देसी खाद से की खेती, प्रति एकड़ 130 क्विंटल हुई हल्दी
पंजाब सरकार व खेतीबाड़ी विभाग की ओर से किसानों को गेहूं व धान के फसली चक्र से बाहर निकालने के लिए अन्य फसलों की काश्त करने संबंधी प्रेरित किया जा रहा ह ...और पढ़ें

महेंद्र सिंह अर्लीभन्न, कलानौर
पंजाब सरकार व खेतीबाड़ी विभाग की ओर से किसानों को गेहूं व धान के फसली चक्र से बाहर निकालने के लिए अन्य फसलों की काश्त करने संबंधी प्रेरित किया जा रहा है। इसी के तहत ब्लाक कलानौर के अंतर्गत आते गांव खुशीपुर में प्रगतिशील किसान व लैब टेक्नीशियन करतार सिंह ने देसी रुड़ी (आर्गेनिक) खाद से प्रति एकड़ 130 क्विंटल हल्दी उत्पादित करके मिसाल कायम की है।
करतार सिंह खुशीपुर ने कहा कि उन्होंने पिछले समय मई माह में खेत में हल्दी की काश्त की थी। हल्दी की काश्त करते समय 20 ट्राली देसी गोबर की रुड़ी व 14 बोरी गंडोए की खाद खेत में डाली थी। दो बार मिट्टी चढ़ाने के अलावा तीन बार हल्दी की गुडाई करवाई गई और समय समय पर हल्दी को पानी की सिचाई की गई। दस महीने के बाद उसकी ओर से हल्दी की खोदाई करवाई गई और प्रति एकड़ 130 क्विंटल उत्पादन हुआ। उन्होंने बताया कि प्रति एकड़ में से करीब ढाई लाख रुपये की हल्दी का झाड़ निकला है। काश्तकार करतार सिंह ने बताया कि हल्दी की बिक्री के लिए मंडीकरण न होने के कारण काश्तकारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि वे मजबूरी के चलते हल्दी मंडियों में बेचने के बजाय प्लांटों के मालिकों के रेट अनुसार बिक्री कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हल्दी की संभाल अधिक समय न होने के काण हल्दी फिर से पुंगरना शुरू हो जाती है। करतार सिंह ने बताया कि जहां प्रति एकड़ खेत में से करीब ढाई लाख रुपये की हल्दी निकल जाती है, वहीं हल्दी की संभाल व खोदाई समय एक लाख रुपये का खर्च आ जाता है। करतार सिंह ने बताया कि उसकी ओर से देसी रुड़ी के साथ आर्गेनिक विधि से तैयार की गई हल्दी लोग पिसाई व बिजाई के लिए दूर-दूर से आकर खरीद रहे हैं। जहां हल्दी सेहतमंद के लिए गुणकारी है, वहीं आमदनी के लिए भी लाभकारी है। उन्होंने पंजाब सरकार से मांग की है कि लाभकारी हल्दी की खेती को प्रफुल्लित करने के लिए हल्दी का मंडीकरण यकीनी बनाया जाए।

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