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    Punjab Flood: बाढ़ में बह गईं किसानों की उम्मीदें, कर्ज से की धान की रोपाई; अब कैसे करेंगे भरपाई

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 08:35 AM (IST)

    होशियारपुर में बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। जसप्रीत और अमरीक जैसे छोटे किसानों की धान की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है जिससे वे गहरे संकट में हैं। उन्होंने ठेके पर जमीन लेकर खेती की थी लेकिन अब वे जमीन मालिक को पैसा देने और कर्ज चुकाने को लेकर चिंतित हैं। बाढ़ से लगभग 5971 हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई है।

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    किसान जसप्रीत सिंह व अमरीक सिंह धान की डूबी फसल को दिखाते हुए

    जागरण संवाददाता, माहिलपुर (होशियारपुर)। छोटे किसान जसप्रीत सिंह और अमरीक ने जुलाई में धान की रोपाई बड़ी उम्मीदों के साथ की थी। गांव टूटोमजारा के रहने वाले दोनों किसानों का दिल फसल की रंगत देख बागबाग था, लेकिन बाढ़ में सबकुछ बर्बाद हो गया है।

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    सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि ठेके पर ली जमीन मालिक को पैसा कैसे देंगे? कर्ज कैसे चुकाएंगे? परिवार को क्या खिलाएंगे? धान की फसल को दिखाते हुए जसप्रीत और अमरीक की आंखें छलक पड़ीं। दरिया का पानी तो तबाही का कारण बना ही अब किसानों की आंखों से बर्बादी का दरिया बह रहा है।

    होशियारपुर में बाढ़ से लगभग 5,971 हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई है। बाढ़ में कुल 1,152 लोग प्रभावित हैं। 1,052 को सुरक्षित निकाला लिया गया है।

    जसप्रीत ने बताया कि उन्होंने तीन किल्ले जमीन पर ठेके पर ली है। एक फसल के लिए जमीन मालिक को एक वर्ष के लिए एक किल्ले का 40 हजार रुपये देने का करार है। एक किल्ले में धान की रोपाई से लेकर उसकी अभी तक की संभाल पर 50 हजार खर्च हो चुका है। यह पैसा भी उधार है।

    चार दिन पहले तक खेत में लहलहाती फसल को देखकर मन खुश हो जाता था कि दो महीने में कर्ज का बोझ उतर जाएगा, मगर एक झटके में बाढ़ के पानी ने सारी उम्मीदों को पानी में बहा दिया।

    खेत में लहलहाती फसल पानी में डूबती जा रही है। समझ में नहीं आ रहा है कि जमीन मालिक को पैसे कैसे वापस देंगे। बाकी का कर्ज कैसे उतारेंगे। इतना कहते-कहते वह डूबती फसल की तरफ इशारा करते हैं और फिर जुबां खामोश हो जाती है। साथ खड़े किसान अमरीक उदासी भरे लहजे में बोले, बाढ़ ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है। उन्होंने दो किल्ले जमीन ठेके पर ली है।

    उम्मीद थी कि फसल तैयार होने पर मंडी में फसल को बेचेंगे लेकिन अब तो खुद को खाने के लाले पड़ जाएंगे। यह दर्द जसप्रीत और अमरीक का ही नहीं, बाढ़ से प्रभावित मुकेरियां, टांडा उड़मुड़ और माहिलपुर के सैकड़ों उन किसानों का है, जिनकी लहलहाती धान की फसल बाढ़ के पानी में समा गई है और सिर पर कर्ज और मुसीबतों की गठरी बंध गई है। किसानों को चिंता है कि आखिरकार उनकी जिंदगी पटरी पर कैसे लौटेगी।

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