अश्लील गीत सभ्य समाज में कलंक
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वरिष्ठ संवाददाता, होशियारपुर :
आजकल अश्लील गीतों का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। विवाह समारोह, बाजारों व रेस्तरां आदि में ऐसे गीत अक्सर चलाए जाते हैं। इन गीतों के कारण जहां महिलाओं को सभ्य समाज में शर्मिदगी महसूस करनी पड़ती है वहीं युवाओं पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस तरह के गीत कुछ समय के लिए लोकप्रियता हासिल तो कर लेते हैं, परंतु समाज को लंबे समय तक इसका दुष्प्रभाव भुगतना पड़ता है। इसी विषय पर दैनिक जागरण द्वारा समाज के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग से बात की गई तो लोगों ने निष्पक्ष तौर पर अपनी राय पेश की।
सेवानिवृत्त प्रिंसिपल परमिंदर ढींगरा ने कहा कि गीत अपनी सभ्यता व संस्कृति के साथ जुड़े होने चाहिए, गीत ऐसे नहीं होने चाहिए कि वे सामाजिक मर्यादाओं को तार-तार कर रहे हों। कई बार मार्किट में ऐसे गीत भी आ जाते हैं जिन्हें परिवार के बीच बैठकर सुना ही नहीं जा सकता है।
सेवानिवृत्त हेड मिस्ट्रेस नीलम कुमारी ने कहा कि अश्लील गाना गाने वाले गायकी के साथ अन्याय कर रहे हैं। पहले के गायक गायकी के माध्यम से ईश्वर की इबादत करते थे, लेकिन आज समय बदलने के साथ गायकी का स्तर भी बदल गया है। अश्लील गायकी का असर बच्चों पर पड़ता है।
जिससे हमारी भावी पीढ़ी का भविष्य प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। अक्सर अश्लील गीत बच्चों की जुबान पर चढ़ जाते हैं तथा वह स्थान देखे बिना गुनगुना देते हैं, जिसके कारण कई बार अभिभावकों को शर्मिदगी महसूस करनी पड़ती है।
ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय महाविद्यालय जगतपुरा की मुख्य संचालिका बीके राजकुमारी ने अश्लील गीतों का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय समाज ऐसे गीतों को कभी भी अपनी सहमति नहीं दे सकता। अश्लील गीत सुनने से युवाओं की मनोवृत्ति प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि समाज के कर्णधारों को इन अश्लील गीतों का विरोध करना चाहिए।
समाज सेवक रोहताश जैन ने कहा कि गायकों के साथ-साथ उनकी सीडी आदि तैयार करने वालों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके गीतों से समाज को गलत संदेश न जाए। क्योंकि अश्लील गीतों की सहायता से कमाई करना उचित नहीं है। काबिलियत के आधार पर शिक्षाप्रद गायकी से पहचान बनाना चाहिए। इसके अलावा सरकार को अश्लील गीतों के खिलाफ सख्त कानून बनाना चाहिए।
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