दोपहर दो बजे के बाद सरकारी अस्पताल में नहीं मिलता एंटी रैबिज इंजेक्शन
लावारिस कुत्तों के आतंक से लोग परेशान हैं। शहर में कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां पर हर रोज कोई न कोई इनका शिकार बनता रहता है। प्रतिदिन औसतन 15-20 मरीज सिविल अस्पताल पहुंच रहे हैं।

नीरज शर्मा, होशियारपुर : लावारिस कुत्तों के आतंक से लोग परेशान हैं। शहर में कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां पर हर रोज कोई न कोई इनका शिकार बनता रहता है। प्रतिदिन औसतन 15-20 मरीज सिविल अस्पताल पहुंच रहे हैं। वहीं 40-45 लोग ऐसे हैं जो पहले से ही अपना उपचार करवा रहे हैं। परंतु एंटी रैबिज इंजेक्शन लगवाने के लिए छुट्टी के दिनों में लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वहीं सप्ताह में दो दिन जब ओपीडी बंद होती है तो भी लोग परेशान होते हैं। रही बात हर रोज की तो दो बजे के बाद यदि कोई डाग बाइट का मामला सामने आता है तो उसे इमरजेंसी में केवल टेटनस का इंजेक्शन ही लगाकर काम चला दिया जाता है। यदि कोई एंटी रैबिज लगाने के लिए कहे तो उसे बाहर स्थित मेडिकल स्टोर का रास्ता दिखा दिया जाता है। चूंकि दो बजे के बाद यहां एंटी रैबिज इंजेक्शन लगाने का कोई प्रबंध नहीं है। यदि फिर भी कोई रैबिज इंजेक्शन लगाने की बात करता है तो उसे बाहर से ही लाना पड़ता है जो अस्पताल के मुकाबले काफी महंगा है। सरकारी छुट्टी में नहीं है कोई प्रबंध
बता दें कि एंटी रैबिज इंजेक्शन लगाने के लिए अलग से विग तैनात किया गया है। लेकिन जब सरकारी छुट्टी आती है तो यह विग बंद रहता है। यानी यदि तीन छुट्टियां हो तो तीन दिन विग बंद रहेगा और ऐसे में लोगों को बाहर से इंजेक्शन खरीदना पड़ता है। अकसर स्टाक भी रहता है शार्ट
वैसे तो अस्पताल में एंटी रैबिज इंजेक्शन उपलब्ध होते हैं लेकिन कई बार स्टाक शार्ट होने के कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिसके चलते लोगों को महंगे दामों पर एंटी रैबिज के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। हालाकि कुछ समाजसेवी संस्थाएं भी एंटी रैबिज के इंजेक्शन लगाते हैं परंतु फिर भी वह सरकारी दामों से काफी अधिक हैं। बता दें कि अस्पताल में एंटी रैबिज का इंजेक्शन एक बार पर्ची बनाने के बाद दस रुपये में लगता है और बाहर वहीं इंजेक्शन 350 रुपये में मिलता है। जो अंदर के मुकाबले कई गुना महंगा है। पर मजबूरी में लोग इंजेक्शन खरीदते हैं। दो बजे के बाद केवल टेटनस का इंजेक्शन
सिविल अस्पताल में एंटी रैबिज इंजेक्शन लगाने का प्रबंध तो है लेकिन वह केवल ओपीडी के दौरान जो केवल दो बजे तक है। दो बजे के बाद यदि कोई नया मरीज आता है तो उसे बाहर से ही इंजेक्शन लाना पड़ता है। अस्पताल में दो बजे के बाद केवल ऐसे मरीजों के लिए टेटनस का इंजेक्शन ही उपलब्ध होता है। वह भी कभी कभी मरीज को बाहर से ही लाना पड़ता है। लगातार देते हैं डिमांड, नहीं होती है कमी : फार्मेसी अफसर
इस संबंधी में फार्मेसी अफसर नरिदर सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि एक वाइल में से पांच लोगों को इंजेक्शन लगता है। जो रिकार्ड के हिसाब से मेनटेन किया जाता है। जैसे ही स्टाक कम होता है डिमांड भेज दी जाती है। यदि कोई छुट्टी न पड़े तो दो से तीन दिन में स्टाक आ जाता है। कोई कमी नहीं आने दी जाती।
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