Punjab News: रावी नदी में बढ़ा पानी का स्तर, पैंटून पुल के दोनों रैंप बहे; देश से टूटा कई गांवों का संपर्क
रावी दरिया में आई बाढ़ से पंजाब के सात गांवों का देश से संपर्क टूट गया है। मकौड़ा पत्तन पर बना पैंटून पुल का रैंप बह जाने से ग्रामीणों को पाकिस्तान की सीमा और रावी दरिया के बीच फंसना पड़ा। सरकार ने पक्का पुल बनाने का आश्वासन दिया है लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है। पुल के क्षतिग्रस्त होने से लोगों का जीवन संकट में आ गया है।
शमशेर मिन्हास, बहरामपुर। वीरवार से हो रही लगातार बारिश के चलते रावी दरिया में पानी का स्तर बढ़ने और तेज बहाव से मकौड़ा पत्तन पर बने पैंटून पुल के दोनों तरफ के रैंप बह जाने से रावी दरिया से पार पड़ते गांवों का संपर्क देश के शेष हिस्सों से टूट गया है।
जिस कारण इन गांवों के लोग पूरा दिन देश से अलग पाकिस्तान की सीमा व रावी दरिया की लहरों के बीच कैद रहे। शुक्रवार सुबह पांच बजे के करीब पानी के तेज बहाव के कारण मकौड़ा पत्तन पर बने पैंटून पुल के दोनों तरफ से रैंप बह गए। इसके बाद यह पुल यातायात के लिए बंद हो गया और दरिया पार टापूनुमा गांवों के लोग अपने घरों में कैद होकर रह गए।
पाकिस्तान की सीमा से घिरे हैं गांव
गौरतलब है कि विधानसभा हलका दीनानगर के रावी दरिया पार सात गांव भरियाल, तूरबनी, राएपुर चेबे, मम्मी चक्करंगा, कजले, झूंबर और लसियाण भूगोलिक स्थिति अनुसार एक तरफ रावी दरिया और दूसरी तरफ पाकिस्तान की सीमा के बीच घिरे हुए हैं।
देश की आजादी के साढ़े सात दशक के बाद भी इन टापूनुमा गांवों के लोग एक पक्के पुल को तरस रहे हैं। वैसे तो भले सरकार की ओर से लोगों की सुविधा के लिए मकौड़ा पत्तन पर पैंटून पुल बनाया हुआ है, जिसको बारिश के मौसम में समेट लिया जाता है।
मगर इसके अलावा भी जब कहीं रावी दरिया में पानी का स्तर बढ़ता है या पानी का बहाव तेज हो जाता है तो ऐसी स्थित में भी ये पुल लोगों का साथ छोड़ जाता है। ये घड़ी करीब ढाई हजार की आबादी वाले इन सात गांवों के लोगों के लिए किसी बड़े संकट से कम नहीं होती, क्योंकि इन गांवों में बढ़िया सेहत सुविधाओं की कमी के साथ-साथ मोबाइल नेटवर्क भी कमजोर है।
ऐसे में यदि कोई अचानक बीमार हो जाए तो उसके लिए सिवाए भगवान भरोसे करने के और कोई जरिया नहीं बचता, क्योंकि पानी के तेज बहाव के कारण किश्ती के माध्यम भी दरिया को पार करना संभव नहीं रहता।
एक तरफ कंटीली तार, दूसरी तरफ रावी दरिया
दुनिया भले 21वीं सदी में पहुंच गई है, मगर भारत-पाक राष्ट्रीय सीमा पर बसते भरियाल सेक्टर के सात गांवों के लोग आज भी 18वीं सदी में रह रहे हैं। एक तरफ भारत-पाक राष्ट्रीय सीमा पर लगी कंटीली तार इनके जीवन में संकट डाल रही है तो दूसरी तरफ रावी दरिया से घिरे इस टापूनुमान क्षेत्र में जीवन बसर कर रहे लोगों के दर्द को शायद कोई समझने वाला नहीं है।
हालांकि, मकौड़ा पत्तन पर पक्का पुल बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अगस्त 2021 में हरी झंडी दे दी गई थी। सिर्फ यही नहीं, बल्कि पुल निर्माण के लिए 100 करोड़ रुपये की राशि भी पंजाब सरकार के खाते में आ चुकी है, मगर इसके बावजूद पुल का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका।
पंजाब विधानसभा के गुजरे दो दिन सेशन के दौरान भी दीनानगर की कांग्रेसी विधायिका अरुणा चौधरी ने इस जगह पर पक्के पुल का मुद्दा विधानसभा में उठाया था और सरकार द्वारा जल्द ही पक्के पुल का काम शुरू करने का आश्वासन दिलाया गया।
जहां के लोग भी पक्के पुल की मांग को लेकर कई बार चुनाव का बाहिष्कार कर चुके हैं, मगर अभी भी समस्या ज्यों की त्यों है। लोग राजनेताओं से यह उम्मीद लगाई बैठा है कि कब रावी दरिया पर पक्का पुल बने और उनके जीवन पटरी पर लौट सके।
उज्झ और रावी दरिया का संगम पकौड़ा पत्तन
मकौड़ा पत्तन रावी दरिया और उज्झ दरिया का संगम है, जहां यह दोनों दरिया आपस में आकर मिलते हैं। रावी दरिया पर रणजीत सागर डैम और शाहपुर कंडी बैराज बनने के बाद इसके पानी को तो चैनेलाइज कर लिया गया है, मगर जम्मू-कश्मीर में आते उज्झ दरिया का पानी हमेशा इस इलाके के लिए गंभीर स्थिति पैदा करता है।
जब कहीं जम्मू कश्मीर के ऊपरी भागों में वर्षा होती है तो उज्झ दरिया में पानी भारी मात्रा में छोड़ दिया जाता है। जिसके चलते तेज बहाव के कारण कई बार मकौड़ा पत्तन पर स्थिति गंभीर बन जाती है।
इस संबंधी जब एसडीएम दीनानगर जसपिंदर सिंह के साथ बात की गई तो उन्होंने कहा कि पानी के तेज बहाव के कारण पैंटून पुल के रैम्पों के हुए नुकसान संबंधी उच्चाधिकारियों को सूचित कर दिया गया है।
फिलहाल दरिया में पानी की बहाव काफी तेज है। पानी का बहाव कम होने के बाद लोगों के यातायात के लिए नाव चलाई जाएगी और नुकसान किए गए रैम्पों की मरम्मत का काम शुरू किया जा सकेगा।
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