आर नानक पार नानक : डेरा बाबा नानक और करतारपुर साहिब का है आपस में गहरा नाता
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित ऐतिहासिक कस्बा डेरा बाबा नानक व श्री करतारपुर साहिब का आपस में गहरा नाता है।
महिदर सिंह अर्लीभन्न, डेरा बाबा नानक
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित ऐतिहासिक कस्बा डेरा बाबा नानक व श्री करतारपुर साहिब का आपस में गहरा नाता है। ऐतिहासिक कस्बा डेरा बाबा नानक को श्री गुरु नानक देव जी के पुत्र लक्ष्मी दास के पोत्रे बाबा मानक चंद व बाबा मेहर चंद ने बसाया था। इस डेरा बाबा नानक की पवित्र धरती को श्री गुरु नानक देव जी के अलावा श्री गुरु अंगद देव जी, श्री गुरु अर्जुन देव जी, श्री गुरु हरगोबिद साहिब की चरण स्पर्श प्राप्त है।
सिख कौम के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी की ओर से चार उदासियां लेने के बाद जब श्री करतारपुर साहिब (पाकिस्तान) की पवित्र धरती पर पहुंचे तो 17 साल नौ महीने तथा कुछ दिन दिन इस पवित्र धरती पर रहे। यहां उन्होंने किरत करो, नाम जपो, बांटकर छको का उपदेश दिया और 22 सितंबर 1539 को करतारपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए। श्री गुरु नानक देव जी के ज्योति ज्योत समाने के बाद अंतिम रस्मों संबंधी कई साखियां प्रचलित हैं। श्री गुरु नानक देव जी के बड़े बेटे बाबा श्रीचंद जब श्री करतारपुर साहिब पहुंचे तो उन्होंने बताया कि श्री गुरु नानक देव जी के अकाल चलाना से संबंधी अस्थान रावी दरिया बाढ़ का शिकार हो रहा है। इतिहासकारों के अनुसार रावी दरिया के किनारे 1647 में श्री गुरु नानक देव जी के इस पवित्र अस्थान श्री करतारपुर साहिब में मकबरे के निशान मौजूद थे।
इतिहासकार प्रो. राज कुमार ने बताया कि करतारपुर साहिब की स्थापना से पहले गुरु नानक के दो भक्त भाई दोदा और भाई दूनी चंद रहते थे। यह स्थान दरबार साहिब श्री करतारपुर साहिब के नाम से जाना जाने लगा। गुरु नानक देव जी के ज्योति जोत में समा जाने के बाद अंतिम संस्कार को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं। 1911-12 सन में एक भक्त लाला शाम दास ने गुरु नानक को समर्पित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब की वर्तमान इमारत का निर्माण करवाया था। उस समय इस स्थान पर एक पवित्र मंच था, जो विश्राम स्थल से जुड़ा हुआ है। गुरु खालसा भाग पहले में ज्ञानी ज्ञान सिंह के अनुसार जब गुरु नानक देव जी ज्योति जोत समाए तो पार्थिव शरीर गायब हो गया। हिदू मुस्लिम ने आधी आधी चादर बांट ली। हिदू समाध व मुस्लमानों ने कब्र बना ली। इसके बाद गुरु नानक देव जी के पड़पोते धर्मचंद ने रावी के आगे एक नगर बसाकर गुरु जी की समाध बनाई। इसका नाम डेहरा बाबा नानक रखा गया।
इतिहासकारों के अनुसार श्री गुरु नानक देव जी के ज्योति जोत समाने के बाद प्रेमी गुरसिखों द्वारा यादगार बनाई थी। वह कुछ समय बाद रावी दरिया में लुप्त हो गई। इसके बाद बाबा श्री चंद व बाबा लखमी दास ने रावी दरिया के इस पार चढ़ते की ओर से अजिते रंधावे के कुंए पर जिस अस्थान पर गुरु साहिब जी आकर विराजमान हुए थे, उस जगह पर गुरु साहिब जी की करतारपुर से चादर की राख जो कलश गागर में पड़ी बताई जाती है, उस जगह पर यादगार बनाई गई। इस मौके पर डेरा बाबा नानक में उस जगह पर गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब मौजूद है। इस संबंधी गुरुद्वारा दरबार साहिब डेरा बाबा नानक के सदस्य रणजीत सिंह ने बताया कि पुरात्न अस्थान व इस समय निर्माणाधीन गुरुद्वारा साहिब है तथा थड़े का निर्माण किया गया है। गुरुद्वारा साहिब का निर्माण होने पर इस जगह पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी सुशोभित होंगे।
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