नतमस्तक होते हैं। इस मंदिर को लोग शिववाड़ी यानी शिव का आंगन भी कहते हैं। मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि कभी यह स्थान पांडवों के गुरु महार्षि द्रौण का होता था। गुरु द्रौणाचार्य प्रतिदिन स्वां नदी में स्नान करके संध्या पाठ करने के लिए होशियारपुर से केवल बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित विश्व प्रसिद्ध द्रौण शिव मंदिर पर्वत पर जाया करते थे। उनकी एक कन्या थी यज्पाति। हर रोज घर से आलोप होते देख एक दिन वह पिता से हठ करने लगी कि आप कहां जाते हो और क्या करते हो, मैं भी आप के साथ चलूंगी। गुरु द्रौणाचार्य ने पुत्री को बहुत समझाया और कहा कि वह उसे किसी दिन अपने साथ ले जाएंगे। पहले तुम्हें घर पर ही शिव जी का बीज मंत्र ओम नम: शिवाय का जप करना होगा।
गुरु द्रौणाचार्य की बेटी की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव हुए प्रकट
यज्पति इकाग्र होकर पूरे विश्वास से घर पर ही प्रतिदिन ओम नम: शिवाय का पाठ करने लगी। कुछ दिन बाद भगवान शिव प्रसन्न होकर देखने लगे कि यह बच्ची ही उन्हें बुला रही है, जरूर कोई खास इच्छा होगी। उसी समय शिवजी महाराज बालक के रूप में आ गए और यज्यति के साथ बाल लीला कर खेलने लगे। यज्यति ने पिता से कहा कि यहां पर एक जटाधारी बालक आता है और खेलकूद करके चला जाता है। उसी समय गुरु द्रौणाचार्य ने सोचा कि वह बालक कौन है। अगले ही दिन समय के मुताबिक वह घर से चले गए। कुछ ही देर बाद आ गए और देखते ही हैरान हो गए कि भगवान शिवजी महाराज बालक रूप धारण कर यज्यति के साथ खेल रहे हैं। तब गुरु द्रौणचार्य ने कहा कि यह कैसी लीला है तो भगवान शिव ने कहा कि बच्ची ने हमें सच्चे मन से याद किया और हमें मजबूर होकर आना ही पड़ा। तब बच्ची यज्यति ने कहा कि पिता जी हर दिन आपके पास जाते हैं और हमें अकेला घर छोड़ जाते है। हठ करके कहा कि वह अब उनको यहां से जाने नहीं देगी तो भगवान शिव प्रसन्न होकर कहने लगे कि वह वर्ष में एक दिन यहां पर जरूर आएंगे। उसी दिन गुरु द्रौणचार्य के साथ पिडी का निर्माण किया और कहा कि वह इस पिडी में ही विराजमान रहेंगे।
भोलेनाथ को पाने के लिए पिंडी के पास समाधि में ही जम गए महात्मा
वहीं पिडी के पास ही जितनी भी समाधियां है वह उन महात्माओं की है जिन्होंने भगवान शिव के दर्शन करने के लिए यहां पर लगातार समाधि लगाकर तप किया और अंत में समाधि में ही जम गए। इस प्रकार जो भी मनुष्य भगवान शिव को श्रद्धा के फूल अर्पण कर भक्ति करता है उनकी सभी मनोकामनाए भगवान शिव पूरी करते हैं। भगवान शिव को श्रावण मास में बिल पत्र आवश्य चढ़ाना चाहिए जिससे सारे कष्ट दूर होते हैं। सोमवार को शिवजी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। शिव जी भोले हैं वह सभी की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
आज भी है यह सच्चाई
बता दें कि शिववाड़ी में आज भी इतना घना जंगल है कि यहां पर बेशुमार लक्कड़ पड़ी है। मगर, जंगल से आज भी कोई लकड़ी का एक टुकड़ा भी नहीं लेकर जा सकता है। वहीं भक्त शिवरात्रि के शुभ अवसर पर सुबह से लेकर अगले दिन सुबह तक पूजा अर्चना करके अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए धूणे में आहुति डालते हैं।
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