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    गुरु रविदास जी ने समाज में भाईचारे को दिया बढ़ावा

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 15 Feb 2022 03:35 PM (IST)

    दातारपुर में मंगलवार को गुरु रविदास सभा के सदस्य (नगर) एवं रिटायर्ड चीफ इंजीनियर राम लाल संधू ने महान संत श्री रविदास जी की जयंती पर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे संतों में महान संत रविदास का नाम अग्रगण्य है।

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    गुरु रविदास जी ने समाज में भाईचारे को दिया बढ़ावा

    संवाद सहयोगी, दातारपुर : भारत के कई संतों ने समाज में भाईचारे को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दातारपुर में मंगलवार को गुरु रविदास सभा के सदस्य (नगर) एवं रिटायर्ड चीफ इंजीनियर राम लाल संधू ने महान संत श्री रविदास जी की जयंती पर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे संतों में महान संत रविदास का नाम अग्रगण्य है। ऐसे महान संत का जन्म सन 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। वह बचपन से ही समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने के प्रति अग्रसर रहे। रविदास जी की ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। राम लाल संधू व सेवक दिलबाग सिंह ने कहा कि मध्ययुगीन साधकों में उनका विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रविदास जी भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। कबीर ने संतन में रविदास कहकर इन्हें मान्यता दी है। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रविदास जी का बिल्कुल भी विश्वास न था। रामलाल संधु व दिलबाग सिंह ने कहा कि वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। उन्होंने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल और व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। उन्हें उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी सफाई से प्रकट किए हैं। इनका आत्मनिवेदन और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित हैं।

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    कहते हैं कि कृष्ण भक्त मीरा के गुरु रविदास जी ही थे। उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने लोक-वाणी का अद्भुद प्रयोग किया था, जिसका मानव धर्म और समाज पर अमिट प्रभाव पड़ता है। समाज में फैली छुआ-छूत, ऊंच-नीच का भेद दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन से ही रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा। राम लाल संधु व दिलबाग सिंह ने कहा कि वह संत कबीर के गुरु भाई थे। मन चंगा तो कठौती में गंगा उनकी यह पंक्तियां मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है। रविदास के पद, नारद भक्ति सूत्र और रविदास की बानी उनके प्रमुख संग्रहों में से हैं।

    एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रविदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो उन्होंने अपने शिष्य से कहा, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता कितु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का वचन मैंने दिया है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो मेरा वचन भंग हो जाएगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहां लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा। उनका मानना है कि अपना मन जो काम करने के लिए तैयार हो वही काम करना उचित है। अगर मन सही है तो इस कठौती के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। रविदास महाराज के ऐसे संदेश दुनिया के लिए बहुत कल्याणकारी है। दुनिया भर में उनके भक्तों की एक लंबी श्रृंखला है। ऐसे महान संत की गणना केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के महान संतों में की जाती है। संत रविदास की वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाए जाते हैं। ऐसे महान संत को शत शत नमन।