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    भारतीय संस्कृति अनुसार करें भोजन

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    Updated: Sun, 06 May 2012 08:56 PM (IST)

    जागरण प्रतिनिधि, दातारपुर : भारतीय संस्कृति विश्व में एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जहां योग से मनुष्य ने हजारों साल तक जीवित रहने की कला जानी है। इसके लिए जरूरी है खानपान पर नियंत्रण। हमें मेहनत से कमाए धन से ही भोजन करना चाहिए और शुद्ध भोजन ही खाना चाहिए। क्योंकि जिस प्रकार का हम अन्न ग्रहण करते हैं उसी प्रकार का हमारा मन बन जाता है। मानव को चाहिए कि वह भोजन को फैशन के तौर पर न अपनाए अपितु शरीर की जरूरत अनुसार उसे ग्रहण करे। उक्त प्रचवन बावा लाल दयाल आश्रम दातारपुर के महंत 1008 महामंडलेश्वर आचार्य रमेश दास शास्त्री ने रविवार को श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शुद्ध व संतुलित आहार से ही हमारा शरीर और मन स्वस्थ रहता है। आहार से आहार और विचार से विचार प्रभावित होता है। विचार से प्रभावित होती है संस्कृति। महंत जी ने कहा कि हमारे आहार और व्यवहार पर पाश्चात्य संस्कृति ने बहुत बुरा असर डाला है, जबकि हमारे ऋषि मुनियों ने हमें शुद्ध व सात्विक भोजन व सात्विक जीवन शैली का संदेश दिया है। व्यक्ति के मनोगत भाव का भोजन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अच्छे भोजन का शरीर व मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पाश्चात्य भोजन जिव्हा के स्वाद मात्र हैं और कई बीमारियों के घर हैं। जैसे फास्ट फूड आदि खाने से मनुष्य स्वस्थ्य नहीं बल्कि धीरे-धीरे बीमारियों की गिरफ्त में चला जाता है। हमारे वेदों के अनुसार दाल, रोटी, चावल, मौसमी फल व सब्जियां आदर्श भोजन है जो शरीर को निरोग रखने में सहायक होते हैं। अत: हमें फास्ट फूड और पाश्चात्य भोजन से बचना चाहिए। इस अवसर पर तरसेम लाल, सुरिंदर कुमार, ओम प्रकाश, गोपाल शर्मा, शिव कुमार, सतीश, अशोक गुलाटी, बलदेव कुमार, सीता देवी, कमलेश कुमारी, सतपाल शर्मा, कृष्ण कुमार व अन्य उपस्थित थे।

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